विनोद कुमार झा
राजू एक छोटे से गाँव में रहने वाला गरीब लेकिन मेहनती लड़का था। उसकी माँ दूसरों के घरों में काम करती और पिता मजदूरी करते थे। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, लेकिन राजू के सपने बड़े थे। वह पढ़ाई करना चाहता था, मगर किताबें और स्कूल की फीस जुटाना आसान नहीं था।
हर सुबह स्कूल जाने से पहले और शाम को लौटने के बाद, राजू नदी किनारे कंकड़ और छोटे पत्थर बीनता। गाँव में कुछ व्यापारी थे जो सुंदर और चमकदार कंकड़ों को खरीदते थे, जिससे राजू को थोड़े पैसे मिल जाते। यह पैसे वह अपनी पढ़ाई के लिए बचाता था।
एक दिन, जब वह हमेशा की तरह नदी किनारे कंकड़ बीन रहा था, उसकी नजर एक अजीब-सा चमकते हुए पत्थर पर पड़ी। यह आम कंकड़ों से अलग था मुलायम, चिकना और दूधिया सफेद। राजू ने उसे गौर से देखा और झट से अपनी झोली में डाल लिया।
घर जाकर उसने माँ को दिखाया। माँ ने कहा, "बेटा, यह कोई आम पत्थर नहीं लगता। इसे किसी जानकार को दिखाना चाहिए।" राजू अगले दिन गाँव के बड़े व्यापारी के पास गया। व्यापारी ने पत्थर को देखते ही पहचान लिया यह एक बेशकीमती मोती था!
व्यापारी ने राजू को अच्छी कीमत देने की पेशकश की, लेकिन राजू ने सोचा, "अगर यह मोती मुझे मेहनत करते हुए मिला है, तो मेहनत ही असली दौलत है।" उसने मोती बेचकर उससे मिलने वाले पैसे से अपनी पढ़ाई की फीस भरी, नई किताबें खरीदीं और आगे की शिक्षा प्राप्त की।
लेकिन यह सिर्फ शुरुआत थी। राजू ने तय किया कि वह केवल खुद तक सीमित नहीं रहेगा। उसने और मेहनत की, बड़े शहर जाकर पढ़ाई की, और धीरे-धीरे एक सफल व्यापारी बन गया। उसकी लगन और ईमानदारी ने उसे समाज में सम्मान दिलाया। वह अब उन बच्चों की मदद करने लगा, जो गरीबी के कारण पढ़ाई नहीं कर पाते थे।
कुछ साल बाद, जब राजू अपने गाँव लौटा, तो उसने नदी किनारे वही जगह देखी जहाँ से उसे वह मोती मिला था। उसे एहसास हुआ कि असली मोती वह नहीं था, जिसे उसने बेचा था, बल्कि वह शिक्षा और मेहनत थी, जिसने उसे इस मुकाम तक पहुँचाया।
गाँववालों ने जब उसकी सफलता की कहानी सुनी, तो हर कोई प्रेरित हुआ। राजू ने गाँव में एक स्कूल खोला, ताकि कोई और बच्चा केवल गरीबी के कारण अपने सपनों से वंचित न रहे।
जब भी लोग उसकी सफलता की कहानी पूछते, वह मुस्कुराकर कहता, "मेरे जीवन का सबसे अनमोल मोती वह था, जो मैंने मेहनत और ईमानदारी से पाया।"