हरतालिका तीज व्रत कथा
भगवान शिव ने एक बार देवी पार्वती को उनके पूर्व जन्म की स्मृति दिलाने और हरतालिका तीज व्रत के महत्व को समझाने के लिए एक कथा सुनाई थी। उन्होंने बताया कि कैसे देवी पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में कठोर तपस्या करके उन्हें पति के रूप में प्राप्त किया।पार्वती जी की कठिन तपस्या
शिवजी ने बताया कि पार्वतीजी ने अपने बाल्यकाल में पर्वतराज हिमालय पर गंगा के तट पर बारह वर्षों तक कठोर तपस्या की थी। उन्होंने न केवल अन्न-जल त्यागकर पेड़ के सूखे पत्तों का सेवन किया, बल्कि माघ की शीतलता में जल में रहकर तप किया, वैशाख की गर्मी में पंचाग्नि के मध्य तपस्या की, और श्रावण की मूसलधार वर्षा में खुले आसमान के नीचे समय व्यतीत किया।
इस कठिन तपस्या से उनके पिता अत्यधिक दुखी और चिंतित हो गए। एक दिन नारदजी ने उनके पिता को यह खबर दी कि भगवान विष्णु, पार्वतीजी से विवाह करना चाहते हैं। पर्वतराज हिमालय ने खुशी-खुशी इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। लेकिन जब पार्वतीजी को यह पता चला, तो वे विचलित हो गईं, क्योंकि उन्होंने सच्चे हृदय से भगवान शिव को पति के रूप में वरण किया था।
सखी की सलाह और व्रत का महात्म्य
पार्वतीजी की एक सखी ने उन्हें धैर्य रखने की सलाह दी और उन्हें एक घने जंगल में लेकर चली गई, जहाँ पार्वतीजी ने एक गुफा में रहकर भगवान शिव की आराधना की। भाद्रपद शुक्ल तृतीया के दिन पार्वतीजी ने रेत का शिवलिंग बनाकर पूरे विधि-विधान से व्रत किया और रात भर जागरण कर शिवजी की स्तुति की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और उनके वरदान के रूप में उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया।
शिव-पार्वती का विवाह
भगवान शिव की कृपा से पार्वतीजी का तप सफल हुआ, और उन्होंने अपने पिता से वादा लिया कि वे उनका विवाह भगवान विष्णु से नहीं, बल्कि भगवान शिव से करेंगे। पर्वतराज हिमालय ने बाद में शास्त्रोक्त विधि से पार्वतीजी का विवाह शिवजी से कर दिया।
हरतालिका तीज व्रत का महत्व
इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि भाद्रपद शुक्ल तृतीया के दिन किया गया हरतालिका तीज व्रत अति महत्वपूर्ण है। जो युवतियाँ इस व्रत को पूरी निष्ठा और आस्था के साथ करती हैं, उन्हें मनोवांछित फल और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि इस व्रत का महत्व आज भी अडिग है, और इसे प्रत्येक सौभाग्य की इच्छुक युवती को अवश्य करना चाहिए।