विनोद कुमार झा
1. सतयुग में भगवान श्री गणेश जी ने महोटकट विनायक के रूप में अवतार लिए थे। इस युग में भगवान गणेश का रूप अत्यंत विशाल और भव्य था। उनका शरीर महाकाय था, और वे सिंह की भांति शक्तिशाली और वीर दिखाई देते थे। महोटकट विनायक का स्वरूप इस युग में उन लोगों को प्रेरित करने के लिए था जो धर्म और सत्य के मार्ग पर चलते थे।
हाथों की संख्या: इस रूप में गणेश जी के 10 हाथ थे। उनके हाथों में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र थे, जो उनके अद्वितीय बल और पराक्रम का प्रतीक थे।
- वाहन: उनका वाहन सिंह (शेर) था। सिंह, जोकि शक्ति, साहस और अद्वितीय पराक्रम का प्रतीक है, महोटकट विनायक के इस रूप को और अधिक प्रभावशाली बनाता है।
2. त्रेतायुग: मयूरेश्वर रूप में अवतार लिए
त्रेतायुग में भगवान गणेश ने सौम्य और कलात्मक रूप धारण किया। मयूरेश्वर के रूप में उनका स्वरूप बेहद सुंदर और शांति से भरा हुआ था। यह रूप गणेश जी की सौम्यता, ज्ञान और कला प्रेम को प्रकट करता है। मयूरेश्वर का चेहरा और शरीर सौम्यता का प्रतीक था, और उनकी उपस्थिति अत्यधिक कलात्मक थी।
- हाथों की संख्या: इस रूप में गणेश जी के 6 हाथ थे। इन हाथों में वे विभिन्न दिव्य शस्त्र और प्रतीक धारण करते थे, जैसे त्रिशूल, कमल, पाश (फंदा), अंकुश (हाथी हांकने का यंत्र), और मोदक (मिठाई), जो उनकी दिव्यता, सुरक्षा और आशीर्वाद देने की शक्ति का प्रतीक थे।
- वाहन: उनका वाहन मयूर (मोर) था। मयूर, जो सौंदर्य, कला, और शांति का प्रतीक है, मयूरेश्वर के इस रूप को और अधिक सौम्य और कलात्मक बनाता है। मयूर का वाहन के रूप में चयन गणेश जी की शांति, संतुलन, और सौंदर्य की ओर दृष्टि को दर्शाता है।
3. द्वापरयुग: गजानन के रूप में अवतार लिया
द्वापरयुग में भगवान गणेश ने अपना प्रसिद्ध गजानन रूप धारण किया। इस रूप में उनका सिर हाथी का और शरीर मानव का था। गजानन का यह रूप दिव्यता और बौद्धिकता का प्रतीक है। उनका चेहरा शांत और उनके बड़े कानों से यह दर्शाता है कि वे सबकी सुनते हैं और सबकी समस्याओं का समाधान करते हैं।
हाथों की संख्या: इस रूप में गणेश जी के 4 हाथ थे। उनके चार हाथों में उन्होंने पाश, अंकुश, मोदक, और अभयमुद्रा (आशीर्वाद देने की मुद्रा) धारण किया था। यह उनकी रक्षा, नियंत्रण, सुख, और आशीर्वाद देने की शक्तियों को दर्शाता है।
इस युग में वाहन: इस युग में उनका वाहन मूषक (चूहा) था। मूषक का वाहन के रूप में चयन गणेश जी की चतुराई, विवेकशीलता और छोटी चीजों में बड़ी शक्ति को पहचानने की क्षमता को दर्शाता है। मूषक, जो कि एक छोटा सा जीव है, गणेश जी के ज्ञान और बुद्धिमत्ता का प्रतीक है, जो छोटी से छोटी समस्याओं को भी सुलझाने में सक्षम है। आज भी हर घर में इसी रूप की पूजा होती है।
4. कलियुग में भगवान श्री गणेश धूम्रकेतु के रूप में अवतार लेंगे :-
इस रूप में उनका स्वरूप अत्यधिक भयानक और क्रोधी था। उनका चेहरा धूम्र (धुंध) से घिरा हुआ होगा, और उनकी आँखों में असीमित क्रोध झलकता दिखाई देगा। यह रूप कलियुग की कठिनाइयों और अराजकता से लड़ने के लिए कारगर साबित होगा।
हाथों की संख्या: धूम्रकेतु रूप में गणेश जी के 2 हाथ होंगे । इन हाथों में वे शस्त्र धारण किए रहेंगे, जो उनकी त्वरित और निर्णायक शक्ति का प्रतीक होगा। यह रूप दर्शाता है कि कलियुग में गणेश जी ने अपने भक्तों को शक्ति और साहस प्रदान करेंगे।
वाहन: इस युग में उनका वाहन घोड़ा होगा। घोड़ा, जो गति, ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक है, धूम्रकेतु के इस रूप को और अधिक उग्र और तेज बनाता है। घोड़ा, जो त्वरित गति और संकटों को नष्ट करने की क्षमता रखता है, धूम्रकेतु के इस रूप में उनकी शक्ति और त्वरित संकट निवारण को दर्शाता है।
इन चारों युगों में भगवान गणेश के रूप, हाथों की संख्या, और वाहन उनके भक्तों को उस समय की परिस्थितियों और चुनौतियों का सामना करने के लिए मार्गदर्शन और आशीर्वाद प्रदान करते हैं। हर युग में भगवान गणेश ने अपने भक्तों को अलग-अलग रूपों में दर्शन दिए और उन्हें धर्म, ज्ञान, शांति, और साहस का मार्ग दिखाया।