भगवान श्रीकृष्ण को "दामोदर" नाम से पुकारा जाता है, और इसके पीछे एक बहुत ही रोचक और धार्मिक कहानी है। "दाम" का अर्थ है "रस्सी" और "उदर" का अर्थ है "पेट"। इस नाम का संबंध उस लीला से है, जब माता यशोदा ने बालकृष्ण को ऊखल से बांध दिया था। यह लीला कार्तिक मास में घटित हुई थी, इसलिए इस महीने को "दामोदर मास" भी कहा जाता है।
कहानी इस प्रकार है कि एक दिन जब माता यशोदा भगवान श्रीकृष्ण को दूध पिला रही थीं, उन्हें अचानक याद आया कि रसोई में दूध उबल रहा है। दूध को संभालने के लिए वह श्रीकृष्ण को छोड़कर रसोई में चली गईं। श्रीकृष्ण इस बात से नाराज हो गए और उन्होंने क्रोधित होकर घर में रखी दही, घी, और मक्खन के बर्तन तोड़ दिए। फिर वे एक ओखली के ऊपर चढ़कर मक्खन खाने लगे।
माता यशोदा ने जब यह देखा तो वह श्रीकृष्ण को पकड़ने के लिए दौड़ीं। सर्वशक्तिमान भगवान को पकड़ना आसान नहीं था, लेकिन श्रीकृष्ण ने अपनी चाल धीमी कर दी, जिससे माता उन्हें पकड़ सकीं। माता यशोदा ने उन्हें सजा देने के उद्देश्य से रस्सी से ऊखल से बांधने का प्रयास किया, लेकिन हर बार रस्सी दो ऊँगल छोटी पड़ जाती। गोपियों ने भी रस्सियाँ लाकर दीं, लेकिन फिर भी भगवान नहीं बंध सके। अंततः श्रीकृष्ण ने माता यशोदा की प्रेम भक्ति और उनकी निष्कपट चेष्टा को देखते हुए बंधना स्वीकार कर लिया।
भगवान श्रीकृष्ण की इस लीला के बाद से ही उन्हें "दामोदर" नाम से पुकारा जाने लगा। "दामोदर" नाम का अर्थ है वह, जिसके उदर पर रस्सी बांधी गई हो। यह लीला हमें यह भी सिखाती है कि भगवान को पाने के लिए दो चीजें आवश्यक हैं: एक मनुष्य की भक्तिमयी चेष्टा और दूसरी भगवान की कृपा। जब ये दोनों मिलते हैं, तभी भगवान की प्राप्ति होती है।
इस कहानी में श्रीकृष्ण की शरारतें और माता यशोदा की ममता का वर्णन अद्वितीय है, और यही कारण है कि यह लीला भक्तों के दिलों में विशेष स्थान रखती है।