विनोद kumar झा
आखिर क्या है 12 वर्षों में कुंभ मेला एक बार होने का रहस्य
कुंभ मेला भारतीय संस्कृति का एक अद्वितीय पर्व है, जिसका आयोजन चार प्रमुख स्थानों – हरिद्वार, प्रयाग (इलाहाबाद), नासिक और उज्जैन – में होता है। यह मेला प्रत्येक स्थान पर 12 वर्षों के अंतराल पर आयोजित होता है और इस आयोजन के पीछे गहरी ज्योतिषीय और पौराणिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। आइए जानते हैं इसका ज्योतिषीय और पौराणिक आधार क्या है।ज्योतिष के अनुसार, कुंभ मेला 12 वर्षों में एक बार इसलिए होता है क्योंकि इसका सीधा संबंध ग्रहों की विशेष स्थिति से है। ज्योतिषीय विज्ञान के अनुसार, भचक्र (जिसे आकाश मंडल भी कहा जाता है) को 360 अंश में विभाजित कर 12 राशियों में बांटा गया है। इस व्यवस्था में गुरु (बृहस्पति) और सूर्य की स्थिति बहुत महत्वपूर्ण होती है। गुरु ग्रह एक राशि में लगभग 13 महीने तक स्थित रहता है और फिर उसी राशि में आने में 12 साल का समय लेता है। इसी कारण से हरिद्वार, प्रयागराज और नासिक में कुंभ मेला हर 12 वर्ष में एक बार आयोजित होता है।
उज्जैन में आयोजित होने वाले कुंभ को "सिंहस्थ" कहा जाता है, क्योंकि उस समय गुरु सिंह राशि में स्थित होता है। जब गुरु और सूर्य विशेष मुहूर्त में एक विशिष्ट राशि में आते हैं, तब कुंभ मेला आयोजित होता है, जो ज्योतिषीय दृष्टिकोण से बेहद शुभ और पवित्र माना जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कुंभ मेले के आयोजन के पीछे एक गहरी पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है, जिसे समुद्र मंथन की कथा के रूप में जाना जाता है। यह कथा देवताओं और असुरों (दानवों) के बीच अमृत प्राप्त करने के लिए किए गए समुद्र मंथन पर आधारित है।
समुद्र मंथन की कथा
एक बार इन्द्रदेव ने महर्षि दुर्वासा से प्राप्त माला का उचित सम्मान न करने के कारण उन्हें श्रीविहीन होने का शाप मिल गया। इस घटना के बाद, इन्द्र घबराकर ब्रह्माजी के पास पहुंचे और भगवान विष्णु की शरण ली। विष्णु भगवान ने देवताओं को असुरों से संधि कर समुद्र मंथन करने का निर्देश दिया ताकि अमृत प्राप्त किया जा सके। इस मंथन के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी और नागराज वासुकि को रस्सी के रूप में इस्तेमाल किया गया।
समुद्र मंथन से अनेक अमूल्य वस्तुएं निकलीं, जिनमें अमृत का कलश सबसे महत्वपूर्ण था। जब अमृत कलश निकला, तो इसे प्राप्त करने के लिए देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष शुरू हो गया। देवताओं ने अमृत को असुरों से बचाने के लिए इन्द्रदेव के पुत्र जयंत को कलश के साथ भेजा। जयंत ने गुरु (बृहस्पति), सूर्य, चंद्र और शनि की सहायता से अमृत कलश को दैत्यों से छिपाया और इस प्रयास में 12 दिनों तक भागते रहे।
इन 12 दिनों की भाग-दौड़ के दौरान, देवताओं ने अमृत कलश को चार स्थानों – हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन – में रखा। इन स्थानों पर अमृत की कुछ बूंदें छलक गईं, जिससे ये स्थान पवित्र माने गए। अंततः भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर दैत्यों को भ्रमित किया और देवताओं को अमृत पिलाया, जबकि दैत्यों के लिए कुछ भी नहीं बचा।
जानें 12 वर्षों का महत्व
देवताओं का एक दिन मनुष्यों के एक वर्ष के बराबर माना जाता है। इसलिए, देवताओं के लिए 12 दिन, मनुष्यों के लिए 12 वर्षों के बराबर होते हैं। यही कारण है कि हर 12 वर्ष में एक बार कुंभ मेला आयोजित होता है। यह मेला उन स्थानों पर आयोजित होता है जहां अमृत की बूंदें गिरी थीं, जिससे उन स्थानों को पवित्रता प्राप्त हुई।
कुंभ मेले का धार्मिक और सामाजिक महत्व
कुंभ मेला केवल ज्योतिषीय और पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इसका धार्मिक और सामाजिक महत्व भी बहुत बड़ा है। इस मेले में लाखों की संख्या में श्रद्धालु एकत्र होते हैं और पवित्र नदियों में स्नान करके अपने पापों से मुक्ति पाने की कामना करते हैं। कुंभ स्नान को मोक्ष का मार्ग माना जाता है, और ऐसी मान्यता है कि इस दौरान नदियों में स्नान करने से व्यक्ति को जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिल सकती है।कुंभ मेला एक ऐसा अवसर है, जहां संत, महात्मा, साधु और आम लोग मिलकर आध्यात्मिक और धार्मिक अनुभव साझा करते हैं। यह भारतीय संस्कृति का ऐसा पर्व है, जो एकता, समर्पण और भक्ति का प्रतीक है। कुंभ मेला न केवल आध्यात्मिक अनुभव का स्रोत है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक धरोहर और ऐतिहासिक परंपराओं का जीवंत प्रदर्शन भी है।
कुंभ मेले के 12 वर्षों में एक बार आयोजित होने का कारण केवल ज्योतिषीय या पौराणिक कथा से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह भारतीय आध्यात्मिकता, संस्कृति और आस्था का अद्वितीय संगम है। हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन जैसे स्थानों को अमृत के छींटों से पवित्र माना जाता है, और यही कारण है कि यहां पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। कुंभ मेला न केवल धार्मिक श्रद्धालुओं के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए भारतीय संस्कृति का अद्वितीय उदाहरण है।