नवरात्रि के छठे दिन माँ कात्यायनी की महिमा और उपासना और कथा

 "कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी"


नवरात्रि का छठा दिन माँ दुर्गा के छठे स्वरूप, माँ कात्यायनी को समर्पित होता है। यह दिन भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि माँ कात्यायनी की उपासना से सभी चारों पुरुषार्थ - अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति संभव होती है। साथ ही, इनके भक्तों के सारे रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं और जन्मों के समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं।

 कात्यायनी देवी की पौराणिक कथा

माँ कात्यायनी की उत्पत्ति की कथा महर्षि कात्यायन से जुड़ी है। कहा जाता है कि महर्षि कात्यायन, जो कात्य गोत्र से थे, ने भगवती पराम्बा की अत्यंत कठोर तपस्या की। उनकी इच्छा थी कि माँ भगवती उनके घर पुत्री रूप में जन्म लें। महर्षि की तपस्या से प्रसन्न होकर माँ भगवती ने उनकी इस इच्छा को पूरा किया और उनके घर पुत्री के रूप में अवतरित हुईं। इसी कारण इस देवी का नाम "कात्यायनी" पड़ा।

कात्यायनी देवी को शोध और ज्ञान की देवी भी माना जाता है। विशेषकर इस वैज्ञानिक युग में इनका महत्व और भी बढ़ गया है, क्योंकि उनकी कृपा से शोधकार्य सफल होते हैं और असंभव कार्य भी संपन्न होते हैं। देवी कात्यायनी की उपासना से न केवल भौतिक और आध्यात्मिक जीवन में सफलता मिलती है, बल्कि आध्यात्मिक शांति और मोक्ष का द्वार भी खुलता है।

 देवी कात्यायनी की विशेषताएं

माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत दिव्य और भव्य है। इनका रंग स्वर्ण के समान तेजोमय है, जो उनकी अद्भुत शक्ति का प्रतीक है। माँ की चार भुजाएं हैं, जिनमें दाईं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है, जो उनके भक्तों को निर्भयता का आशीर्वाद देता है। नीचे वाला हाथ वरमुद्रा में है, जो उनकी कृपा और आशीर्वाद का प्रतीक है। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार सुशोभित है और नीचे वाले हाथ में कमल का पुष्प है, जो उनकी शांति और सौम्यता का प्रतीक है। सिंह उनके वाहन के रूप में उनके शक्ति और साहस का द्योतक है।

 माँ कात्यायनी की महिमा

माँ कात्यायनी की महिमा का वर्णन शास्त्रों और पुराणों में अत्यंत विस्तार से किया गया है। वे अमोघ फलदायिनी मानी जाती हैं, यानी उनकी कृपा से भक्तों को निश्चित रूप से फल की प्राप्ति होती है। यह भी कहा जाता है कि भगवान कृष्ण को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए ब्रज की गोपियों ने माँ कात्यायनी की उपासना की थी। यह पूजा कालिंदी यमुना के तट पर की गई थी और इसी कारण देवी को ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी भी कहा जाता है।

नवरात्रि के छठे दिन माँ कात्यायनी की उपासना करने के लिए भक्तों को प्रातः स्नान करके पवित्र भाव से माँ का ध्यान करना चाहिए। माँ की प्रतिमा या चित्र के सामने दीप जलाकर उन्हें लाल वस्त्र अर्पित करना चाहिए। साथ ही, उनके समक्ष धूप, दीप, पुष्प और नैवेद्य अर्पित करें। माँ के प्रिय फूलों में विशेषकर गुड़हल और कमल का अर्पण किया जाता है। 

माँ कात्यायनी का ध्यान और मंत्र जाप करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। माँ का ध्यान करते हुए इस मंत्र का जाप करें:

"कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।  

नन्द गोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः॥"

इस मंत्र के जाप से देवी कात्यायनी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में शुभता का संचार होता है।

 माँ कात्यायनी की आराधना से होने वाले लाभ इस प्रकार हैं :-

भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति: माँ की उपासना से जीवन में भौतिक सुख-संपदा और आध्यात्मिक उन्नति दोनों ही मिलती हैं। भक्त के जीवन से सभी प्रकार के दुख और कष्ट समाप्त हो जाते हैं। शांति और मोक्ष की प्राप्ति:** माँ कात्यायनी की आराधना से भक्त को मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है और उन्हें जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है।

 धार्मिक कार्यों में सफलता: धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यों में सफलता प्राप्त करने के लिए माँ कात्यायनी की पूजा विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है।

 रोगों का नाश:  माँ की कृपा से शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है। 

इस प्रकार माँ कात्यायनी की आराधना करने से भक्त को जीवन के हर क्षेत्र में विजय प्राप्त होती है। वे न केवल भक्तों की मनोकामनाओं को पूरा करती हैं, बल्कि उन्हें परम शांति और आनंद का भी आशीर्वाद देती हैं। 

नवरात्रि के छठे दिन माँ कात्यायनी की पूजा करके अपने जीवन को सफल और समृद्ध बनाने का यह विशेष अवसर है।

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