विनोद kumar झा
हिन्दू धर्मपुराणों में हर व्रत -त्योहार का अपना-अपना महत्व है, इन सबमें बैकुंठ चतुर्दशी का विशेष महत्व है। क्योंकि यह एक ऐसा पवित्र दिन है, जब भगवान विष्णु और भगवान शिव की एकसाथ पूजा की जाती है। साल में यह एकमात्र दिन होता है जब दोनों महादेवताओं की एक साथ आराधना की जाती है, और इसे करने वाले भक्तों को स्वर्ग की प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन विधिपूर्वक पूजा और व्रत कथा का पाठ करने से सभी दुखों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-शांति का वास होता है।
बैकुंठ चतुर्दशी व्रत कथा
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एक बार भगवान विष्णु भगवान शिव की पूजा करने के उद्देश्य से काशी नगरी आए। उन्होंने पहले गंगा नदी में स्नान किया और फिर भगवान शिव को एक हजार स्वर्ण कमल पुष्प अर्पित करने का संकल्प लिया। जब वे पूजा कर रहे थे, तो उन्होंने देखा कि कमल के फूलों की संख्या कम हो गई है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने भगवान विष्णु की भक्ति की परीक्षा लेने के लिए एक फूल को छिपा दिया था।
जब भगवान विष्णु को फूल कम पड़े तो उन्होंने अपना एक नेत्र भगवान शिव को अर्पित करने का निश्चय किया, क्योंकि उन्हें 'कमल नयन' भी कहा जाता है। जब वे अपनी आंख चढ़ाने ही वाले थे, तभी भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें रोक दिया। भगवान विष्णु की इस भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान किया और कहा कि जो भक्त इस पवित्र दिन पर भगवान विष्णु की पूजा करेगा, उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होगी। तभी से इस दिन को बैकुंठ चतुर्दशी के रूप में मनाया जाने लगा।
बैकुंठ चतुर्दशी की दूसरी व्रत कथा
एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार देवर्षि नारद पृथ्वी पर भ्रमण करने के बाद बैकुंठ धाम पहुंचे। भगवान विष्णु ने उन्हें सम्मानपूर्वक स्थान दिया और उनसे उनके आने का कारण पूछा। नारद जी ने भगवान से कहा, "हे प्रभु, आपका नाम कृपानिधान है, और केवल आपके प्रिय भक्त ही मोक्ष प्राप्त कर पाते हैं। जो सामान्य भक्त हैं, उन्हें मोक्ष नहीं मिल पाता। कृपया ऐसा मार्ग बताइए, जिससे सामान्य भक्त भी आपकी भक्ति कर मोक्ष प्राप्त कर सकें।"
नारद जी की इस प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने कहा, "हे नारद, कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को जो नर-नारी व्रत का पालन करेंगे और श्रद्धा पूर्वक मेरी पूजा करेंगे, उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुले रहेंगे।" इसके बाद भगवान विष्णु ने अपने द्वारपाल जय-विजय को आदेश दिया कि वे इस दिन स्वर्ग का द्वार खुला रखें, ताकि इस दिन मेरी पूजा करने वाले भक्त सीधे बैकुंठ धाम को प्राप्त कर सकें।
इस प्रकार, बैकुंठ चतुर्दशी का यह पर्व सभी भक्तों के लिए एक सुनहरा अवसर है, जिसमें वे भगवान विष्णु और भगवान शिव की आराधना कर मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।