विनोद kumar झा Khabar Morning
"ईश्वर के प्रति अडिग भक्ति मृत्यु जैसी शक्ति को भी पराजित कर सकती है।"
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार जो व्यक्ति भगवान का भक्त होता है, उसका स्वामी स्वयं शिव होता है। ऐसे व्यक्ति पर मृत्यु का कोई अधिकार नहीं होता। यदि मृत्यु जबरन अधिकार जमाने का प्रयास करे, तो स्वयं उसकी मृत्यु हो जाती है। इसलिए भगवान आशुतोष को महाकाल कहा जाता है।
गोदावरी नदी के तट पर एक ब्राह्मण, श्वेत, निवास करते थे। वे दिन-रात भगवान सदाशिव की पूजा और ध्यान में लीन रहते थे। अतिथियों को वे शिवस्वरूप मानकर आदर-सत्कार करते थे। उनके जीवन का हर क्षण भगवान में केंद्रित था।
हालाँकि उनकी आयु पूर्ण हो चुकी थी, परंतु न उन्हें रोग था और न ही शोक, जिससे उन्हें मृत्यु का आभास नहीं हुआ। उनका पूरा जीवन शिवभक्ति में समर्पित था।
मृत्युदेव का असफल प्रयास
यमदूत समय पर श्वेत को लेने आए, लेकिन वे उनके घर में प्रवेश नहीं कर सके। चित्रगुप्त ने मृत्यु से पूछा, "श्वेत अब तक यहाँ क्यों नहीं आया? तुम्हारे दूत भी खाली हाथ क्यों लौट रहे हैं?" यह सुनकर मृत्युदेव को क्रोध आया और वे स्वयं श्वेत को लेने पहुँचे।
श्वेत के घर के द्वार पर यमदूत भय से काँपते दिखाई दिए। उन्होंने मृत्युदेव से कहा, "नाथ! श्वेत शिव के द्वारा सुरक्षित हैं। हम न तो उन्हें देख सकते हैं और न ही उनके पास पहुँच सकते हैं।"
दूतों की बात सुनकर मृत्युदेव ने स्वयं श्वेत पर फंदा डालने का प्रयास किया। लेकिन तभी भैरव बाबा प्रकट हुए और मृत्युदेव को चेतावनी दी। जब उन्होंने चेतावनी को अनसुना किया, तो भैरव बाबा ने अपने डंडे से उन पर प्रहार किया, जिससे मृत्यु की वहीं मृत्यु हो गई।
यमराज का आगमन
यमदूत भयभीत होकर यमराज के पास पहुँचे और घटना का विवरण दिया। यह सुनकर यमराज क्रोधित हो गए और अपनी सेना के साथ श्वेत के घर पहुँचे।
वहाँ पहले से भगवान शंकर के पार्षद उपस्थित थे। सेनापति कार्तिकेय ने अपनी शक्ति से यमराज और उनकी सेना को समाप्त कर दिया।
देवताओं की प्रार्थना और समाधान
यह समाचार सुनकर भगवान सूर्य अन्य देवताओं के साथ ब्रह्माजी के पास पहुँचे। ब्रह्माजी सभी देवताओं को लेकर घटनास्थल पर पहुँचे। देवताओं ने भगवान शंकर से प्रार्थना की, "भगवन, यमराज सूर्य के पुत्र हैं और लोकपाल हैं। उन्होंने कोई अपराध नहीं किया। कृपया इन्हें पुनर्जीवित करें, अन्यथा सृष्टि में अव्यवस्था उत्पन्न हो जाएगी।"
भगवान शंकर ने कहा, "वेदों में यह व्यवस्था है कि जो मेरे या विष्णु के भक्त हैं, उनके स्वामी स्वयं हम होते हैं। मृत्यु का उन पर कोई अधिकार नहीं होता। यमराज को यह आदेश दिया जाएगा कि वे भक्तों का सम्मान करें और उन्हें प्रणाम करें।"
इसके पश्चात भगवान शंकर ने नंदी के माध्यम से गौतमी गंगा (गोदावरी) का जल मृतकों पर छिड़कवाया। जल के स्पर्श से सभी मृत व्यक्ति स्वस्थ होकर जीवित हो उठे।