"'जटायु ने अपनी अंतिम सांस तक धर्म और न्याय के लिए रावण से युद्ध किया। बाद में श्रीराम और लक्ष्मण ने घायल जटायु को पाया, और जटायु ने अपनी अंतिम सांस श्रीराम की गोद में त्याग दी।"
नमस्कार दोस्तों! आज हम आपको रामायण के अरण्य कांड से एक प्रेरणादायक कथा सुनाने जा रहे हैं, जो धर्म, साहस और बलिदान की अद्वितीय मिसाल है। यह है गृद्धराज जटायु की वीरता और त्याग की कहानी।
जब रावण माता सीता का हरण कर अपने दिव्य रथ से लंका की ओर जा रहा था, तब माता सीता ने आकाश मार्ग में जटायु से सहायता की गुहार लगाई। जटायु, जो अरुण के पुत्र और सम्पाती के छोटे भाई थे, ने तुरंत रावण का सामना करने का निश्चय किया।
युद्ध के दौरान जटायु ने अपने पराक्रम से रावण के दिव्य रथ को नष्ट कर दिया, उसके घोड़ों और सारथी को मार गिराया, और रावण के कवच और धनुष को भी क्षतिग्रस्त कर दिया। इस भीषण संघर्ष के बाद रावण को पृथ्वी पर उतरने के लिए विवश होना पड़ा।
रावण, अपनी तलवार से जटायु के पंख और पैर काटकर अंततः माता सीता को हरण करने में सफल हो गया। परंतु जटायु ने अपनी अंतिम सांस तक धर्म और न्याय के लिए युद्ध किया। बाद में श्रीराम और लक्ष्मण ने घायल जटायु को पाया, और जटायु ने अपनी अंतिम सांस श्रीराम की गोद में त्याग दी।श्रीराम ने उनके बलिदान का सम्मान करते हुए उनका अंतिम संस्कार स्वयं किया और उन्हें मोक्ष प्रदान किया।
जटायु का जीवन यह संदेश देता है कि धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने के लिए बलिदान देना भी महान कर्तव्य है। उनका त्याग हमें सदैव साहस, निष्ठा, और परोपकार का पाठ पढ़ाता रहेगा।