विनोद kumar झा
वाल्मीकि रामायण में वर्णित कथा के अनुसार: लंकिनी ने हनुमान जी को लंका में प्रवेश करने की अनुमति दी और कहा, "रावण के पापों के कारण यह नगरी नष्ट होने वाली है। आप इसमें प्रवेश करें और माता सीता की खोज करें।"
वाल्मीकि रामायण के सुंदर कांड के तीसरे सर्ग में हनुमान जी के लंका में प्रवेश का वर्णन मिलता है। जब रात्रि में हनुमान जी लंका पहुंचे, तो लंका की भव्यता देखकर वह चकित रह गए। लंका के द्वार अमूल्य मणियों और चांदी से जड़े हुए थे। वहां की सीढ़ियां नीलम से बनी थीं, और भवन इतने ऊंचे थे कि वे आकाश को छूते प्रतीत होते थे।
हनुमान जी ने सोचा कि इतनी सुरक्षित नगरी को बलपूर्वक जीतना अत्यंत कठिन है। उन्होंने अपनी शक्ति पर विचार करते हुए लंका में प्रवेश का निश्चय किया। तभी लंका की अधिष्ठात्री देवी लंकिनी ने उन्हें रोका। लंकिनी स्वयं लंका नगरी की प्रतीक थी और राक्षसराज रावण की सेवा में लगी हुई थी।
लंकिनी ने हनुमान जी को रोकते हुए पूछा, "हे वानर, तू कौन है और किस उद्देश्य से यहाँ आया है? मेरे रहते इस पुरी में प्रवेश करना असंभव है।"
हनुमान जी ने विनम्रता से उत्तर दिया, "हे देवी, मैं इस लंका नगरी को देखने की इच्छा से आया हूँ। मैं इसे देखकर लौट जाऊंगा।"
लंकिनी ने क्रोधित होकर कहा, "राक्षसेश्वर रावण की रक्षा में यह नगरी मेरे अधिकार में है। बिना मुझे परास्त किए, तू प्रवेश नहीं कर सकता।"
इसके बाद लंकिनी ने हनुमान जी पर प्रहार किया। हनुमान जी ने सहजता से प्रहार सह लिया और हलके से अपने बाएं हाथ से लंकिनी को मुक्का मारा। इस प्रहार से लंकिनी धराशायी हो गई।
उसने तुरंत अपनी हार स्वीकार कर ली और कहा, "हे कपिश्रेष्ठ, ब्रह्माजी ने मुझे बताया था कि जब कोई वानर मुझे पराजित करेगा, तब राक्षसों के विनाश का समय आ जाएगा।
आज आपकी विजय से मुझे यह ज्ञात हो गया कि रावण और समस्त राक्षसों का अंत निकट है।" लंकिनी ने हनुमान जी को लंका में प्रवेश करने की अनुमति दी और कहा, "रावण के पापों के कारण यह नगरी नष्ट होने वाली है।
आप इसमें प्रवेश करें और माता सीता की खोज करें।" इसके पश्चात लंकिनी ने लंका को छोड़ दिया, और हनुमान जी ने लंका में प्रवेश कर माता सीता का पता लगाया। जय श्री राम जय हनुमान (साभार रामायण)