शिव के आंसुओं से जन्मा रुद्राक्ष: आस्था और रहस्यमय कथा

 विनोद kumar झा

"धार्मिक मान्यता है कि रुद्राक्ष धारण करने से भगवान शिव और देवी पार्वती की कृपा प्राप्त होती है। यह न केवल आध्यात्मिक उन्नति का साधन है, बल्कि मानसिक शांति और कल्याण का प्रतीक भी है।"

शिवपुराण में वर्णित कथा के अनुसार भगवान शिव के आंसुओं से उत्पन्न रुद्राक्ष को धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से बेहद पवित्र माना जाता है। वर्णित कथा के अनुसार, शिव के गहन तप के दौरान उनकी आंखों से गिरी आंसुओं की बूंदों से रुद्राक्ष वृक्ष का जन्म हुआ। यह फल, जो बाद में सूखकर पवित्र गुठली का रूप लेता है, विभिन्न मुखों और आकारों में मिलता है। रुद्राक्ष को उसकी गुणवत्ता, आकार और रंग के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में बांटा गया है और इसे शिव-पार्वती को प्रसन्न करने का माध्यम माना जाता है।

रुद्राक्ष एक प्रकार का जंगली फल है, जो हिमालय क्षेत्र, विशेष रूप से नेपाल में पाया जाता है। इसका फल जामुन जैसा नीला और स्वाद में बेर जैसा होता है। फल सूखने के बाद इसका छिलका हटाकर गुठली निकाली जाती है, जिसे असली रुद्राक्ष कहा जाता है। गुठली पर 1 से 14 धारियां होती हैं, जिन्हें मुख कहा जाता है।  

रुद्राक्ष को तीन आकारों में वर्गीकृत किया गया है:  

1. उत्तम श्रेणी : आंवले के आकार का।  

2. मध्यम श्रेणी : बेर के आकार का।  

3. निम्न श्रेणी : चने के आकार का।  

टूटे-फूटे, कीड़ों से खराब, या बिना उभरी धारियों वाले रुद्राक्ष को पहनने योग्य नहीं माना जाता। वहीं, जिसमें प्राकृतिक छेद हो, वह सबसे उत्तम माना जाता है।  

रुद्राक्ष को रंगों के अनुसार चार वर्गों में बांटा गया है:  

- सफेद रंग: ब्राह्मण  

- लाल रंग: क्षत्रिय  

- मिश्रित रंग: वैश्य  

- काला रंग: शूद्र  

धार्मिक मान्यता है कि रुद्राक्ष धारण करने से भगवान शिव और देवी पार्वती की कृपा प्राप्त होती है। 

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