Ramayan history: हनुमान जी के जन्म की पौराणिक कथा

"हनुमान जी के जन्म की कथा पढ़ने और उनका स्मरण करने से न केवल जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, बल्कि सभी प्रकार के कष्टों का नाश भी होता है। मंगलवार के दिन हनुमान जी के मंत्र जाप, सुंदरकांड का पाठ और उनकी कथा सुनने से विशेष फल प्राप्त होता है।"

रामायण में वर्णित कथा के अनुसार, पवनपुत्र हनुमान जी का जन्म चैत्र पूर्णिमा के दिन मंगलवार को मेष लग्न और विशेष नक्षत्र में हुआ था। उनके पिता वानरराज केसरी थे, जो सुमेरु पर्वत के राजा थे, और उनकी माता अंजनी थीं। रामचरितमानस और अन्य पौराणिक ग्रंथों में हनुमान जी के जन्म से जुड़ी अनेक अद्भुत कथाएँ वर्णित हैं।  

वानरराज केसरी को ऋषियों का वरदान  :एक बार वानरराज केसरी प्रभास तीर्थ पहुँचे, जहाँ उन्होंने ऋषियों को पूजा करते देखा। उसी समय एक विशाल हाथी वहाँ आया और यज्ञ में बाधा डालने लगा। यह देख केसरी ने अपने अद्भुत पराक्रम से उस हाथी को मार गिराया। इससे प्रसन्न होकर ऋषियों ने उन्हें वरदान दिया कि उनके घर में पवन के समान पराक्रमी और रुद्र के अंश से युक्त पुत्र जन्म लेगा।  

पवन देव और माता अंजनी : एक अन्य कथा के अनुसार, माता अंजनी एक दिन मानव रूप धारण कर पर्वत के शिखर की ओर जा रही थीं। वहाँ सूर्य की अद्भुत लालिमा को निहारते हुए वे मंत्रमुग्ध हो गईं। उसी समय तेज हवा चलने लगी, जिससे उनके वस्त्र उड़ने लगे। यह देख उन्हें लगा कि कोई मायावी राक्षस उनका अपमान करने का प्रयास कर रहा है।  

अंजनी के क्रोधित होने पर पवन देव उनके समक्ष प्रकट हुए और क्षमा याचना करते हुए बोले, "हे देवी, आपके पति को ऋषियों द्वारा मेरे समान पराक्रमी पुत्र का वरदान मिला है। मैं केवल इस वरदान को पूर्ण करने के लिए आपके समीप आया हूँ। मेरे अंश से आपको एक महातेजस्वी और अद्भुत पुत्र प्राप्त होगा। भगवान रुद्र स्वयं आपके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे।"  

हनुमान जी का जन्म :इस प्रकार वानरराज केसरी और माता अंजनी के यहाँ भगवान शिव के ग्यारहवें रुद्रावतार के रूप में हनुमान जी का जन्म हुआ। वे अपने अनोखे पराक्रम, भक्ति और तेजस्विता के लिए प्रसिद्ध हुए।  

(साभार वाल्मीकि रामायण)

(जय श्री राम जय हनुमान)

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