विनोद kumar झा
"वाल्मीकि रामायण के इस अद्भुत वर्णन से हमें महाबली हनुमान की अतुलित शक्ति और साहस का परिचय मिलता है। भगवान श्रीराम जी द्वारा जिन्हें "अतुलित बलधाम" कहा गया है, उनके बल की कोई सीमा नहीं हो सकती।"
वाल्मीकि रामायण के किष्किंधा कांड के 67वें सर्ग में वर्णित कथा के अनुसार हनुमान जी को अपनी शक्ति को भूल जाने का श्राप था। यही कारण था कि जब वानर सेना समुद्र के किनारे खड़ी होकर लंका जाने की योजना बना रही थी, तब विभिन्न वानरों ने अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार समुद्र पार करने की बात कही। लेकिन अंततः ऋक्षराज जांबवंत ने हनुमान जी को उत्साहित किया और समुद्र लांघने का आग्रह किया। जांबवंत जी के प्रेरणा देने पर हनुमान जी को अपनी समस्त शक्ति का ज्ञान हुआ और उन्होंने अपनी क्षमता का अद्भुत वर्णन किया।
वाल्मीकि रामायण के किष्किंधा कांड के 67वें सर्ग में हनुमान जी द्वारा अपनी शक्ति के इस वर्णन का सुंदर चित्रण मिलता है। जब हनुमान जी समुद्र लांघने के लिए तैयार हुए, उन्होंने अपना विराट स्वरूप धारण कर लिया। उनका विशाल रूप देखकर सभी वानर अत्यंत उत्साहित हो गए और जोर-जोर से गर्जना करने लगे। उस समय हनुमान जी ने समस्त वानरों को उस प्रकार देखा जैसे भगवान वामन ने अपने विराट रूप में संपूर्ण सृष्टि को देखा था। सभी का उत्साह देखकर हनुमान जी ने अपने शरीर को और भी बढ़ाना शुरू किया और अपनी पूंछ को ज़ोर-ज़ोर से पटकने लगे। उनका मुख अग्नि की तरह प्रज्वलित हो उठा।
इसके बाद महाबली हनुमान ने अपनी शक्ति का वर्णन करते हुए कहा, "आकाश में विचरण करने वाले वायुदेवता असीम बलवान हैं, और उनकी गति अकल्पनीय है। मैं उन्हीं वायुदेव का पुत्र हूँ। छलांग लगाने में मैं उनके समान हूँ।
मैं हजारों योजन के महासागर को भी बिना थके पार कर सकता हूँ। अपने भुजाओं के वेग से मैं महासागर को रोक सकता हूँ और उसकी लहरों से पूरी पृथ्वी को जलमग्न कर सकता हूँ। मेरे वेग से गरुड़ भी पराजित हो सकते हैं, और सूर्यदेव को छूने के बाद भी मैं तुरंत पृथ्वी पर वापस आ सकता हूँ।"
उन्होंने कहा, "यदि आवश्यकता पड़ी तो मैं महासागर को सुखा सकता हूँ, पर्वतों को तोड़ सकता हूँ, और समस्त ब्रह्मांड को हिला सकता हूँ। मैं लंका को अवश्य पार करूंगा और जानकी माता के दर्शन करूंगा। मेरा विश्वास है कि मैं 10 योजन नहीं, बल्कि 10,000 योजन तक जा सकता हूँ। आवश्यकता पड़ने पर लंका को उखाड़कर श्रीराम के चरणों में रख सकता हूँ।"
हनुमान जी की बातें सुनकर सभी वानर चकित हो गए और जांबवंत जी अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा, "केसरीनंदन! तुमने हमारा शोक नष्ट कर दिया है। हम सभी तुम्हारी सफलता के लिए स्वस्तिवाचन करेंगे। अब तुम लंका जाकर माता सीता का पता लगाओ। हम तुम्हारे लौटने की प्रतीक्षा करेंगे।" इसके बाद हनुमान जी महेंद्र पर्वत पर चढ़ गए। उनके भार से पर्वत कांपने लगा, झरने फूट पड़े, और वृक्ष उखड़ने लगे। पर्वत पर रहने वाले जीव-जंतु भयभीत होकर भागने लगे। हनुमान जी ने सूर्य, इंद्र, वायु और ब्रह्मा को प्रणाम किया और पूरे वेग के साथ समुद्र लांघने के लिए छलांग लगा दी।
हनुमान जी का वेग इतना तीव्र था कि महेंद्र पर्वत धंस गया। उनके साथ आकाश में वृक्ष और लताएं उड़ने लगीं। वह किसी उल्का की भांति समुद्र के ऊपर उड़ते हुए दिखाई दे रहे थे।
जय श्रीराम, जय हनुमान