विनोद kumar झा Khabar Morning
वाल्मीकि रामायण में वर्णित कथा के अनुसार मेघनाद, रावण का पराक्रमी पुत्र, एक महान योद्धा के रूप में वर्णित है। उसे 'इंद्रजीत' इसलिए कहा गया क्योंकि उसने इंद्र पर विजय प्राप्त की थी। वहीं, उसका नाम 'मेघनाद' इसलिए पड़ा क्योंकि वह मेघों की आड़ में युद्ध करता था।
युद्ध के दौरान मेघनाद ने श्रीराम और लक्ष्मण को हराने के हर संभव प्रयास किए, लेकिन वह असफल रहा। अंततः लक्ष्मण ने घातक बाण से उसका वध कर दिया और उसका सिर धड़ से अलग कर दिया।
#सुलोचना को समाचार
मेघनाद की पत्नी सुलोचना को उसके पति की मृत्यु की सूचना देने के लिए श्रीराम ने मेघनाद की एक भुजा को उसके महल में भिजवाया। सुलोचना को विश्वास नहीं हुआ और उसने उस भुजा से प्रमाण मांगा। तभी वह भुजा हरकत करने लगी और जमीन पर लक्ष्मण की प्रशंसा के शब्द लिख दिए। यह देख सुलोचना को यकीन हो गया कि मेघनाद अब नहीं रहे।
#रावण और सुलोचना का संवाद
सुलोचना ने रावण से अपने पति का सिर मांगा ताकि वह उनके साथ सती हो सके। रावण ने उसे प्रतीक्षा करने को कहा, लेकिन सुलोचना को उस पर विश्वास नहीं हुआ। तब वह मंदोदरी के पास गई। मंदोदरी ने उसे श्रीराम की शरण में जाने की सलाह दी।
#सुलोचना की श्रीराम से विनती
सुलोचना ने श्रीराम से अपने पति का सिर लौटाने की विनती की। श्रीराम ने उसकी दशा देखकर उसे सिर लौटाने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा, "मैं तुम्हारे पति को जीवित कर सकता हूं।" लेकिन सुलोचना ने उत्तर दिया, "मैं नहीं चाहती कि मेरे पति संसार के कष्टों को पुनः भोगें। आपका दर्शन पाकर मेरा जीवन सफल हो गया है। अब मुझे सती होने दीजिए।"
#सुलोचना का सतीत्व की परीक्षा
जब सुग्रीव मेघनाद का सिर लेकर आए, तो उन्होंने संदेह व्यक्त किया कि मेघनाद का कटे हाथ लक्ष्मण की प्रशंसा कैसे कर सकता है। उन्होंने कहा, "मैं तभी मानूंगा जब यह सिर हंसेगा।"
सुलोचना के सतीत्व की यह बहुत बड़ी परीक्षा थी। उसने कटे हुए सिर से कहा, ‘हे स्वामी! ज्लदी हंसिए, वरना आपके हाथ ने जो लिखा है, उसे ये सब सत्य नहीं मानेंगे। इतना सुनते ही मेघनाद का कटा सिर जोर-जोर से हंसने लगा। इस तरह सुलोचना अपने पति की कटा हुए सिर लेकर चली गईं।’
#सुलोचना की अंतिम इच्छा
सिर को प्राप्त कर सुलोचना ने कहा, "मेरे पति का सिर अब मेरे पास है। मैं उनके साथ सती होकर इस संसार से विदा लेना चाहती हूं।" इस तरह, सुलोचना ने अपने पति के साथ सती होकर अपने प्रेम और समर्पण की अद्वितीय मिसाल पेश की।
यह कथा सतीत्व, कर्तव्य और सत्य की शक्ति को उजागर करती है और रामायण के अन्य प्रसंगों की तरह हमें गहरी शिक्षा देती है।