Ramayan history: जटायु-रावण युद्ध की कथाएं...

रामायण की कथा में गृद्धराज जटायु का नाम उस निस्वार्थ साहस के प्रतीक के रूप में अमर है, जिन्होंने माता सीता की रक्षा के लिए अपने प्राण तक त्याग दिए। जब रावण सीता का हरण कर दिव्य रथ से आकाश मार्ग से जा रहा था, तब जटायु ने अपनी वृद्धावस्था के बावजूद उसका मार्ग रोका। उन्होंने रावण को समझाने का प्रयास किया, लेकिन जब वह नहीं माना, तो युद्ध छिड़ गया।

जटायु ने अपने अद्वितीय पराक्रम से रावण के रथ को तोड़ दिया, उसके धनुष और कवच को नष्ट कर दिया, और उसके रथ के अश्वों तथा सारथी को मार गिराया। रावण को मजबूर होकर अपने साधन छोड़कर माता सीता को कंधे पर लेकर आकाश मार्ग से भागना पड़ा। हालांकि, अंततः रावण ने अपनी तलवार से जटायु के पंख काट दिए, जिससे वह भूमि पर गिर पड़े।

मृत्यु शैय्या पर पड़े जटायु ने श्रीराम को माता सीता के हरण की जानकारी दी और उनके चरणों में प्राण त्याग दिए। श्रीराम ने जटायु को पिता समान मानते हुए उनका विधिपूर्वक अंतिम संस्कार किया। यह प्रसंग न केवल जटायु की वीरता का, बल्कि धर्म के प्रति उनकी निस्वार्थ भक्ति का भी अद्वितीय उदाहरण है।

पहली बात तो ये कि अधिकतर लोगों को ये लगता है कि रावण माता सीता का हरण करके अपने पुष्पक विमान से ले गया था जबकि रावण सीता हरण के लिए आकाश मार्ग से उड़ने वाले एक दिव्य रथ से आया था । गृद्धराज जटायु ने अपने पराक्रम से रावण के उस रथ को तोड़ दिया था जिसके बाद रावण को माता सीता को स्वयं ही आकाश मार्ग से हरण कर ले जाना पड़ा था। इन दोनों के अद्भुत युद्ध का वर्णन हमें अरण्य कांड के सर्ग 50 और 51 में मिलता है।

इसके अनुसार जब रावण माता सीता का हरण कर अपने रथ से आकाश मार्ग से जा रहा था तो माता सीता की दृष्टि जटायु पर पड़ी और उन्होंने उन्हें सहायता के लिए पुकारा। उस समय जटायु सो रहे थे किन्तु उनकी आवाज सुनकर वे तुरंत उठ कर रावण के रथ के सामने आ गए। उन्होंने सीधे युद्ध करने से पहले रावण को भांति-भांति से समझाया कि उसने माता सीता का हरण कर बहुत बड़ी गलती कर दी है और उसे उन्हें तत्काल मुक्त कर देना चाहिए, किन्तु रावण ने ऐसा नहीं किया।

तब जटायु ने कहा कि "हे रावण! मैं बूढ़ा हो गया हूँ और तुम नवयुवक हो। मेरे पास युद्ध का कोई साधन नहीं है और तुम्हारे पास रथ, सारथी, धनुष, बाण, कवच इत्यादि सब है, फिर भी मेरे रहते तुम विदेहकुमारी को नहीं ले जा सकते। श्रीराम और लक्ष्मण इस समय बहुत दूर हैं। यदि मैं उन्हें बुलाने जाऊं तो तुम शीघ्र ही भाग जाओगे। इसीलिए मुझे ही प्राण देकर भी श्रीराम और दशरथ का प्रिय कार्य अवश्य करना होगा।"

यहाँ ये बताना आवश्यक है कि उस समय रावण की आयु भी बहुत अधिक थी। वैसे तो उसकी आयु के बारे में स्पष्ट रूप से कोई वर्णन नहीं मिलता किन्तु फिर भी उसके शासन काल की गणना से पता चलता है कि उस समय रावण की आयु भी 40000 वर्ष से अधिक थी। किन्तु फिर भी वो जटायु से 20000 वर्ष छोटा था इसीलिए जटायु ने उसे नवयुवक कहा। 

फिर दोनों में घोर युद्ध आरम्भ हुआ। दोनों एक दूसरे पर भीषण प्रहार करने लगे। रावण ने जटायु पर अनेकों बाणों की वर्षा कर दी किन्तु जटायु ने उस आघात को सह लिया। फिर जटायु ने अपने पंजों से मार कर रावण के शरीर में अनेको घाव कर दिए। तब रावण ने क्रोध में आकर 10 दिव्य बाण मार कर जटायु के शरीर और पंखों को क्षत-विक्षत कर दिया। इससे जटायु को अपार कष्ट हुआ किन्तु ये देख कर कि माता सीता रथ पर बैठी रो रही थी, वे पुनः रावण पर टूट पड़े।

जटायु ने सबसे पहले रावण के अमोघ धनुष को अपने दोनों पैरों से से मार कर तोड़ दिया। इस पर रावण दूसरा धनुष लेकर उससे जटायु पर बाण वर्षा करने लगा। तब जटायु ने अपने विशाल पंखों से उन सभी बाणों को तिनके के समान उड़ा दिया और फिर से उसके धनुष को तोड़ डाला। इसके बाद जटायु ने अपने पंजों से रावण के अग्नि के समान उज्वल कवच को भी छिन्न-भिन्न कर दिया।

इसके बाद महाबली जटायु ने रावण के रथ में जुते हुए अश्वों को भी मार डाला और उसके उस दिव्य रथ को भी तोड़-फोड़ डाला, उसके छत्र और चंवर को उड़ा दिया और अपनी चोंच के प्रहार से रावण के सारथि का मस्तक भी धड़ से अलग कर दिया। रथ के नष्ट हो जाने पर रावण माता सीता के साथ पृथ्वी पर गिर पड़ा। उधर वृद्धावस्था के कारण जटायु भी अपने इस पराक्रम के बाद थक गए।

उन्हें थका हुआ देख कर रावण बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने तत्काल माता सीता को आकाश मार्ग से वहां से जाने लगा। उसके सारे साधन नष्ट हो चुके थे किन्तु एक तलवार उसके पास बची थी। रावण को भागता देख कर जटायु पुनः उसके पीछे लपके। उन्होंने रावण को बड़ी खरी-खोटी सुनाई और फिर रावण की पीठ पर बैठ कर उसे अपने पंजों से चीरने लगे। उन्होंने अपने पंजों से रावण की पीठ को चीर डाला और चोंच से रावण के केशों को नोच लिया।

उस समय जटायु के प्रहारों से त्रस्त होकर रावण ने जटायु पर प्रहार किया। किन्तु जटायु ने अद्भुत पराक्रम दिखाते हुए रावण की दसों बायीं भुजाओं को अपने चोंच से मार-मार कर उखाड़ डाला। किन्तु रावण के उन बाँहों के कट जाने पर तत्काल नयी भुजाएं उत्पन्न हो गयी। फिर रावण क्रोधपूर्वक अपने मुक्कों और लातों से जटायु पर प्रहार करने लगा।

दोनों वीरों में बहुत देर तक युद्ध होता रहा। तब विलम्ब होता देख कर और इस डर से कि कहीं श्रीराम और लक्ष्मण लौट ना आएं, रावण ने अपनी तलवार से जटायु के दोनों पंखों, पैरों और उसके पार्श्वभाग को काट डाला। इससे जटायु विवश हो भूमि पर गिर पड़े। ये देख कर माता सीता जटायु को पकड़ कर विलाप करने लगी। किन्तु असहाय होने के कारण रावण अंततः उनका हरण कर आकाश मार्ग से लंका चला गया।

बाद में माता सीता को ढूंढते हुए श्रीराम और लक्ष्मण अपनी अंतिम साँस ले रहे जटायु से मिले और जटायु ने उन्ही की गोद में अपने प्राण त्यागे। तत्पश्चात श्रीराम और लक्ष्मण ने उनका अंतिम संस्कार किया और माता सीता की खोज में आगे बढे।

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