प्रयागराज: संगम तट पर सजी अद्भुत और अलौकिक दुनिया

संगम तट का विहंगम दृश्य:  इरशाद अहमद और आबिद हुसैन की ख़ास रिपोर्ट

प्रयागराज में संगम तट की रेती पर एक दिव्य और भव्य संसार साकार हो चुका है। करीब 40 वर्ग किलोमीटर में फैला यह महाकुंभ मेले का क्षेत्र न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि विविधता और संस्कृति के अनगिनत रंगों का संगम भी है। दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला करीब 45 दिन तक चलेगा, जिसमें 40-45 करोड़ श्रद्धालु संगम में डुबकी लगाकर पुण्य अर्जित करेंगे।  

गौरतलब है कि महाकुंभ का यह आयोजन कई अद्वितीय रिकॉर्ड अपने नाम करता है। विश्व के 195 देशों में से 193 की जनसंख्या भी इससे कम है। यहां तक कि अमेरिका जैसी महाशक्ति की आबादी भी लगभग 35 करोड़ है। महाकुंभ के इन आंकड़ों और इसकी अद्वितीयता ने इसे विश्वभर में अद्भुत और अकल्पनीय बना दिया है।  

समुद्र मंथन और कुंभ की पौराणिक कथा

महाकुंभ की शुरुआत की कथा भी उतनी ही अद्भुत है जितना यह आयोजन। वेद-पुराणों और पौराणिक ग्रंथों में कुंभ की उत्पत्ति का संबंध समुद्र मंथन से जोड़ा गया है। धर्मग्रंथों के अनुसार, जब धर्म का शासन होता है, तो उत्तम वस्तुएं सभी के लिए सुलभ होती हैं। लेकिन जब अधर्म का वर्चस्व बढ़ता है, तो ये उत्तम वस्तुएं विलुप्त होने लगती हैं।  

कथा के अनुसार, एक समय ऐसा आया जब असुरों का शासन स्थापित हो गया और उत्तम चीजें अदृश्य हो गईं। देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन का निर्णय लिया ताकि अमृत सहित अन्य दिव्य वस्तुएं प्राप्त की जा सकें। इस मंथन में 14 रत्न निकले, जिनमें अमृत भी शामिल था। अमृत को लेकर देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष हुआ, जिसके बाद अमृत कुंभ से संबंधित घटनाओं की शुरुआत हुई।  

समुद्र मंथन से जुड़ी इस कथा को महाकुंभ मेले की पृष्ठभूमि माना जाता है। 

कुंभ का आयोजन हर 12 वर्षों में होता है, और यह आयोजन न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। प्रयागराज का कुंभ विश्वभर के श्रद्धालुओं को एकत्रित करने वाला ऐसा आयोजन है, जो भारत की समृद्ध परंपरा और अध्यात्मिकता का प्रतीक है।  

महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की संस्कृति और धरोहर का अद्भुत परिचय है। यहां आने वाले श्रद्धालु न केवल पुण्य अर्जित करते हैं, बल्कि इस आयोजन के माध्यम से भारत की आध्यात्मिक शक्ति को भी महसूस करते हैं।  

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