विनोद kumar झा
धर्म ग्रंथ रामायण में वर्णित कथा के अनुसार जब रावण माता सीता का हरण कर उन्हें अशोक वाटिका में लेकर आया, तब उनकी स्थिति अत्यंत दुखद और निराशाजनक थी। यह घटना त्रेतायुग की वह घड़ी थी, जिसने रामायण के प्रसंग को एक नए मोड़ पर ला दिया। उसी रात, ब्रह्मा जी के निर्देश पर देवराज इंद्र माता सीता के लिए स्वर्गलोक से दिव्य खीर लेकर अशोक वाटिका पहुंचे।
इंद्रदेव ने अशोक वाटिका में उपस्थित सभी राक्षसों को अपनी मायावी शक्ति से मोहित कर गहरी निद्रा में सुला दिया। इसके बाद उन्होंने माता सीता के पास पहुंचकर उन्हें खीर अर्पित की। यह खीर दिव्य और अद्भुत थी, जिसके सेवन से माता सीता की भूख और प्यास शांत हो गई।
इस प्रसंग का महत्व केवल इतना ही नहीं कि माता सीता को राहत मिली, बल्कि यह भी दर्शाता है कि दैवीय शक्तियां सदैव धर्म की रक्षा और सत्पुरुषों की सहायता के लिए तत्पर रहती हैं। यह कथा रामायण में देवताओं की भूमिका और उनकी करुणा को भी उजागर करती है।
देवराज इंद्र द्वारा अर्पित इस खीर का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में उस समय की दिव्यता और धर्म की स्थापना के प्रयासों के प्रतीक के रूप में किया गया है। यह प्रसंग हमें यह संदेश देता है कि विपत्तियों के समय भी धर्म का साथ देने वाले अदृश्य हाथ सदैव हमारी रक्षा के लिए सक्रिय रहते हैं।