विनोद कुमार झा
जय श्रीकृष्णा! आप पढ़ रहे हैं हमारी विशेष लेख जिनमें महाभारत काल में घटित घटनाओं में से एक अत्यंत रोचक और रहस्यमय प्रसंग द्रौपदी का जन्म, उसका स्वयंवर, और पांच पांडवों से विवाह की कथा जो आज भी चर्चा का विषय बना हुआ है। आइए जानते हैं विस्तार से: महाभारत ग्रंथ में वर्णित कथा के अनुसार, द्रौपदी को पांचाली बनने की कहानी अत्यंत रोचक और रहस्यमय है। इसे विभिन्न घटनाओं और वरदानों से जोड़ा गया है। भगवान शिव के वरदान से द्रौपदी पांचाली बनी। महाभारत के अनुसार, द्रौपदी का पूर्वजन्म में एक ऋषि की पुत्री के रूप में जन्म हुआ था। वह अत्यंत रूपवान और गुणवान थी, लेकिन पूर्वजन्म के कर्मों के कारण कोई भी उसे पत्नी रूप में स्वीकार नहीं कर सका। इससे आहत होकर उसने भगवान शिव की घोर तपस्या की।
शिवजी उसकी तपस्या से प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा। अत्यधिक प्रसन्न होकर उसने बार-बार कहा, "मैं सर्वगुण संपन्न पति चाहती हूं।" यह बात उसने पाँच बार कही। शिवजी ने मुस्कुराते हुए कहा, "तूने मुझसे पाँच बार पति के लिए प्रार्थना की है, इसलिए अगले जन्म में तुझे एक नहीं, बल्कि पाँच पति मिलेंगे।"
राजा द्रुपद का यज्ञ और द्रौपदी का जन्म: राजा द्रुपद ने गुरु द्रोणाचार्य से पराजित होने के बाद बदला लेने का निश्चय किया। उन्होंने याज और उपयाज नामक ब्राह्मणों की मदद से एक यज्ञ किया। इस यज्ञ के परिणामस्वरूप अग्निकुंड से एक पुत्र और एक पुत्री का जन्म हुआ। पुत्र का नाम धृष्टद्युम्न रखा गया, जो द्रोणाचार्य का वध करने के लिए उत्पन्न हुआ। पुत्री को "कृष्णा" नाम दिया गया, जो आगे चलकर "द्रुपद की पुत्री" होने के कारण द्रौपदी कहलाई।
द्रौपदी और शिवजी का वरदान: द्रौपदी का पूर्व जन्म में एक ऋषि की पुत्री के रूप में जन्म हुआ था। वह अत्यंत रूपवान और गुणवान थी। लेकिन किसी ने उसे पत्नी रूप में स्वीकार नहीं किया, जिससे आहत होकर उसने भगवान शिव की तपस्या की। शिवजी ने प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा। द्रौपदी ने पांच बार कहा कि उसे सर्वगुण संपन्न पति चाहिए। शिवजी ने कहा कि अगले जन्म में उसे पांच पति प्राप्त होंगे, क्योंकि उसका पांच बार पति मांगने का वरदान व्यर्थ नहीं जा सकता।
इस पर द्रौपदी ने कहा, "मैं तो एक ही पति चाहती थी।" लेकिन भगवान शिव ने कहा कि उनका वरदान व्यर्थ नहीं जाता। यही कारण था कि अगले जन्म में द्रौपदी ने पाँच पांडवों से विवाह किया और "पांचाली" कहलायी।
द्रौपदी का स्वयंवर: द्रौपदी के स्वयंवर में राजा द्रुपद ने यह शर्त रखी कि जो योद्धा घूमते हुए यंत्र के छिद्र में से लक्ष्य भेदेगा, उसी से द्रौपदी का विवाह होगा। अर्जुन ने ब्राह्मण वेश में आकर यह कठिन कार्य पूरा किया। द्रौपदी ने उन्हें अपना वर चुना।
जब अर्जुन और भीम द्रौपदी को अपने निवास पर लेकर आए और अपनी माता कुंती से कहा कि "हम भिक्षा लाए हैं," तो बिना देखे ही कुंती ने कह दिया, "सभी मिलकर इसे ग्रहण करो।" कुंती के इस वचन को निभाने के लिए व्यास मुनि ने द्रौपदी और पांडवों के पूर्व जन्म की कथा सुनाई। इसके बाद द्रौपदी का विवाह पांचों पांडवों से हुआ, और वह "पांचाली" कहलाई।
व्यास मुनि की कथा: व्यास मुनि ने बताया कि द्रौपदी स्वर्ग की लक्ष्मी का मानवी रूप थी, और पांडव पांच इंद्रों के रूप में रुद्र के शाप से मानव रूप में जन्मे थे। यह विवाह उनकी नियति और शिवजी के वरदान का परिणाम था।