संगम में डुबकी लगाने जा रहे हैं तो अक्षय वट और लेटे हुए हनुमान जी के दर्शन करना न भूलें?

विनोद kumar झा

अगर आप महाकुंभ प्रयागराज में आस्था की डुबकी लगाने जा रहे हैं, तो यहां स्थित पवित्र अक्षय वट और लेटे हुए हनुमान जी के दर्शन करना न भूलें। यह वट वृक्ष न केवल धार्मिक बल्कि पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व भी रखता है। आइए जानते हैं विस्तार से.....

अक्षय वट: अमरता का प्रतीक : अक्षय वट प्रयागराज (प्राचीन इलाहाबाद) के संगम तट पर स्थित एक पवित्र और विशाल बरगद का वृक्ष है। इसे अमरता और सृष्टि के चिरस्थायी चक्र का प्रतीक माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सृष्टि की पहली प्रलय के दौरान, जब संपूर्ण पृथ्वी जलमग्न हो गई थी, तब केवल अक्षय वट ही अडिग और स्थिर खड़ा रहा। 

पौराणिक कथाएं के अनुसार  एक बार भगवान शिव ने इस वृक्ष को अमरता का वरदान दिया था, जिससे यह हर प्रलय का साक्षी बना रहेगा। ऐसी मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचते समय इसे ऊर्जा का केंद्र बताया था। यह कहा जाता है कि जो इस वृक्ष के नीचे ध्यान करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

धार्मिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार कहा जाता है कि बाल भगवान श्रीकृष्ण ने इसी वृक्ष के नीचे अपने विराट स्वरूप का दर्शन करवाया था, जिससे इसे अमृत का साक्षी कहा गया। पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार ऋषि मार्कंडेय और कई अन्य ऋषियों ने यहां तपस्या की और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया।

इतिहास के पन्नों में दर्ज कहानी के अनुसार मुगल सम्राट अकबर ने 1583 में प्रयागराज के त्रिवेणी संगम पर भव्य किले का निर्माण करवाया, जिसमें अक्षय वट को संरक्षित किया गया। यह किला आज भी शहर के समृद्ध इतिहास और वास्तुकला की झलक दिखाता है।

श्री बड़े हनुमान जी का मंदिर : संगम के किनारे स्थित लेटे हुए हनुमान जी का मंदिर प्रयागराज का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। लगभग 20 फीट लंबी और 6-7 फीट जमीन के नीचे तक स्थित यह प्रतिमा 600-700 साल पुरानी मानी जाती है।  

 धार्मिक ग्रंथों में वर्णित कथाओं के अनुसार लंका विजय के बाद जब हनुमान जी थक गए, तो माता सीता के कहने पर उन्होंने संगम किनारे विश्राम किया था। इस प्रतिमा के दर्शन के बिना संगम स्नान अधूरा माना जाता है।  माना जाता है कि इस प्रतिमा की स्थापना संत समर्थ गुरु रामदास जी या एक व्यापारी द्वारा की गई थी। 

आनंद भवन : स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा आनंद भवन कभी नेहरू परिवार का निवास स्थान था। 1930 में यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का मुख्यालय बना। आज यह ऐतिहासिक संग्रहालय और जवाहर तारामंडल के लिए प्रसिद्ध है।

प्रयागराज के धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों का दर्शन न केवल आध्यात्मिक लाभ देता है, बल्कि यह हमें शहर की पौराणिक और सांस्कृतिक धरोहर से भी परिचित कराता है। महाकुंभ के दौरान यहां का अनुभव आपको आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध करेगा।

Post a Comment

Previous Post Next Post