विनोद कुमार झा
जय श्रीराम! आप पढ़ रहे हैं हमारा विशेष लेख, जिसमें रामभक्त हनुमान जी के अद्भुत पराक्रम और रावण की स्वर्णमयी लंका की भव्यता का अनुपम प्रसंग शामिल है। आइए, जानते हैं कि हिन्दू धर्मग्रंथ रामायण में रावण की लंका का कैसे दिव्य और समृद्धिपूर्ण वर्णन किया गया है, जो उसकी वैभवशाली संस्कृति और संपन्नता को दर्शाता है। विशेष रूप से वाल्मीकि रामायण के सुंदरकांड के चौथे सर्ग में जब हनुमान जी माता सीता की खोज में लंका में प्रवेश करते हैं, तो वे वहां की अद्भुत भव्यता देखकर अचंभित हो जाते हैं। आइए जानते हैं, लंका की इस विलक्षण नगरी के बारे में विस्तार से।
लंका में प्रवेश के बाद क्या देखा हनुमान जी ने?
हनुमान जी ने लंका में प्रवेश करते ही देखा कि यह नगरी अद्वितीय और स्वर्ग के समान सुंदर है। वहां के घर विशाल और हीरे-मोती से जड़े झरोखों वाले थे। हर घर से संगीत की मधुर ध्वनि सुनाई दे रही थी। लंका की स्त्रियां अप्सराओं जैसी सुंदर थीं, और राक्षस मंत्र जाप और स्वाध्याय में लीन दिखे।
हनुमान जी ने राजमार्ग पर रावण की जयजयकार करती हुई भीड़ देखी और रावण के गुप्तचरों को अद्भुत रूपों और असाधारण अस्त्र-शस्त्रों के साथ घूमते पाया। इसके अलावा, उन्होंने 1,00,000 राक्षसों की सेना को लंका के मध्य भाग की रक्षा करते हुए देखा।
रावण का स्वर्ण महल : लंका के मध्य में त्रिकूट पर्वत पर स्थित रावण का महल स्वर्ण फाटकों से युक्त और स्वर्गलोक के समान प्रतीत होता था। सात मंजिला यह महल सोने, हाथी दांत, बहुमूल्य पत्थरों और चित्रों से सुसज्जित था। इसके चारों ओर रथ, अश्व, गज और विशाल सेना तैनात थी।
महल में पुष्पक विमान ने हनुमान जी का ध्यान खींचा। यह अद्भुत विमान स्वर्ण, रत्नों और दिव्य कलाकारी से बना था। इसे विश्वकर्मा ने ब्रह्माजी के लिए बनाया था, जो बाद में कुबेर और फिर रावण के पास पहुंचा। इस विमान की विशेषता थी कि यह मन की इच्छा के अनुसार कहीं भी जा सकता था। हनुमान जी इसे देखकर मंत्रमुग्ध हो गए।
रावण के महल का वैभव : रावण के महल की चौड़ाई आधा योजन और लंबाई एक योजन थी। महल में अनेकों कन्याएं, रावण की पत्नियां, और सेवक-सेविकाएं थीं। इसके मध्य में एक विशाल शैय्या थी, जो स्वर्ण, वैदूर्यमणि और अन्य कीमती रत्नों से बनी थी। इसपर रावण सो रहा था, और उसके चारों ओर सुंदरियां चंवर लिए खड़ी थीं।
हनुमान जी ने वहां मंदोदरी को सोते हुए देखा। उनकी सुंदरता को देखकर एक पल के लिए उन्होंने सोचा कि यह माता सीता हो सकती हैं, परंतु तुरंत ही समझ गए कि श्रीराम से बिछड़ने के बाद माता सीता रावण के महल में निश्चिंत होकर नहीं रह सकतीं।
अशोक वाटिका और माता सीता का मिलना : हनुमान जी ने लंका में सभी जगह माता सीता की खोज की, लेकिन जब वे निराश हुए, तो अशोक वाटिका की ओर गए। यह वाटिका फलों-फूलों से भरे वृक्षों, कमल सरोवरों, और पक्षियों के कलरव से गुंजायमान थी। वहां उन्होंने एक मंदिर देखा, जहां माता सीता को दीन अवस्था में बैठा पाया।
लंका दहन और रावण के अहंकार का मर्दन :माता सीता से मिलकर हनुमान जी ने लंका में कई राक्षसों का वध किया और अशोक वाटिका उजाड़ दी। ब्रह्मास्त्र से बंधकर वे रावण की सभा में पहुंचे, जो स्वर्गलोक के सभागार को भी लज्जित करती थी। इसके बाद, हनुमान जी ने लंका दहन कर रावण के अभिमान का मर्दन किया।
वाल्मीकि रामायण के इस वर्णन से स्पष्ट होता है कि लंका की भव्यता और ऐश्वर्य अद्वितीय थी। लेकिन महाबली हनुमान ने यह दिखा दिया कि भौतिक समृद्धि के आगे धर्म और सत्य का स्थान कहीं अधिक ऊंचा है।