ज्ञान की देवी मां सरस्वती का अनुपम पर्व है वसंत पंचमी !

विनोद कुमार झा

जय मां शारदे! वसंत पंचमी का वर्णन कलियुग में काफी प्रसिद्ध और प्रामाणिक हैं। प्रामाणिक इस कारण से हैं क्यूंकि इस युग में भी वो द्वापर, त्रेता और यहाँ तक कि सतयुग के भाव का आभास कराती हैं। हमारे धर्म ग्रंथों में माता के विषय में जितना वर्णित है उतना किसी और के बारे वर्णित नहीं किया गया है। आइए जानते हैं विस्तार से...

पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार वसंत पंचमी का आगमन माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी से  होता है। वर्ष की सभी ऋतुओं में वसंत ऋतु को "ऋतुओं का राजा" कहा गया है। इस दौरान मौसम अत्यंत मनमोहक हो जाता है। खेतों में फसलें लहलहाने लगती हैं, पेड़ों पर नए पत्ते और फूल खिलते हैं, और चारों ओर खुशहाली और नई ऊर्जा का संचार होता है। प्रकृति की इस सुंदरता को देखकर हर व्यक्ति आनंदित हो उठता है। वसंत पंचमी का पर्व इस सौंदर्य और विद्या की देवी सरस्वती के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। इसे "श्री पंचमी" और "ज्ञान पंचमी" भी कहा जाता है। 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सृष्टि की रचना के दौरान भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी को सृष्टि निर्माण का कार्य सौंपा। हालांकि, ब्रह्मा जी सृष्टि की शांति और मौन से असंतुष्ट थे। उन्होंने विष्णु जी की अनुमति लेकर अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का। इसके बाद एक चतुर्भुजी देवी प्रकट हुईं, जिनके एक हाथ में वीणा, दूसरे में वर मुद्रा, तीसरे में पुस्तक और चौथे में माला थी। यह देवी थीं मां सरस्वती। उन्होंने अपनी वीणा के माध्यम से संसार को वाणी, संगीत, और विद्या का वरदान दिया। उनके इस योगदान से वातावरण जीवंत और संगीतमय हो गया।  

एक और कथा के अनुसार, सृष्टि निर्माण के बाद भी ब्रह्मा जी को संसार में कमी महसूस हो रही थी। उन्होंने भगवान विष्णु की अनुमति से पृथ्वी पर जल छिड़का। जल के स्पर्श से एक तेजस्वी देवी प्रकट हुईं। ब्रह्मा जी ने देवी से वीणा बजाने का आग्रह किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुर स्वर छेड़ा, सभी जीव-जंतु वाणी से संपन्न हो गए। तभी से इस देवी को "सरस्वती" नाम दिया गया और उन्हें वाणी, विद्या, और बुद्धि की देवी के रूप में पूजा जाने लगा।  

मां सरस्वती की पूजन विधि : वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा विशेष हर्षोल्लास के साथ की जाती है। इस दिन पूजा में पीले रंग का विशेष महत्व होता है, क्योंकि यह रंग समृद्धि, ऊर्जा, और उत्साह का प्रतीक है।  

पूजन विधि:  मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित कर उन्हें सफेद या पीले वस्त्र अर्पित करें।  

- देवी के चरणों में पीले फूल, गुलाल, और सिंदूर चढ़ाएं।  

- पूजा के दौरान देवी को प्रसाद स्वरूप हलवा, खीर, और फल अर्पित करें।  

- 108 बार सरस्वती मंत्र ("ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः") का जाप करें।  

- छोटे बच्चों को इस दिन विद्यारंभ (शिक्षा की शुरुआत) कराई जाती है।  इस दिन विद्या, संगीत, और कला से जुड़े लोग मां सरस्वती से ज्ञान और सफलता की प्रार्थना करते हैं।  

गीता और वेदों में वसंत का वर्णन :   भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने वसंत को अपनी विभूतियों में से एक बताया है। ऋग्वेद में वसंत का वर्णन नई ऊर्जा और सृजनशीलता के प्रतीक के रूप में किया गया है। यह ऋतु जीवन में उत्साह और सकारात्मकता का संचार करती है।  

अब हम बात करते हैं माता सरस्वती के रूपों एवं अवतारों के बारे में। माता पार्वती एवं माता लक्ष्मी की भांति माता सरस्वती के भी अनेक रूप हैं।

जानें माता सरस्वती के प्रमुख रूप के बारे में

1. महा सरस्वती: ये माता सरस्वती का सर्वोच्च रूप माना जाता है। इनका वर्णन देवी माहात्म्य में विशेष रूप से दिया गया है। महाकाली एवं महालक्ष्मी के साथ महासरस्वती त्रिदेवों के सर्वोच्च रूपों, क्रमशः महादेव, महाविष्णु एवं महाब्रह्मा को परिपूर्ण करती हैं। इस रूप में इनके 8 हाथ हैं, ये वीणा को धारण करती हैं और उजले कमल पर विराजती हैं।

2. विद्या सरस्वती: अपने इस रूप में माता सरस्वती संसार के समस्त ज्ञान का प्रतिनिधित्व करती हैं। कहा जाता है कि संसार में जो भी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष ज्ञान फैला है, वो सभी माता के इसी रूप के कारण है। 

3. शारदम्बा: माता सरस्वती का ये रूप श्रृंगेरी शारदापीठ का मूल है। इनका मंदिर कर्णाटक के श्रृंगेरी नामक स्थान पर है जिसकी स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। ऐसी मान्यता है कि इनकी पूजा करने पर त्रिदेवों के साथ माता पार्वती और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद स्वतः ही प्राप्त हो जाता है। 

4. माता सावित्री: अपने इस रूप में माता सरस्वती परमपिता ब्रह्मा की पत्नी के रूप में प्रतिष्ठित होती हैं। ये संसार की पवित्रता का प्रतीक है। संसार में जो कुछ भी शुद्ध एवं पवित्र है, वो इन्ही की कृपा से है। 

5. माता गायत्री: माता सरस्वती का ये रूप संसार के सभी यज्ञों एवं कर्मकांडों की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूजित है। हालाँकि इनका मूल भी माता सावित्री को ही माना जाता है किन्तु कई स्थानों पर इन्हे भी ब्रह्मदेव की पत्नी का स्थान प्राप्त है। गायत्री मन्त्र को संसार का सबसे शक्तिशाली मन्त्र माना गया है जिसके विषय में स्वयं श्रीकृष्ण की विभूतियों में कहा गया है कि "मन्त्रों में मैं गायत्री हूँ।"

6. नील सरस्वती: माता का ये रूप भारत के पूर्वात्तर राज्यों में सबसे प्रसिद्ध है। इनके इस रूप को महाविद्याओं में से एक माता तारा का रूप भी माना जाता है। आम तौर पर माता सरस्वती के सभी रूप सौम्य और शांत होते हैं किन्तु नील सरस्वती इनका उग्र स्वरुप है। तंत्र ग्रंथों में इनका विशेष महत्त्व बताया गया है और इनके 100 नामों का उल्लेख है।

7. ब्राह्मणी: अष्ट-मातृकाओं में वर्णित माता ब्राह्मणी माता सरस्वती का ही एक रूप है। ये परमपिता ब्रह्मा की शक्ति को प्रदर्शित करती हैं। ये पीत वर्ण की है तथा इनकी चार भुजाएँ हैं। ब्रह्मदेव की तरह इनका आसन कमल एवं वाहन हंस है।

8. महाविद्या: माता सती के दस रूप, जो दस महाविद्या के नाम से जाने जाते हैं, उनमें से तीन माता सरस्वती का ही रूप मानी जाती हैं:

काली (श्यामा): माता का उग्र रूप। 

मातंगी: माता का सौम्य रूप। 

तारा: माता का वैभवशाली रूप।

माता सरस्वती के दो अवतार बहुत प्रसिद्ध हैं:

1. सरस्वती नदी: ऋग्वेद में माता के इस रूप के विषय में प्रमुखता से लिखा गया है। गंगा की भांति ये भी संसार के कल्याण के लिए ही अवतरित हुई थी। ऐसी भी मान्यता है कि ये संसार की पहली नदी थी। ये सतयुग में अवतरित होकर द्वापर के अंत में लुप्त हो गयी थी। कलियुग में ये माँ गंगा एवं यमुना के साथ अदृश्य रूप में उपस्थित हैं। कलियुग के अंत में ये गंगा, यमुना, कावेरी एवं नर्मदा के साथ पृथ्वी को सदा के लिए छोड़ देंगी। कई लोग ये मानते हैं कि आज भी सरस्वती नदी पृथ्वी के गर्भ में प्रवाहित होती हैं। 

2. माँ शारदा: ये माता सरस्वती का मानव अवतार माना जाता है। कश्मीर के कश्मीरी पंडित एवं हरियाणा के मूल निवासियों में इनके प्रति बहुत श्रद्धा है। इनका भव्य मंदिर शारदा पीठ के नाम से स्थापित है जो लगभग 5000 वर्ष पुराना है। हालाँकि ये दुर्भाग्य है कि अब वो स्थान पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में है। इसे 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।

वसंत पंचमी केवल ऋतु परिवर्तन का पर्व नहीं है, बल्कि यह प्रकृति और आध्यात्मिकता का उत्सव है। यह दिन विद्या, कला, और संगीत के प्रति आभार व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। मां सरस्वती की पूजा से वाणी, बुद्धि, और ज्ञान का विकास होता है।  



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