सीता स्वयंवर में राजा जनक ने महाराजा दशरथ को क्यों नहीं किया आमंत्रित?

विनोद kumar झा

जय श्रीराम!  आप सभी का स्वागत है हमारी विशेष प्रस्तुति में। आज हम आपको रामायण की एक अत्यंत रोचक कथा बताने जा रहे हैं, जो जुड़ी है सीता स्वयंवर से। इस कथा में एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है—आखिर क्यों राजा जनक ने अयोध्या के महाराज दशरथ को सीता स्वयंवर का निमंत्रण नहीं भेजा? जबकि विश्व के सभी राजाओं निमंत्रण भेजा गया। इस प्रश्न के पीछे छिपी है एक अद्भुत और रहस्यमयी कथा। आइए जानते हैं विस्तार से।  

गौ-श्राप की कथा  : यह कथा तब की है जब राजा जनक के राज्य में एक व्यक्ति का विवाह हुआ। ससुराल जाते समय उसने रास्ते में दलदल में फंसी हुई एक गाय देखी। उस व्यक्ति ने सोचा कि गाय तो मरने ही वाली है, और यदि वह कीचड़ में जाएगा, तो उसके कपड़े खराब हो जाएंगे। इसलिए उसने गाय के ऊपर पैर रखकर दलदल पार कर लिया। जैसे ही उसने ऐसा किया, गाय ने तड़पते हुए दम तोड़ दिया और मरते-मरते उसे श्राप दिया—  

"तू अपनी पत्नी का मुख नहीं देख पाएगा। यदि देखेगा, तो उसकी मृत्यु हो जाएगी।"

ससुराल पहुंचकर वह व्यक्ति दरवाजे के बाहर पीठ करके बैठ गया। जब पत्नी ने उसे अंदर आने के लिए कहा, तो उसने यह कहते हुए मना कर दिया कि वह उसकी ओर नहीं देख सकता। बहुत पूछने पर उसने पूरी घटना बता दी। यह सुनकर उसकी पत्नी दुखी हुई, लेकिन उसने कहा, "मैं पतिव्रता हूं, मेरा धर्म तुम्हें इस श्राप से बचाएगा।"  

पत्नी अपने पति को लेकर राजा जनक के दरबार पहुंची और पूरी घटना सुनाई। राजा ने विद्वानों की सभा बुलाई। विद्वानों ने सलाह दी कि यदि कोई *पूर्ण पतिव्रता* स्त्री छलनी में गंगाजल भरकर लाए और उसके जल से व्यक्ति की आंखें धोए, तो शाप समाप्त हो जाएगा। राजा ने अपने राज्य की स्त्रियों से यह कार्य करने को कहा, लेकिन कोई भी स्त्री पतिव्रता होने का प्रमाण नहीं दे पाई।  

जब यह बात अयोध्या पहुंची, तो राजा दशरथ ने अपनी रानियों सहित सभी स्त्रियों से पूछा। सभी ने एकमत से कहा कि उनके राज्य की हर स्त्री पतिव्रता है। इस पर राजा दशरथ ने राज्य की सबसे निम्न मानी जाने वाली एक सफाईकर्मी महिला को बुलाया। उसने पतिव्रता होने का दावा किया, और उसे राजा दशरथ ने जनकपुर भेजा।  

महिला ने छलनी में गंगाजल भरा और प्रार्थना की  "हे गंगा माता! यदि मैं सच्ची पतिव्रता हूं, तो जल की एक भी बूंद छलनी से नीचे न गिरे।" गंगाजल छलनी में भर गया और एक भी बूंद नीचे नहीं गिरी। उस महिला ने गंगाजल से उस व्यक्ति की आंखें धोईं, जिससे उसकी दृष्टि लौट आई और शाप समाप्त हो गया।  

जब राजा जनक ने महिला की जाति और पतिव्रता धर्म के बारे में सुना, तो वे अचंभित रह गए। उन्होंने सोचा, "यदि अयोध्या की एक साधारण सफाईकर्मी इतनी पतिव्रता हो सकती है, तो वहां के राजकुमार कितने महान और शक्तिशाली होंगे!"  

राजा जनक ने यह सोचकर अयोध्या के राजा दशरथ को सीता स्वयंवर का निमंत्रण नहीं भेजा कि कहीं कोई ऐसा व्यक्ति न आ जाए, जो धनुष तोड़कर राजकुमारी का वर बन जाए।  लेकिन विधि का विधान कौन बदल सकता है? अयोध्या के राजकुमार श्री राम, गुरु विश्वामित्र के साथ जनकपुर पहुंचे और स्वयंवर में शिव धनुष तोड़कर सीता का वरण किया।  

इस प्रकार, यह कथा न केवल रामायण के इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा है, बल्कि यह भी दिखाती है कि धर्म और कर्तव्य का पालन कैसे चमत्कारिक परिणाम ला सकता है।  

जय श्रीराम!



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