विनोद कुमार झा
हर साल 24 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाया जाता है। यह दिन शिक्षा के महत्व को समझाने और इसे वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने के उद्देश्य से समर्पित है। शिक्षा केवल व्यक्तिगत विकास का साधन नहीं है, बल्कि यह समाज और देश की प्रगति का आधार भी है। 2018 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस दिन को मान्यता दी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हर बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले और शिक्षा को वैश्विक प्राथमिकता बनाया जाए।
शिक्षा केवल रोजगार प्राप्त करने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति के व्यक्तित्व को पूर्णता प्रदान करती है। यह जीवन में संतुलन, नैतिकता और समर्पण के साथ बेहतर समाज का निर्माण करती है। जहां शिक्षा रोजगार के अवसर देती है, वहीं अच्छे संस्कार जीवन को मूल्यवान बनाते हैं। जैसा कि कहा जाता है, "शिक्षा और संस्कार का गहरा संबंध है"। यदि हम अपने बच्चों में भारतीय संस्कृति, परंपराएं, भाईचारा और एकता का बीजारोपण करें, तो उनमें स्वतः ही अच्छे संस्कार विकसित होंगे। यह जिम्मेदारी माता-पिता, परिवार और शिक्षकों की है कि वे बच्चों में शिक्षा और संस्कार दोनों का समावेश करें।
एक बेहतर समाज के निर्माण के लिए शिक्षा और संस्कार दोनों का समावेश आवश्यक है। शिक्षा बच्चों को ज्ञान, कर्म, और श्रद्धा जैसे गुण आत्मसात करने की प्रेरणा देती है, जिससे वे परिवार, समाज और देश सेवा में योगदान देने योग्य बनते हैं। अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस हमें यह याद दिलाता है कि शिक्षा हर बच्चे का अधिकार है, और इसे हर कोने तक पहुँचाना हमारा कर्तव्य है। यह केवल व्यक्तिगत सशक्तिकरण तक सीमित नहीं है, बल्कि सामाजिक परिवर्तन और विकास की नींव रखती है।
2025 में अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस की थीम "एआई और शिक्षा: स्वचालन की दुनिया में मानव एजेंसी को संरक्षित करना" है। यह थीम तेजी से बढ़ रही कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और स्वचालन के शिक्षा और समाज पर प्रभाव पर केंद्रित है। इसका मुख्य संदेश यह है कि तकनीकी बदलावों से निपटने के लिए लोगों को आवश्यक कौशल प्रदान किए जाएं। यह भी रेखांकित करता है कि शिक्षा कैसे समाज को एआई की क्षमताओं का सही और नैतिक उपयोग करने के लिए तैयार कर सकती है, साथ ही यह सुनिश्चित करती है कि मानवीय सोच, नियंत्रण और निर्णय लेने की स्वतंत्रता बनी रहे।
महात्मा गांधी, कार्ल मार्क्स और अन्य सुधारकों ने शिक्षा को जागरूकता और परिवर्तन का माध्यम बनाया। आज के समय में शिक्षा का उद्देश्य केवल बौद्धिक विकास नहीं होना चाहिए, बल्कि यह नैतिकता, दयालुता, सहानुभूति और करुणा जैसे गुणों का विकास भी सुनिश्चित करे।
यह एक दुखद तथ्य है कि कोविड-19 के कारण स्कूलों के बंद होने, संघर्षों और अन्य संकटों के चलते कई बच्चे शिक्षा से वंचित हो गए हैं या पूरी तरह से इससे बाहर हो गए हैं। लंबे समय तक स्कूल से दूर रहने का बच्चों के स्वास्थ्य, सुरक्षा और उनके भविष्य के जीवन विकल्पों पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कुछ देशों में हर पांच में से एक बच्चा बढ़ती गरीबी, बाल विवाह और बाल श्रम के कारण स्कूल से बाहर था। महामारी ने इस स्थिति को और भी अधिक जटिल और गंभीर बना दिया।
आइए, इस अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर हम संकल्प लें कि शिक्षा के प्रकाश को हर घर तक पहुँचाएँगे। एक ऐसा समाज बनाएंगे जो शिक्षित, सशक्त और समृद्ध हो। शिक्षा ही वह माध्यम है, जो हर व्यक्ति को उसके सर्वोत्तम रूप में विकसित कर सकती है और देश को प्रगति की नई ऊँचाइयों तक पहुँचा सकती है।