Ramayan: प्रभु श्रीराम ने ताड़का का वध क्यों किया?

विनोद kumar झा

ताड़का की कहानी रामायण के ऐतिहासिक पात्रों में से एक है। वह पहले स्वर्ग की सुंदर अप्सरा थी और सुकेतु यक्ष की पुत्री। सुकेतु ने ब्रह्मा जी की तपस्या कर एक संतान का वरदान प्राप्त किया, जिससे ताड़का का जन्म हुआ। ताड़का को हजार हाथियों के बराबर बल मिला, लेकिन एक श्राप के कारण वह राक्षसी बन गई।  

ऋषि अगस्त्य ने ताड़का से कहा था, 'जब त्रेतायुग में श्रीराम आएंगे। उनके तीर से तुम्हारे प्राण निकलेंगे। तभी तुम्हारा उद्धार होगा। उसी समय तुम्हारा शरीर दिव्य रूप धारण कर स्वर्ग की ओर प्रस्थान करेगा।'

प्रभु श्रीराम ने एक ही तीर में ताड़का को मार दिया। इसके बाद ताड़का सुंदर अप्सरा के रूप में बदल गई। उसने प्रभु को प्रणाम किया और स्वर्ग की ओर चली गई। इसके बाद प्रभु श्रीराम अपने अनुज और गुरु के साथ आगे की ओर गए।

सुकेतु नाम का एक यक्ष था। उसकी कोई भी संतान नहीं थी। इसलिए उसने संतान प्राप्ति की इच्छा से ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की। ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और उन्होंने संतान प्राप्ति का वरदान दिया। कुछ समय बाद सुकेतु यज्ञ के यहां ताड़का का जन्म हुआ। वरदान स्वरूप ताड़का के शरीर में हजार हाथियों का बल था।

तब सुकेतु यक्ष ने उसका विवाह सुंद नाम के दैत्य से किया। लेकिन ताड़का( ताड़का का एक अन्य नाम ‘सुकेतुसुता’ भी था।) दैत्यों की तरह व्यवहार करने लगी तब अगस्त्य ऋषि के शाप से वह भी राक्षसी हो गयी थी। ताड़का सुकेतु यक्ष की पुत्री थी, जो एक शाप के प्रभाव से राक्षसी बन गई थी। उसका विवाह सुंद नाम के दैत्य से हुआ था। ताड़का के दो पुत्र थे, उनके नाम थे सुबाहु और मारीच।

ताड़का का परिवार अयोध्या के नजदीक एक जंगल में रहता था। ताड़का का परिवार पूरी तरह से राक्षसी प्रवृत्तियों में लिप्त रहता था। वह देवी-देवताओं के लिए यज्ञ करने वाले ऋषि-मुनियों को तंग किया करते थे। सभी ऋषि मुनि ताड़का और उसके दोनों पुत्रों से परेशान थे।जब ये बात सुंद को पता चली तो वो अगस्त्य ऋषि को मारने पहुंचा। तब ऋषि ने सुंद को भस्म कर दिया। जब उसने अपने पति की मृत्यु के लिए अगस्त्य ऋषि से बदला लेना चाहा। ऐसी विषम परिस्थितियों में जब अगस्त्य ऋषि ने विश्वामित्र की सहायता मांगी तब विश्वामित्र के शिष्यों राम और लक्ष्मण ने मिलकर ताड़का का संहार किया था।

जब उन्होंने यह बात ऋषि विश्वामित्र को बताई तो विश्वामित्रअपने दो शिष्यों राम और लक्ष्मण को लेकर यज्ञ भूमि पहुंचे। अयोध्या के दोनों राजकुमारों ने ताड़का के परिवार का अंत कर दिया। लेकिन मारीच बच निकला और लंका जा पहुंचा।

वह राम से प्रतिशोध लेना चाहता था क्योंकि उसकी मां ताड़का और भाई को श्रीराम ने मार दिया था। सीता-हरण के दौरान मारीच ने ही पर रावण ने मारीच की मायावी बुद्धि की सहायता ली थी। मारीच सीता हरण के दौरान सोने का हिरण बना था। जिसे देखकर ही उसका शिकार करने के लिए उधर भगवान श्रीराम उसके पीछे गए और इधर रावण ने सीता का हरण कर लिया था।

ऐसे और भी ऐतिहासिक और धार्मिक प्रसंगों की जानकारी के लिए देखते रहिए हमारी विशेष प्रस्तुति। धन्यवाद!"


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