क्या है लक्ष्मण का 14 वर्षों तक न सोने न भोजन करने का सच ?

विनोद कुमार झा

आजकल हर जगह एक प्रसिद्ध कथा प्रचलित है कि मेघनाद (इंद्रजीत) को केवल वही वीर पराजित कर सकता था, जिसने लगातार 14 वर्षों तक न तो निद्रा ली हो और न ही अन्न-जल ग्रहण किया हो। इस कथा को और नाटकीय बनाते हुए कुछ लोग यह भी कहते हैं कि लक्ष्मण ने अपनी नींद और विश्राम अपनी पत्नी उर्मिला को अर्पित कर दिया था, जिससे वे पूरे वनवास काल में जाग्रत रह सके। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा हुआ था? आइए, इसे प्रामाणिक ग्रंथों के आधार पर समझने का प्रयास करें।

चूँकि मेघनाद का वध लक्ष्मण जी ने किया था, इसलिए यह कथा बन गई कि लक्ष्मण ने वनवास के 14 वर्षों तक न तो निद्रा ली, न भोजन किया। इसके आगे एक और कथा यह भी गढ़ी गई कि लक्ष्मण ने अपनी निद्रा अपनी पत्नी उर्मिला को दे दी थी, जिससे वह स्वयं 14 वर्षों तक जाग सके।  लेकिन यह सब लोककथाएँ हैं, जिनका मूल वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास कृत रामचरितमानस में कोई उल्लेख नहीं मिलता। 

 वाल्मीकि रामायण में क्या लिखा है? 

आइए जानते हैं विस्तार से यदि हम मूल वाल्मीकि रामायण पढ़ें, तो हमें यह स्पष्ट हो जाएगा कि लक्ष्मण ने 14 वर्षों तक बिना सोए रहने की कोई प्रतिज्ञा नहीं ली थी। बल्कि, वहाँ तो यह भी वर्णन मिलता है कि श्रीराम लक्ष्मण को सोते हुए जगाते हैं।  

अथ रात्र्यां व्यातीतायामवसुप्तमनन्तरम्।  

प्रबोधयामास शनैर्लक्ष्मणं रघुपुङ्गवः।।

अर्थ: जब रात बीत गई, तो रघुकुल शिरोमणि श्रीराम ने वहाँ सोए हुए लक्ष्मण को धीरे से जगाया।  

 सौमित्रे शृणु वन्यानां वल्गु व्याहरतां स्वनम्।  

सम्प्रतिष्ठामहे कालः प्रस्थानस्य परंतप।।

अर्थ: हे सौमित्र! (लक्ष्मण) वन में मीठी आवाज में बोलने वाले पक्षियों की ध्वनि सुनो। अब हमें यहाँ से प्रस्थान करना चाहिए, क्योंकि जाने का उचित समय हो गया है।  

 प्रसुप्तस्तु ततो भ्रात्रा समये प्रतिबोधितः।  

जहौ निद्रां च तन्द्रां च प्रसक्तं च परिश्रमम्।।

अर्थ: अपने बड़े भाई द्वारा समय पर जगाए जाने पर लक्ष्मण ने निद्रा, आलस्य और यात्रा की थकान को त्याग दिया।  

हम सबको पता है मेघनाद का वध लक्ष्मण जी ने किया था, इसलिए यह कथा बन गई कि लक्ष्मण ने वनवास के 14 वर्षों तक न तो निद्रा ली, न भोजन किया। इसके आगे एक और कथा यह भी गढ़ी गई कि लक्ष्मण ने अपनी निद्रा अपनी पत्नी उर्मिला को दे दी थी, जिससे वह स्वयं 14 वर्षों तक जाग सके।  लेकिन यह सब लोककथाएँ हैं जिनका मूल वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास कृत रामचरितमानस में कोई उल्लेख नहीं मिलता।  

क्या लक्ष्मण भूखे भी रहते थे?

वाल्मीकि रामायण में यह भी स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि लक्ष्मण कंद-मूल खाते थे, जिससे यह सिद्ध होता है कि वे भूखे भी नहीं रहते थे।  

तो फिर यह कथा कहाँ से आई?  

यह संभव है कि इस कथा की उत्पत्ति लक्ष्मण की अतुलनीय सेवा, त्याग और निष्ठा से हुई हो। लक्ष्मण ने वनवास के दौरान श्रीराम और माता सीता की रक्षा के लिए कई बार रातभर जागरण किया। इसीलिए, उनकी सतर्कता को निरंतर जागने के रूप में अतिशयोक्ति के साथ प्रस्तुत किया गया होगा।  रामचरितमानस में भी यह उल्लेख मिलता है कि लक्ष्मण सदैव सतर्क रहते थे , लेकिन यह नहीं कहा गया कि वे 14 वर्षों तक बिल्कुल भी नहीं सोए।  

लक्ष्मण का असली त्याग : भले ही लक्ष्मण 14 वर्षों तक बिना सोए रहने की कथा सही न हो , लेकिन उनके बलिदान और त्याग को कम नहीं आँका जा सकता । उन्होंने अपने भाई और भाभी की सेवा में अपने जीवन का प्रत्येक क्षण समर्पित कर दिया।  वे न केवल रामायण के सबसे समर्पित पात्रों में से एक हैं, बल्कि उनकी निष्ठा और सेवा की भावना आज भी संपूर्ण मानवता के लिए एक प्रेरणा है।  

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