विनोद कुमार झा
भारत में मंदिरों और घरों के ऊपर एक भयानक आकृति देखी जाती है, जिसे कीर्तिमुख कहा जाता है। यह कोई असुर नहीं बल्कि भगवान शिव का एक गण है, जिसे देवताओं से भी ऊंचा स्थान दिया गया है। आइए जानते हैं विस्तार से:-
पुराणों में कीर्तिमुख की कई कथाएं मिलती हैं, लेकिन सबसे प्रसिद्ध कथा जालंधर से जुड़ी हुई है। जालंधर, जो महादेव से उत्पन्न हुआ था, अज्ञानवश माता पार्वती पर कुदृष्टि डालता है। उसने अपने दूत को महादेव के पास भेजा, जिससे क्रोधित होकर शिव ने अपने तीसरे नेत्र से एक रक्तधारा प्रकट की, जिससे एक भयंकर जीव उत्पन्न हुआ। इस जीव का मुख सिंह के समान और हाथ-पैर सर्प जैसे थे। जन्म लेते ही उसकी भूख असहनीय थी, और महादेव ने उसे जालंधर के दूत को खाने का आदेश दिया। यह दूत पूरे लोकों में भागता रहा, लेकिन अंततः शिव से क्षमा मांगने वापस आया। शिव ने उसे क्षमा तो कर दिया, लेकिन उस जीव की भूख बनी रही।
महादेव ने परिहास में जीव से कहा कि वह स्वयं को खा ले। आज्ञा पालन में वह खुद को खाने लगा, जिससे केवल उसका मुख ही शेष रह गया। शिव उसकी भक्ति से प्रसन्न हुए और उसे 'कीर्तिमुख' नाम दिया, जिसका अर्थ है 'यशस्वी चेहरा'। उसे अपने भवन की सुरक्षा के लिए नियुक्त किया और आदेश दिया कि वह संसार के पाप, लोभ और बुरी नीयत को भक्षण करे।
मत्स्य पुराण में भी इस कथा का वर्णन मिलता है, जहां कीर्तिमुख को अंधकासुर की शेष सेना को खाने का आदेश मिला। लेकिन जब उसकी भूख शांत नहीं हुई, तो वह महादेव को ही खाने दौड़ा। तब शिव ने उसे पृथ्वी पर लिटा दिया और देवताओं को उस पर बैठने को कहा। देवताओं के वास के कारण वह पवित्र हो गया और वास्तुदेवता के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। आज गृह निर्माण में जिस वास्तुदेवता की पूजा होती है, वह कीर्तिमुख ही है।
कीर्तिमुख हमें यह सिखाता है कि ईश्वर से साक्षात्कार करने के लिए हमें अपने पाप, लोभ और बुरी नीयत का त्याग करना होगा। यही कारण है कि घरों और मंदिरों के प्रवेशद्वार पर कीर्तिमुख की आकृति लगाई जाती है, जिससे नकारात्मक शक्तियां प्रवेश न कर सकें और वातावरण शुद्ध बना रहे।