विनोद कुमार झा
भगवान शिव हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं, जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, शंकर, नीलकंठ, त्रिलोचन, औघड़दानी और रुद्र जैसे अनेक नामों से जाना जाता है। वे संहारक और सृजनकर्ता दोनों हैं। उनके व्यक्तित्व में जहाँ एक ओर घोर तपस्वी का रूप दिखाई देता है, वहीं दूसरी ओर वे भोलेनाथ के रूप में भक्तों की हर इच्छा पूरी करने वाले देवता भी माने जाते हैं। शिवजी का रहन-सहन, उनका आचरण और उनकी पूजा-अर्चना से जुड़ी कई मान्यताएँ हैं, जिनमें हलाहल विष, भांग, गांजा और दूर्वा घास का विशेष स्थान है। इन सभी चीज़ों का धार्मिक, पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व है, जिनका उल्लेख विभिन्न ग्रंथों और कथाओं में मिलता है।
1. हलाहल विष और शिवजी का नीलकंठ स्वरूप
- समुद्र मंथन की कथा और हलाहल विष का जन्म
समुद्र मंथन हिंदू धर्म की महत्वपूर्ण कथाओं में से एक है, जिसका वर्णन भागवत पुराण, विष्णु पुराण और महाभारत में मिलता है। जब देवता और असुर अमृत प्राप्त करने के लिए क्षीरसागर का मंथन कर रहे थे, तब उसमें से कई रत्न, दिव्य वस्तुएँ और औषधियाँ निकलीं। लेकिन अमृत से पहले एक घातक और अत्यंत विषैला हलाहल विष उत्पन्न हुआ। यह विष इतना तीव्र था कि इसके प्रभाव से संपूर्ण सृष्टि जलकर नष्ट हो सकती थी।
इस विकट स्थिति में देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे इस संकट का निवारण करें। अपनी करुणा और सृजन शक्ति के कारण शिवजी ने बिना किसी संकोच के उस भयंकर विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। इस विष को पीने के कारण उनका गला नीला पड़ गया और वे "नीलकंठ" के नाम से प्रसिद्ध हुए।
विष के प्रभाव को कम करने के उपाय
ऐसा माना जाता है कि हलाहल विष अत्यंत शक्तिशाली था और इससे शिवजी के शरीर में जलन होने लगी। इस जलन को शांत करने के लिए विभिन्न उपाय किए गए—
1. देवताओं ने शिवजी को गंगा जल अर्पित किया, जिससे विष का प्रभाव कम हो।
2. चंद्रमा को उनके मस्तक पर स्थापित किया गया, ताकि उसकी शीतलता शिवजी के कष्ट को कम करे।
3. भक्तों ने बेलपत्र और भांग चढ़ाना शुरू किया, जिससे विष का प्रभाव संतुलित हो सके।
समुद्र मंथन की इस घटना के बाद से शिव जी की पूजा में गंगाजल, बेलपत्र और भांग चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
2. भांग और गांजा का शिवजी से संबंध
भगवान शिव को भांग विशेष रूप से प्रिय मानी जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब वे ध्यान में लीन रहते थे, तो वे भांग का सेवन करते थे। एक मान्यता यह भी है कि भगवान शिव ने भांग को औषधीय गुणों से भरपूर एक दिव्य पदार्थ के रूप में स्वीकार किया। आयुर्वेद में भी भांग को एक औषधि के रूप में वर्णित किया गया है, जो तनाव, चिंता और शारीरिक पीड़ा को कम करने में सहायक होती है। भक्तगण विशेष रूप से महाशिवरात्रि और सावन मास में शिवलिंग पर भांग अर्पित करते हैं। गांजा भी भांग की तरह एक प्रकार की वनस्पति है, जिसे ध्यान और साधना के लिए उपयोग किया जाता है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने कठिन तपस्या के दौरान गांजे का सेवन किया था, जिससे वे लंबे समय तक ध्यानस्थ रह सके। यह भी कहा जाता है कि गांजा और भांग शिव जी को चढ़ाने से मन को शांति, ध्यान की एकाग्रता और भक्ति का भाव बढ़ता है। कुछ साधु-संत भी शिवजी की परंपरा का अनुसरण करते हुए इसे धूनी में प्रयोग करते हैं। हालाँकि, आधुनिक समाज में इनका सेवन एक विवाद का विषय भी है, लेकिन धार्मिक दृष्टि से इसे शिवजी की साधना से जोड़ा जाता है।
3. दूर्वा घास और शिवजी
दूर्वा घास को हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह मुख्य रूप से भगवान गणेश को चढ़ाई जाती है, लेकिन कुछ परंपराओं में इसे भगवान शिव को अर्पित करने की मान्यता भी है। शिव पुराण के अनुसार, दूर्वा घास को शुद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। इसका औषधीय महत्व भी बताया गया है, जो विष को शांत करने और शरीर को ठंडक प्रदान करने में सहायक है। एक कथा के अनुसार, जब भगवान शिव ने हलाहल विष का पान किया था, तब उनके शरीर की गर्मी को शांत करने के लिए देवताओं ने उन्हें दूर्वा घास से निर्मित औषधि अर्पित की थी। इस कारण दूर्वा घास को भी शिव पूजा में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ।
शिव पूजा में इनका उपयोग
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्तगण हलाहल विष से जुड़े प्रतीकों, भांग, गांजा, बेलपत्र और दूर्वा घास को चढ़ाते हैं। इसके पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों कारण होते हैं।
भांग और गांजा : शिवजी को समर्पित किए जाने वाले पदार्थों में इनका विशेष स्थान है। इससे ध्यान की एकाग्रता और मानसिक शांति प्राप्त होती है।
दूर्वा घास और बेलपत्र : यह शरीर की गर्मी को शांत करने वाले औषधीय गुणों से युक्त होते हैं, जो शिवजी को शीतलता प्रदान करने के लिए अर्पित किए जाते हैं।
गंगाजल : हलाहल विष के प्रभाव को शांत करने के लिए यह शिवलिंग पर अर्पित किया जाता है। भगवान शिव न केवल एक देवता हैं बल्कि वे एक जीवन दर्शन भी हैं। उनका संबंध हलाहल विष, भांग, गांजा और दूर्वा घास से केवल धार्मिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और वैज्ञानिक भी है। उन्होंने विष को पीकर संसार की रक्षा की, भांग और गांजे को साधना में उपयोग किया और दूर्वा घास को शुद्धि व शीतलता का प्रतीक बनाया।
आज भी शिव भक्त उनकी पूजा में इन सभी चीजों का उपयोग करते हैं, ताकि वे शिवजी के आशीर्वाद और उनके दिव्य गुणों को प्राप्त कर सकें। शिव जी की भक्ति में समर्पित प्रत्येक वस्तु उनके त्याग, ध्यान और करुणा का प्रतीक है।
हर-हर महादेव!