विनोद कुमार झा
संत रविदास जी भारतीय भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों में से एक थे, जिन्होंने समाज में समानता, भक्ति और प्रेम का संदेश दिया। वे महान कवि, समाज सुधारक और ईश्वर-भक्त थे। हर साल उनकी जयंती माघ पूर्णिमा के दिन धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन उनके अनुयायी भक्ति भाव से उनकी शिक्षाओं को याद करते हैं और समाज में प्रेम और समानता का संदेश फैलाते हैं।
संत रविदास जी का जन्म 15वीं शताब्दी में माघ पूर्णिमा के दिन वाराणसी (उत्तर प्रदेश) के सीर गोवर्धनपुर गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम संतोख दास और माता का नाम कर्मा देवी था। वे एक साधारण परिवार में जन्मे थे और उनका मुख्य कार्य जूते बनाना था। रविदास जी बाल्यकाल से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। वे संत शिरोमणि रामानंद जी के शिष्य बने और उनके मार्गदर्शन में भक्ति मार्ग पर चले। उन्होंने सदैव मानवता की सेवा को सर्वोच्च धर्म माना।
उस समय समाज जातिवाद और ऊँच-नीच की भावना से ग्रसित था। संत रविदास जी ने अपने उपदेशों के माध्यम से सभी मनुष्यों को समान बताया और यह सिद्ध किया कि ईश्वर भक्ति में जाति-पाति का कोई महत्व नहीं होता। रविदास जी ने "बेगमपुरा" नामक एक आदर्श समाज की कल्पना की थी, जिसमें न कोई दुख होगा, न कोई भेदभाव। यह एक समतामूलक समाज का प्रतीक था, जहाँ हर व्यक्ति को समान अधिकार प्राप्त होंगे। संत रविदास जी ने अनेक भजन और पदों की रचना की, जिनमें भक्ति, प्रेम और सामाजिक समानता का संदेश है। उनके कुछ प्रमुख दोहे इस प्रकार हैं:
"मन चंगा तो कठौती में गंगा।"
इसका अर्थ है कि यदि मन शुद्ध है तो हर स्थान पवित्र है। यह भक्ति और आत्मशुद्धि का संदेश देता है।
"ऐसा चाहूँ राज मैं, जहाँ मिले सबन को अन्न।
छोट-बड़ो सब सम बसे, रविदास रहे प्रसन्न।।"
यह उनके द्वारा समाज में समानता और न्याय की इच्छा को दर्शाता है। संत रविदास जी भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों में से एक थे। उन्होंने भक्ति मार्ग के माध्यम से लोगों को ईश्वर की ओर प्रेरित किया। उनकी भक्ति परंपरा को आगे बढ़ाने में गुरु नानक देव जी और मीरा बाई का भी योगदान रहा। आज भी समाज में जाति, भेदभाव और असमानता जैसी समस्याएँ बनी हुई हैं। ऐसे में संत रविदास जी का संदेश हमें एकजुटता, प्रेम और समानता की ओर प्रेरित करता है। उनका जीवन हमें सिखाता है कि कर्म और भक्ति से ही सच्ची सफलता प्राप्त होती है।
संत रविदास जी केवल एक संत ही नहीं, बल्कि समाज सुधारक और आध्यात्मिक गुरु भी थे। उन्होंने अपने उपदेशों से समाज में जागरूकता फैलाई और भक्ति के माध्यम से आत्मज्ञान का मार्ग दिखाया। उनकी जयंती पर हमें उनके विचारों को अपनाने और समाज में समानता, प्रेम और भाईचारे को बढ़ाने का संकल्प लेना चाहिए।
"रविदास का कहना साँच, मिले जहाँ सब एक समान।
न कोई छोटा, न कोई बड़ा, सब हैं एक भगवान।।"
Guru ji bhut hin badhiya aarticel lekha h ji
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