मानव जीवन में सर्वोत्तम भक्ति, नवधा भक्ति का रहस्य

 विनोद कुमार झा

हिंदू धर्म में भक्ति को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। भक्त की भक्ति के वशीभूत होकर स्वयं भगवान भी प्रकट हो जाते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भक्ति के कौन-कौन से रूप हैं और कौन-सी भक्ति सर्वोत्तम मानी गई है? हमारे शास्त्रों में "नवधा भक्ति" का विशेष उल्लेख मिलता है, जो भक्ति के नौ मार्गों को दर्शाती है।  

नवधा भक्ति: भक्ति के नौ मार्ग

शास्त्रों में नवधा भक्ति का दो बार वर्णन मिलता है—पहली बार विष्णु पुराण में, जहाँ प्रह्लाद ने अपने पिता हिरण्यकशिपु को इसका ज्ञान दिया, और दूसरी बार रामचरितमानस में, जहाँ भगवान श्रीराम ने माता शबरी को इसकी व्याख्या दी।  

भक्त प्रह्लाद द्वारा बताई गई नवधा भक्ति

श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।

अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥

इन नौ रूपों में से भी प्रह्लाद ने श्रवण, कीर्तन और स्मरण को श्रेष्ठ माना, और उनमें भी श्रवण को सर्वोत्तम बताया।  

नवधा भक्ति के प्रतीक भक्त

हर भक्ति के एक प्रतिनिधि भक्त माने गए हैं, जिन्होंने अपने जीवन से इनका आदर्श प्रस्तुत किया:  

1. श्रवण – परीक्षित  

2. कीर्तन– शुकदेव  

3. स्मरण – प्रह्लाद  

4. पाद सेवन – माता लक्ष्मी  

5. अर्चन – महाराज पृथु  

6. वंदन – अक्रूर  

7. दास्य – हनुमान  

8. सख्य – अर्जुन  

9. आत्मनिवेदन – राजा बलि  

श्रीराम द्वारा माता शबरी को दी गई नवधा भक्ति  

रामचरितमानस के अनुसार, जब श्रीराम शबरी से मिले, तो उन्होंने भक्ति के नौ लक्षणों को समझाया:  

1. संतों का संग । 

2. भगवान की कथा में प्रेम।

3. गुरु की सेवा और अहंकार का त्याग।

4. ईश्वर के गुणों का निष्कपट गान। 

5. मंत्र-जप और दृढ़ विश्वास। 

6. इंद्रियों का संयम और सत्कर्म।

7. समभाव और संतों को ईश्वर से भी ऊँचा मानना।

8. संतोष और परदोष दृष्टि का त्याग।

9. सरलता, निष्कपटता, और परमात्मा में अडिग विश्वास।

श्रीराम कहते हैं कि जिस किसी में भी इनमें से कोई एक गुण होता है, वह उन्हें अत्यंत प्रिय है।  

क्या भक्ति केवल मंदिरों तक सीमित है? 

नवधा भक्ति यह दर्शाती है कि भक्ति केवल आरती, पूजा या मंदिर तक सीमित नहीं है। यह एक जीवनशैली है, जिसमें प्रेम, समर्पण और सेवा का भाव होता है।  

आज के समय में भी, यदि हम संतों का संग करें, सद्गुणों को अपनाएँ, निष्कपट भक्ति करें, और ईश्वर में अडिग विश्वास रखें, तो हमें वही दिव्य आनंद और साक्षात्कार प्राप्त हो सकता है, जो भक्तों ने प्राप्त किया।  तो फिर, भक्ति का कौन-सा मार्ग आपको सबसे अधिक आकर्षित करता है?

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