विधानसभा में भाषाई समावेशिता लोकतंत्र की सच्ची पहचान

 विनोद कुमार झा

उत्तर प्रदेश विधानसभा के बजट सत्र के पहले दिन भाषाओं को लेकर एक महत्वपूर्ण बहस छिड़ी। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता माता प्रसाद पांडेय ने सदन की कार्यवाही में क्षेत्रीय भाषाओं जैसे भोजपुरी, अवधी, ब्रज, बुंदेलखंडी और अंग्रेजी के उपयोग पर आपत्ति जताई। इसके जवाब में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि ये सभी भाषाएँ हिंदी की बेटियां हैं और इन्हें सदन में उचित सम्मान मिलना चाहिए।

विधानसभा लोकतंत्र का मंदिर है, जहाँ समाज के विभिन्न वर्गों से आए प्रतिनिधियों को अपनी बात रखने का अधिकार है। इस संदर्भ में भाषा कोई बाधा नहीं बल्कि संवाद का माध्यम होनी चाहिए। यदि अंग्रेजी में भाषण दिया जा सकता है तो उर्दू या किसी अन्य क्षेत्रीय भाषा में भी अपनी बात रखने का अवसर मिलना चाहिए। योगी आदित्यनाथ की यह बात कि "भोजपुरी, अवधी, ब्रज और बुंदेलखंडी सभी हिंदी की बेटियां हैं" इस बहस को नई दिशा देती है और यह स्वीकार करने की आवश्यकता है कि भारत की विविधता ही उसकी शक्ति है।

यह भी सच है कि विपक्ष को सरकार के हर फैसले का विश्लेषण करने और उचित आलोचना करने का अधिकार है, लेकिन सिर्फ विरोध के लिए विरोध करना लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ जाता है। जब क्षेत्रीय भाषाओं को प्रोत्साहित करने की बात आती है, तो यह न केवल सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करता है, बल्कि आम जनता को भी सदन की कार्यवाही से जोड़ने में सहायक होता है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह कथन कि "जाकी रही भावना जैसी, प्रभु सूरत तीन देखि वैसी" दर्शाता है कि किसी भी विषय को देखने का नजरिया व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है। इसलिए, आवश्यकता इस बात की है कि भाषा को राजनीति का विषय बनाने के बजाय इसे संचार का साधन माना जाए और सदन में सभी भाषाओं को उचित सम्मान मिले।अंततः, लोकतंत्र की मजबूती इसी में है कि हर नागरिक की आवाज सुनी जाए, चाहे वह किसी भी भाषा में हो। हमें भाषाई विविधता को विभाजन का नहीं, बल्कि एकता और समावेशिता का प्रतीक मानना चाहिए।




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