विनोद कुमार झा
गगनचुंबी इमारतों और रोशनी से जगमगाते इस शहर में भी कुछ कोने अंधेरे में खोए रहते हैं। ऐसे ही एक कोने में स्थित था लाइब्रेरी, जो अब समय की मार झेलते-झेलते खंडहर बन चुकी थी। कहते थे, वहाँ कभी महान विद्वानों का आना-जाना था, पर अब वह बस अतीत की परछाइयों को समेटे खड़ा था। आरव, एक युवा लेखक, जिसने अपनी कहानियों में हमेशा कल्पनाओं को जगह दी थी, आज इस उजाड़ पुस्तकालय में सच्चाई तलाशने आया था। उसके हाथ एक धूल-धूसरित, चमड़े की जिल्द वाली पुरानी डायरी लगी। जैसे ही उसने पहला पन्ना पलटा, स्याही से लिखे शब्दों ने अतीत की परतें उधेड़ दीं।
"यदि यह डायरी तुम्हारे हाथ लगे, तो समझो, सच तुम्हें बुला रहा है। पर याद रखना, कुछ रहस्य उजागर होने के लिए नहीं होते..."आरव का मन रोमांच से भर उठा। वह शब्दों को पढ़ने लगा एक निषिद्ध प्रेम की कहानी, जिसे समाज ने कभी स्वीकार नहीं किया। अनन्या और विक्रम , दो प्रेमी, जो अलग-अलग दुनिया के थे। एक कुलीन परिवार की बेटी, और दूसरा एक मामूली पुस्तकालयाध्यक्ष। उनका प्रेम समाज के बंधनों में उलझकर दम तोड़ने वाला था, लेकिन उन्होंने भागने का फैसला किया।
पर डायरी में सिर्फ प्रेम की कहानी नहीं थी। उसके अगले पन्नों में था विश्वासघात, अनन्या के ही परिवार के किसी सदस्य ने उन्हें धोखा दिया था। विक्रम को मार दिया गया, और अनन्या को इस पुस्तकालय के तहखाने में हमेशा के लिए कैद कर दिया गया। कहा जाता है, उसकी आत्मा अब भी यहाँ भटकती है।
आरव को अजीब-सी अनुभूति होने लगी। वह जितना पढ़ता, उतना ही एक अनदेखी शक्ति उसे घेरती जाती। अचानक, हवा ठंडी हो गई, और एक धीमी फुसफुसाहट उसके कानों में गूँजने लगी, "सच को उजागर करो, आरव..."डर और जिज्ञासा के बीच झूलता आरव तहखाने की ओर बढ़ा। नीचे उतरते ही उसे एक पुराना लकड़ी का दरवाज़ा दिखा, जो समय के साथ सड़ चुका था। जैसे ही उसने उसे छुआ, दरवाज़ा चरमराते हुए खुल गया। अंदर अंधकार था, पर किसी अनदेखी शक्ति ने उसे भीतर खींच लिया।
तहखाने की दीवारों पर लाल स्याही (या शायद खून) से कुछ लिखा था, "प्रेम को बंधनों में नहीं रखा जा सकता। जो सच को दफनाते हैं, वे खुद दफन हो जाते हैं।"आरव को महसूस हुआ कि कोई उसकी उपस्थिति को देख रहा था। अचानक, उसे एक परछाईं दिखी अनन्या! उसकी आँखों में दर्द था, पर आवाज़ में एक अनुरोध—"मुझे मुक्त करो..."
आरव को समझ आ गया कि उसकी क़लम का असली मकसद यही था सिर्फ़ कहानियाँ गढ़ना नहीं, बल्कि दबी कहानियों को उजागर करना। उस रात आरव ने डायरी के आखिरी पन्ने को पढ़ा और अनन्या की आत्मा को उसकी अधूरी कहानी का अंत दे दिया। सुबह तक, खंडहर पुस्तकालय के तहखाने से एक रोशनी उठी और धीरे-धीरे गायब हो गई। आरव जानता था—कुछ फुसफुसाहटें भुला दी जाती हैं, पर जब वे लौटती हैं, तो इतिहास फिर से लिखा जाता है।