दिल्ली की शराब नीति पर CAG रिपोर्ट: पारदर्शिता बनाम भ्रष्टाचार का खेल

विनोद कुमार झा

दिल्ली की आबकारी नीति को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। अब, दिल्ली विधानसभा में पेश की गई नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट ने इस विवाद को और गहरा कर दिया है। रिपोर्ट के अनुसार, नई शराब नीति से दिल्ली सरकार को 2002 रुपए करोड़ का घाटा हुआ। इसमें नीति की खामियों, लाइसेंस प्रक्रिया में गड़बड़ियों और राजस्व नुकसान का जिक्र किया गया है। वहीं, आम आदमी पार्टी का दावा है कि नई नीति पूरी तरह पारदर्शी थी और इसे सही तरीके से लागू किया जाता तो राजस्व में दोगुनी वृद्धि होती।  

CAG रिपोर्ट पर विधानसभा में जबर्दस्त हंगामा हुआ, जिसके चलते 21 आप विधायकों को निलंबित कर दिया गया। इस पूरे घटनाक्रम ने शराब नीति को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच टकराव को और उग्र कर दिया है। सवाल यह है कि क्या यह नीति वाकई भ्रष्टाचार से भरी थी, या फिर इसे राजनीतिक कारणों से विफल करार दिया गया?  

दिल्ली की शराब नीति का मुख्य उद्देश्य राजस्व बढ़ाना और शराब की बिक्री को अधिक संगठित बनाना था। नई आबकारी नीति के तहत शराब के ठेकों को निजी कंपनियों को सौंपा गया, और सरकार का खुदरा व्यापार से बाहर निकलना तय हुआ। सरकार का तर्क था कि इससे भ्रष्टाचार और कालाबाजारी रुकेगी, और अधिक प्रतिस्पर्धा के कारण सरकार का राजस्व बढ़ेगा।  

हालांकि, CAG रिपोर्ट का कहना है कि इस नीति के कारण दिल्ली सरकार को भारी नुकसान हुआ। रिपोर्ट के अनुसार नीति की खामियों के कारण शराब कंपनियों को अनुचित लाभ मिला, लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं थी, शराब की कीमतों में उतार-चढ़ाव से सरकार को राजस्व में नुकसान हुआ,  कई सिफारिशों को नज़रअंदाज किया गया, जिससे ठेकेदारों को फायदा हुआ।  

इस बीच, आप नेता आतिशी ने CAG रिपोर्ट के आधार पर सरकार का बचाव किया और कहा कि रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि अगर इस नीति को सही तरीके से लागू किया जाता, तो राजस्व में भारी वृद्धि हो सकती थी।  जैसे  यह नीति पारदर्शी थी और इसका उद्देश्य सरकारी ठेकों में हो रहे भ्रष्टाचार को खत्म करना था।  पंजाब में यही नीति लागू होने के बाद राजस्व में 65% की बढ़ोतरी हुई।  दिल्ली में 2021 से 2025 के बीच राजस्व 4108 करोड़ से बढ़कर 8911 करोड़ रुपए हो सकता था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।   इस नीति को लागू न होने देने के पीछे दिल्ली के उपराज्यपाल (LG), CBI और ED की भूमिका है।  

अब सवाल यह उठता है कि क्या नीति में वास्तविक रूप से खामियां थीं, या फिर इसे राजनीतिक कारणों से असफल करार दिया गया?  

CAG रिपोर्ट पेश होने के साथ ही दिल्ली विधानसभा में विपक्ष और सत्तारूढ़ दल के बीच तीखी बहस हुई। आम आदमी पार्टी के विधायकों ने मुख्यमंत्री आवास से भगत सिंह और डॉ. भीमराव अंबेडकर की तस्वीरों को हटाने का मुद्दा उठाया और जब उपराज्यपाल वीके सक्सेना भाषण दे रहे थे, तब उन्होंने "मोदी-मोदी" के नारे लगाने शुरू कर दिए।  

इस हंगामे के बाद दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष ने नेता प्रतिपक्ष आतिशी समेत 21 आप विधायकों को 3 मार्च तक के लिए निलंबित कर दिया। इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए आतिशी ने कहा कि यह लोकतंत्र की हत्या है और सरकार विपक्ष की आवाज़ को दबाना चाहती है।  

आप का कहना है कि भगत सिंह और अंबेडकर की तस्वीरें हटाकर  भाजपा ने यह साबित कर दिया है कि वह महान स्वतंत्रता सेनानियों और संविधान निर्माता का सम्मान नहीं करती। दूसरी ओर, भाजपा ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि CAG रिपोर्ट की गंभीरता से बचने के लिए AAP अनावश्यक मुद्दों को उठा रही है।  

CAG रिपोर्ट के निष्कर्षों ने शराब नीति को लेकर कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े कर दिए हैं। अगर इस नीति के कारण सरकार को 2002 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है, तो इसकी गहन जांच होनी चाहिए। 

क्या वाकई इसमें भ्रष्टाचार हुआ, या फिर यह नुकसान नीति को सही तरीके से लागू न करने की वजह से हुआ?  

अगर नई नीति पारदर्शी थी और उसे लागू करने से सरकार का राजस्व बढ़ सकता था, तो इसे रोकने के पीछे किसका हाथ था? क्या LG और केंद्र सरकार की एजेंसियों ने इस नीति को नाकाम करने के लिए जानबूझकर हस्तक्षेप किया?  इसके अलावा, विधानसभा में हुए हंगामे और विधायकों के निष्कासन को लेकर भी सवाल उठते हैं। क्या सरकार सच में लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा कर रही है, या फिर सत्ता पक्ष और विपक्ष केवल एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने में जुटे हैं?   

रिपोर्ट के बाद दिल्ली की शराब नीति को लेकर राजनीति गरमा गई है। यह विवाद केवल शराब नीति तक सीमित नहीं है; यह प्रशासनिक पारदर्शिता, जवाबदेही और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की विश्वसनीयता का मामला भी बन गया है।  सरकार को चाहिए कि वह CAG रिपोर्ट के निष्कर्षों की निष्पक्ष जांच कराए और जनता को सही जानकारी दे। अगर भ्रष्टाचार हुआ है, तो दोषियों पर कार्रवाई होनी चाहिए। और अगर यह नीति वास्तव में दिल्ली के लिए फायदेमंद थी और उसे राजनीतिक कारणों से रोका गया, तो इसके पीछे की सच्चाई भी सामने आनी चाहिए।  आम जनता को यह जानने का पूरा हक है कि उसकी सरकार कौन से फैसले ले रही है, और वे कैसे लागू हो रहे हैं। पारदर्शिता और निष्पक्षता ही इस पूरे विवाद को हल करने का एकमात्र रास्ता हो सकता है।

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