योगमाया कौन थी, जिनकी माया में खुद भगवान भी मोहित हो गए!

 विनोद कुमार झा

सृष्टि में कई रहस्य छिपे हैं, लेकिन सबसे अद्भुत रहस्य माया का है वह शक्ति, जो देवताओं, ऋषियों और स्वयं भगवान को भी प्रभावित कर सकती है। ऐसी ही एक अनुपम शक्ति हैं माता योगमाया, जिनका उल्लेख वेदों, पुराणों और महाकाव्यों में मिलता है। उनकी माया इतनी अद्भुत है कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण, भगवान विष्णु और त्रिदेव भी उनके प्रभाव से अछूते नहीं रहते। यह कहानी योगमाया के उस दिव्य रहस्य की है, जिसके कारण भगवान श्रीकृष्ण ने महारास, भगवान विष्णु ने मोहन रूप और स्वयं त्रिदेव ने अपनी लीलाओं के लिए उनका सहारा लिया। यही शक्ति हैं माता योगमाया, जिनकी अलौकिक लीला का वर्णन वेदों, पुराणों और महाकाव्यों में मिलता है।

श्रीमद्भागवत पुराण में जब भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों संग महारास किया, तब वे अकेले नहीं थे—बल्कि योगमाया की महिमा से हर गोपी के साथ उनका एक स्वरूप था। हर गोपी को यही प्रतीत हुआ कि श्रीकृष्ण केवल उन्हीं के साथ क्रीड़ा कर रहे हैं। इसी तरह देवी भागवत पुराण में वर्णन मिलता है कि भगवान विष्णु तक योगमाया की शक्ति से मोहित हो जाते हैं!

त्रिदेव की लीलाओं से लेकर श्रीकृष्ण के 16,108 रूपों के विस्तार तक, हर चमत्कार के पीछे योगमाया की ही शक्ति थी। शिवपुराण में भी उनका उल्लेख मिलता है, जहाँ उन्हें माता सती का अंश बताया गया है। तो कौन हैं ये अद्भुत शक्ति, जिनकी माया में देवता तक बंध जाते हैं? आइए, जानें योगमाया के रहस्यमय और चमत्कारी रूपों की कहानी:-

हिन्दू धर्मपुराणों में वर्णित कथा के अनुसार यह घटना तब की है जब कंस को भविष्यवाणी हुई कि उनकी मृत्यु उनकी ही बहन देवकी के आठवें पुत्र के हाथों होगी। भयभीत कंस ने देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल दिया और उनके हर नवजात शिशु की हत्या करने लगा। लेकिन जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तो योगमाया की माया से चमत्कार हुआ। वसुदेव जी बिना किसी बाधा के बालक कृष्ण को गोकुल में नंद बाबा के घर छोड़ आए और बदले में यशोदा जी की कन्या (जो असल में योगमाया का ही अवतार थीं) को लेकर वापस लौट आए।

जैसे ही कंस ने नवजात कन्या को उठाया और उसे पत्थर पर पटकना चाहा, कन्या उसके हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई और दिव्य रूप में प्रकट होकर बोली, हे कंस! तेरा काल जन्म ले चुका है। तुझे मारने वाला कहीं और है, तेरा विनाश निश्चित है! यह सुनकर कंस भयभीत हो गया। यह सब माता योगमाया की माया थी, जिन्होंने श्रीकृष्ण की रक्षा के लिए अद्भुत लीला रची।

योगमाया की माया का सबसे अद्भुत प्रसंग तब आया, जब भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों संग महारास किया। श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार, एक रात्रि जब शरद पूर्णिमा का चंद्रमा अपनी चमक बिखेर रहा था, तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी मुरली की मधुर ध्वनि से गोपियों को आकर्षित किया। जैसे ही गोपियाँ नंदगांव छोड़कर वृंदावन पहुँचीं, योगमाया ने अद्भुत लीला रची। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने एक नहीं, बल्कि अनगिनत रूप बना लिए, ताकि हर गोपी को ऐसा लगे कि वे केवल उनके साथ ही नृत्य कर रहे हैं।

योगमाया की माया इतनी अद्भुत थी कि समय रुक गया, चंद्रमा स्थिर हो गया और पूरा ब्रह्मांड इस दिव्य नृत्य को देखने के लिए ठहर गया। हर गोपी को यही अनुभूति हुई कि श्रीकृष्ण केवल उन्हीं के साथ नृत्य कर रहे हैं। यह लीला इतनी दिव्य थी कि स्वयं देवता भी इसे देखने के लिए ब्रज में उतर आए। लेकिन यह सब केवल श्रीकृष्ण की शक्ति नहीं थी, बल्कि माता योगमाया की दिव्य माया थी, जिसने इसे संभव किया।

योगमाया की शक्ति इतनी विलक्षण थी कि एक समय भगवान विष्णु तक उनके प्रभाव में आ गए। देवी भागवत पुराण के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु को एक असुर ने अपने योगबल से हराने की चेष्टा की। तब भगवान विष्णु ने योगमाया को अपनी सहायता के लिए बुलाया। योगमाया ने ऐसी माया रची कि स्वयं विष्णु भी मोहग्रस्त हो गए और एक सुंदर स्त्री के रूप में प्रकट हुए। जब असुर ने उस रूप को देखा, तो वह मोहित हो गया और विष्णु जी से अपनी हार स्वीकार कर ली।इस घटना के बाद विष्णु जी ने भी स्वीकार किया कि बिना योगमाया के सहयोग के, कोई भी शक्ति पूरी नहीं होती।

योगमाया की महिमा का एक और अद्भुत प्रसंग तब आता है जब भगवान श्रीकृष्ण ने 16,108 रानियों से विवाह किया।श्रीमद्भागवत में उल्लेख मिलता है कि श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध करने के बाद उसकी कैद से 16,108 कन्याओं को मुक्त कराया। जब इन कन्याओं ने श्रीकृष्ण से प्रार्थना की कि समाज उन्हें स्वीकार नहीं करेगा, तब श्रीकृष्ण ने उनसे विवाह करने का निश्चय किया। योगमाया की शक्ति से श्रीकृष्ण ने अपने 16,108 रूप बना लिए और हर महल में हर रानी के साथ अलग-अलग समय व्यतीत करने लगे। हर रानी को यही लगता था कि श्रीकृष्ण केवल उन्हीं के साथ समय बिता रहे हैं, जबकि वास्तव में वे एक साथ सभी महलों में उपस्थित थे। यह चमत्कार केवल श्रीकृष्ण की नहीं, बल्कि योगमाया की शक्ति का प्रमाण था, जिनकी माया ने सभी को अचंभित कर दिया।

योगमाया का उल्लेख शिवपुराण में भी मिलता है, जहाँ उन्हें माता सती का अंश बताया गया है। जब माता सती ने अपने शरीर को योगबल से त्याग दिया, तब उनका एक अंश योगमाया के रूप में प्रकट हुआ। जब भी देवताओं को किसी संकट से उबारना होता, तब योगमाया की सहायता ली जाती। स्वयं भगवान शंकर भी उनकी शक्ति को नमन करते थे। 

योगमाया केवल एक शक्ति नहीं, बल्कि अद्भुत रहस्य हैं, जिनकी माया में स्वयं त्रिदेव भी मोहित हो जाते हैं। जैसे कंस को छलने से लेकर श्रीकृष्ण की महारास लीला तक भगवान विष्णु को मोहित करने से लेकर 16,108 रूपों के विस्तार तक हर चमत्कार के पीछे माता योगमाया की अद्भुत शक्ति थी। वे न केवल देवताओं की लीलाओं का संचालन करती हैं, बल्कि पूरे ब्रह्मांड की दिव्य ऊर्जा का केंद्र भी हैं। इसलिए, जब भी हम भगवान की अद्भुत लीलाओं की चर्चा करते हैं, तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इसके पीछे योगमाया की अनुपम शक्ति थी, जिनकी माया से स्वयं भगवान भी अछूते नहीं थे।






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