सूरज अपनी लालिमा समेट रहा था। नदी के किनारे एक बूढ़ा आदमी बैठा था, जो अपने कांपते हाथों से छोटे-छोटे कंकड़ उठाकर पानी में फेंक रहा था। पास ही एक नौजवान बैठा था, जो उदासी से नदी की लहरों को ताक रहा था। बूढ़े ने एक और कंकड़ उठाया और उसे पानी में डालते हुए कहा, "देखो, ये कंकड़ छोटे होते हैं, मगर जब इन्हें पानी में फेंका जाता है, तो गोल-गोल लहरें बनती हैं। जीवन भी ऐसा ही है।"
नौजवान ने चौंककर उनकी ओर देखा, "बाबा, आप क्या कहना चाहते हैं?"
बूढ़े ने मुस्कुराकर कहा, "बेटा, हमारा जीवन भी इन कंकड़ों की तरह है। हम सोचते हैं कि हमारी छोटी-छोटी परेशानियाँ या गलतियाँ कोई मायने नहीं रखतीं, लेकिन वे लहरों की तरह हमारे भविष्य को प्रभावित करती हैं। कभी-कभी एक छोटी-सी गलती बहुत बड़ी मुश्किलें खड़ी कर देती है, और कभी एक छोटा-सा सही कदम बड़ी सफलता दिला सकता है।"
नौजवान ने गहरी सांस ली, लेकिन बाबा, अगर कोई गलती कर बैठे, तो क्या उसकी जिंदगी खत्म हो जाती है?
बूढ़े ने एक और कंकड़ उठाया और उसे पानी में डालते हुए बोले, "देखो, ये कंकड़ डूब गया, मगर लहरें कुछ देर तक बनी रहीं। गलती का मतलब यह नहीं कि जीवन खत्म हो गया। हां, उसकी छाप जरूर रहती है, लेकिन अगर हम आगे बढ़ना चाहें, तो नई लहरें बना सकते हैं।
नौजवान की आँखों में नयी रोशनी थी। उसने पास पड़े कंकड़ों को देखा और एक उठाकर नदी में फेंक दिया। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गई थी। जीवन सच में एक कंकड़ की तरह ही तो है—छोटे-छोटे फैसले और घटनाएं हमें गिरा भी सकती हैं और आगे भी बढ़ा सकती हैं। सवाल बस इतना है कि हम अपने कंकड़ को किस दिशा में फेंकते हैं।
नौजवान कुछ देर तक शांत बैठा रहा, मानो बूढ़े की बातों को अपने भीतर उतारने की कोशिश कर रहा हो। फिर उसने धीमी आवाज़ में पूछा, "बाबा, लेकिन कुछ कंकड़ इतने भारी होते हैं कि वे लहरें नहीं बनाते, बस डूब जाते हैं। कुछ गलतियाँ इतनी बड़ी होती हैं कि इंसान को डुबो देती हैं। तब क्या किया जाए?
बूढ़ा मुस्कुराया और थोड़ा आगे झुककर पानी में अपनी उंगलियां डुबो दीं। फिर उन्होंने हल्के से हाथ हिलाया, जिससे पानी में छोटी-छोटी तरंगें उठने लगीं। देखा? लहरें अपने आप बन गईं। बेटा, कुछ गलतियाँ हमें डुबाने की कोशिश करती हैं, लेकिन अगर हम खुद को थामे रहें, तो धीरे-धीरे जीवन फिर से लहरें बना सकता है। फर्क बस इतना है कि हमें धैर्य रखना होगा और सही दिशा में आगे बढ़ना होगा।
नौजवान ने सिर झुका लिया, जैसे अब उसे कुछ समझ आने लगा हो। फिर उसने झिझकते हुए कहा, "मैंने एक बड़ी गलती कर दी, बाबा। मैं अपने ग़ुस्से में अपने ही सबसे अच्छे दोस्त से लड़ पड़ा। मैंने उसे अपशब्द कह दिए और अब वह मुझसे बात नहीं करना चाहता। मैं बहुत पछता रहा हूँ, लेकिन अब कुछ भी ठीक नहीं हो सकता।"
बूढ़े ने एक और कंकड़ उठाया, उसे पानी में फेंका और मुस्कुराकर बोले, "क्या तुमने माफी मांगी?"
नौजवान चौंक गया। नहीं... मुझे लगा कि उसने मुझे माफ नहीं किया तो?"
बेटा,"बूढ़े ने शांत स्वर में कहा, "कभी-कभी माफी मांगना ही वह नया कंकड़ होता है, जो डूबे हुए रिश्ते में नई लहरें ला सकता है। जरूरी नहीं कि सामने वाला तुरंत माफ कर दे, लेकिन कम से कम तुमने अपनी तरफ से नई शुरुआत करने की कोशिश की होगी। जीवन में गलतियाँ होती हैं, लेकिन अगर हम उनसे कुछ सीखकर आगे बढ़ें, तो वे हमें और मजबूत बनाती हैं।
नौजवान के चेहरे पर जैसे एक नई समझ उतर आई। उसने अपने जेब से फोन निकाला, थोड़ी हिचक के बाद अपने दोस्त का नंबर डायल किया और कांपती आवाज़ में बोला, भाई, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई थी... क्या तुम मुझे माफ कर सकते हो?
उसके चेहरे पर उम्मीद थी, जैसे किसी डूबते हुए को किनारा दिख गया हो। बूढ़ा आदमी मुस्कुराया और एक आखिरी कंकड़ उठाकर पानी में फेंक दिया—एक नई लहर बनाते हुए।
फोन पर कुछ क्षणों के लिए सन्नाटा छा गया। नौजवान की धड़कनें तेज़ हो गईं। उसे डर था कि कहीं उसका दोस्त फोन काट न दे। लेकिन फिर दूसरी तरफ़ से एक भारी आवाज़ आई, "तू सच में पछता रहा है?
नौजवान की आँखों में आंसू आ गए। "हाँ भाई, मैं बहुत शर्मिंदा हूँ। उस दिन ग़ुस्से में मैं बहुत कुछ कह गया, जो मुझे नहीं कहना चाहिए था। अगर हो सके, तो मुझे एक और मौका दे दो।कुछ पलों तक चुप्पी रही, फिर दोस्त की आवाज़ आई, "ठीक है, मिलते हैं कल।" और फोन कट गया।
नौजवान ने राहत की सांस ली। उसके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान थी। उसने बूढ़े बाबा की तरफ़ देखा, जो संतोष से उसे देख रहे थे। देखा बेटा, जब तुम सच्चे दिल से अपनी गलती सुधारने की कोशिश करते हो, तो जीवन तुम्हें दूसरा मौका ज़रूर देता है।" बूढ़े ने कहा।
नौजवान ने सिर हिलाया, "आप सही कह रहे थे, बाबा। जीवन सच में एक कंकड़ की तरह है। हमें बस सही जगह पर फेंकना आना चाहिए।"
बूढ़ा मुस्कुराया और धीरे-धीरे उठकर चल दिया, जैसे अपने ज्ञान का एक और बीज बोकर आगे बढ़ रहा हो। नदी की लहरें अभी भी उस आखिरी कंकड़ की हलचल को समेट रही थीं, और नौजवान के दिल में एक नई उम्मीद की लहर दौड़ रही थी।
(लेखक: विनोद कुमार झा)