विनोद कुमार झा
हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने त्रि-भाषा फार्मूले पर चल रहे विवाद के संदर्भ में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन पर तीखा हमला बोला। उनका आरोप है कि भ्रष्टाचार से ध्यान हटाने के लिए भाषा विवाद को उभारा जा रहा है। यह बयान भारतीय राजनीति में भाषा के प्रश्न को एक बार फिर चर्चा के केंद्र में ले आया है। भारत की सांस्कृतिक और भाषाई विविधता इसकी सबसे बड़ी ताकत है। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि समय-समय पर भाषाई मुद्दों को राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है। गृह मंत्री का कहना है कि हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के बीच कोई टकराव नहीं होना चाहिए, बल्कि एक-दूसरे को मजबूत करने की नीति अपनाई जानी चाहिए। यह विचार सही दिशा में संकेत करता है, क्योंकि किसी भी भाषा को थोपा नहीं जाना चाहिए, बल्कि लोगों को अपनी भाषा में पढ़ाई और कार्य करने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।अमित शाह ने यह भी सवाल उठाया कि तमिलनाडु सरकार ने अब तक मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई तमिल भाषा में शुरू क्यों नहीं की? यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। यदि सरकार वास्तव में मातृभाषा को बढ़ावा देना चाहती है, तो उसे व्यावहारिक कदम भी उठाने चाहिए। मातृभाषा में शिक्षा से न केवल छात्रों को लाभ होगा, बल्कि उनकी बौद्धिक और तकनीकी दक्षता भी बढ़ेगी। गृह मंत्री ने अपनी सरकार की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति की चर्चा करते हुए बताया कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में शांति बहाल हुई है। इसके साथ ही उन्होंने 2026 तक नक्सलवाद को पूरी तरह समाप्त करने का लक्ष्य रखा है। यह एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य है, लेकिन इसके लिए केवल सैन्य उपायों पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं होगा। क्षेत्रीय विकास, शिक्षा और रोजगार को प्राथमिकता दिए बिना इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकलेगा।
आज अपराध सीमाओं से परे जा चुके हैं—नारकोटिक्स, साइबर अपराध और हवाला जैसे मामले राज्यों तक सीमित नहीं रहे। अमित शाह ने इस समस्या पर नियंत्रण के लिए गृह मंत्रालय द्वारा उठाए जा रहे कदमों का उल्लेख किया। यह सही है कि इन अपराधों से निपटने के लिए एक समन्वित राष्ट्रीय रणनीति की आवश्यकता है। गृह मंत्री का यह बयान कि कुछ लोग "काले चश्मे" से देखते हैं और उन्हें विकास नजर नहीं आता, विपक्ष पर सीधा हमला है। हालांकि, सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विकास केवल बयानबाजी तक सीमित न रहे, बल्कि जमीन पर भी दिखाई दे। सरकारों को भाषा, धर्म और क्षेत्रीयता से ऊपर उठकर केवल जनता की भलाई के बारे में सोचना चाहिए। भाषा, शिक्षा, विकास और सुरक्षा जैसे मुद्दे राजनीति से ऊपर होने चाहिए। केंद्र और राज्य सरकारों को आपसी आरोप-प्रत्यारोप की बजाय यह देखना चाहिए कि जनता को वास्तव में क्या चाहिए। भाषा विवाद से बचते हुए शिक्षा को मातृभाषा में सुलभ बनाना, आतंकवाद और नक्सलवाद का ठोस समाधान निकालना और अपराध नियंत्रण के लिए ठोस नीति बनाना ही देश को आगे ले जाने का सही तरीका होगा।