प्रभु श्रीराम को क्यों पसंद आया माता शबरी के जूठे बेर ?

विनोद कुमार झा

हिन्दू धर्मग्रंथ रामायण में वर्णित कथा के अनुसार वन में एक छोटा सा आश्रम था, जहाँ एक वृद्धा तपस्विनी माता शबरी निवास करती थीं। उनका हृदय निष्कलुष भक्ति से भरा हुआ था। वे एक भील समुदाय से थीं, किंतु उनके मन में कोई अहंकार न था। उनका जीवन बस एक ही उद्देश्य से चल रहा था। भगवान श्रीराम के दर्शन और उनकी सेवा।  

शबरी को उनके गुरु मतंग ऋषि ने बताया था कि एक दिन भगवान स्वयं उनके आश्रम में आएंगे। इस विश्वास के साथ, माता शबरी ने वर्षों तक न केवल अपने गुरु की सेवा की, बल्कि अपने आश्रम को स्वच्छ और पवित्र बनाए रखा। वे प्रतिदिन प्रभु राम के आगमन की प्रतीक्षा करतीं और उनके स्वागत के लिए पुष्प बिछातीं। उन्होंने वन में हर प्रकार के मीठे और स्वादिष्ट फल इकट्ठा करने की आदत बना ली थी, ताकि जब श्रीराम आएं, तो वे उन्हें आदरपूर्वक भेंट कर सकें।  

फिर वह शुभ दिन आया। वनवास के दौरान माता सीता की खोज में श्रीराम और उनके भाई लक्ष्मण दंडकारण्य पहुंचे। माता शबरी ने जैसे ही उन्हें दूर से आते देखा, उनकी आंखों में आनंद के अश्रु छलक पड़े। वे दौड़कर प्रभु के चरणों में गिर पड़ीं और श्रद्धा से उनकी वंदना करने लगीं।  

श्रीराम ने प्रेम से उन्हें उठाया और कहा, "माते, मैं तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूँ। मुझे यहां आकर अपार सुख की अनुभूति हो रही है। माता शबरी का हृदय पुलकित हो उठा। उन्होंने सोचा, "मैं प्रभु को क्या अर्पित करूँ?" तभी उनकी दृष्टि पास रखे हुए बेरों की टोकरी पर पड़ी। वे वन के सबसे अच्छे और मीठे बेर श्रीराम के लिए चुनकर लाईं थीं।  

माता शबरी ने राम को देने से पहले हर बेर को स्वयं चखा। वह यह देखना चाहती थीं कि कहीं कोई बेर खट्टा या फीका तो नहीं। जो बेर मीठे निकलते, उन्हें वे टोकरी में रख देतीं और जो फीके होते, उन्हें अलग कर देतीं। फिर वे श्रद्धा से श्रीराम को बेर अर्पित करने लगीं।  लक्ष्मण यह देखकर थोड़े असमंजस में पड़ गए। उन्होंने सोचा कि माता शबरी जो बेर राम को दे रही हैं, वे तो उनके जूठे हैं। लेकिन श्रीराम ने बिना किसी झिझक के वे बेर उठाए और प्रेमपूर्वक खाने लगे।  

उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "लक्ष्मण, ये केवल बेर नहीं हैं, यह प्रेम और भक्ति का प्रसाद है। माता शबरी ने इसे अपनी ममता और प्रेम से मीठा बना दिया है। यह मेरे लिए अमृत के समान है।"लक्ष्मण यह देखकर भाव-विह्वल हो गए। उन्होंने भी प्रेमपूर्वक माता शबरी के अर्पित किए हुए बेर खाए।  

श्रीराम ने माता शबरी से कहा, "माते, तुम्हारी भक्ति अतुलनीय है। तुमने प्रेम का सबसे बड़ा उदाहरण प्रस्तुत किया है। मैं तुमसे अत्यंत प्रसन्न हूँ।"  

माता शबरी ने तब श्रीराम से मोक्ष प्राप्ति का उपाय पूछा। श्रीराम ने उन्हें नवधा भक्ति का उपदेश दिया, जिसमें प्रेम, सत्संग, सेवा, नाम स्मरण और विश्वास जैसे मार्ग बताए। श्रीराम के आशीर्वाद से माता शबरी ने तत्काल अपने नश्वर शरीर का त्याग कर दिया और परम धाम को प्रस्थान किया।  

माता शबरी की कथा प्रेम और भक्ति की पराकाष्ठा का परिचायक है। यह हमें सिखाती है कि ईश्वर को कोई बाहरी वस्तु नहीं, बल्कि प्रेम और निष्कलुष भक्ति प्रिय होती है। श्रीराम ने यह दिखाया कि प्रेम और श्रद्धा से दिया गया छोटा सा अर्पण भी अमूल्य हो सकता है।  इस कथा के माध्यम से हम सीख सकते हैं कि किसी के जाति, रूप, या सामाजिक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण उसकी भक्ति, स्नेह और निष्ठा होती है।

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