भारतीय रेलवे प्रगति की पटरी पर या सवालों के घेरे में?

 विनोद कुमार झा


भारतीय रेलवे दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी रेल प्रणाली है और देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है। हाल ही में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने राज्यसभा में रेलवे की उपलब्धियों को गिनाते हुए बताया कि भारत अब रेल संपत्तियों का आयातक नहीं, बल्कि निर्यातक बन चुका है। उन्होंने दावा किया कि भारतीय रेलवे अमेरिका और चीन के बराबर खड़ा हो रहा है, दुर्घटनाओं में 90% तक की कमी आई है, और पड़ोसी देशों की तुलना में किराया 10-15% कम है। दूसरी ओर, विपक्ष ने रेलवे के वित्तीय प्रबंधन, साधारण ट्रेनों की अनदेखी और निजीकरण की आशंकाओं को लेकर सरकार की आलोचना की।  

रेल मंत्री के दावों के अनुसार, 2005-06 में जहां रेल दुर्घटनाओं की संख्या 698 थी, वह अब घटकर 73 रह गई है। यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जो रेलवे की बढ़ती सुरक्षा और तकनीकी उन्नति को दर्शाती है। विद्युतीकरण से रेलवे को ऊर्जा की खपत नियंत्रित रखने में मदद मिली है और यह नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन की दिशा में आगे बढ़ रहा है।  हालांकि, विपक्ष इस तस्वीर का दूसरा पहलू दिखाता है। कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने आरोप लगाया कि सरकार प्रीमियम ट्रेनों पर ज्यादा ध्यान दे रही है, जबकि आम ट्रेनों की हालत बदतर हो रही है। तृणमूल सांसद शताब्दी रॉय का वंदे भारत को "बिरयानी" की तरह बताना, इस बात की ओर संकेत करता है कि देश में एक बड़ी आबादी अभी भी बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रही है, जबकि सरकार हाई-एंड ट्रेनों को प्राथमिकता दे रही है।  

विपक्ष ने रेल मंत्रालय के वित्तीय प्रबंधन पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि सरकार रेलवे का बजट बढ़ा रही है, लेकिन इसका लाभ आम यात्रियों तक नहीं पहुंच रहा है। कांग्रेस सांसद वर्षा गायकवाड़ ने आरोप लगाया कि सरकार कंपनियों को कमजोर करके बाद में निजी हाथों में सौंप देती है, और रेलवे के साथ भी ऐसा ही होने की आशंका जताई।  सरकार की ओर से रेलवे के निजीकरण को लेकर स्पष्ट बयान नहीं दिया गया है, लेकिन हाल के वर्षों में कई ट्रेनों को सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत चलाने की कोशिशें की गई हैं। यह चिंताजनक है क्योंकि भारतीय रेलवे का बड़ा हिस्सा आम जनता की जरूरतों को पूरा करता है, और निजीकरण से किराए में बढ़ोतरी तथा सुविधाओं की असमानता की संभावना बढ़ जाती है।  

सरकार रेलवे में सुधार के दावे कर रही है, लेकिन सवाल यह है कि क्या ये सुधार आम यात्री के लिए भी उतने ही प्रभावी हैं जितने कि हाई-एंड ट्रेनों और विदेशी निर्यात के लिए? यदि रेलवे को विश्वस्तरीय बनाना है, तो यह जरूरी है कि न केवल हाई-स्पीड ट्रेनों पर ध्यान दिया जाए, बल्कि स्लीपर और जनरल क्लास की ट्रेनों की स्थिति भी सुधारी जाए।  विपक्ष का आरोप कि रेलवे "वेंटिलेटर" पर है और सरकार केवल इंस्टाग्राम रील्स के जरिए इसकी छवि सुधारने की कोशिश कर रही है, यह बताता है कि जमीनी हकीकत से जुड़कर काम करने की आवश्यकता है।  

भारतीय रेलवे की उपलब्धियां सराहनीय हैं, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं हैं। सुरक्षा में सुधार, आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदम और विदेशी बाजारों में रेलवे की उपस्थिति सकारात्मक संकेत हैं। लेकिन इस विकास को संतुलित बनाना भी उतना ही आवश्यक है, ताकि आम यात्री की जरूरतें और सुविधाएं भी प्राथमिकता में रहें। यदि सरकार वास्तव में रेलवे को "विश्वस्तरीय" बनाना चाहती है, तो उसे न केवल हाई-टेक ट्रेनों पर ध्यान देना होगा, बल्कि जनसाधारण के लिए यात्रा को और अधिक किफायती और सुविधाजनक बनाना होगा। वरना, रेलवे पर बढ़ते सवालों का सिलसिला थमने वाला नहीं है।

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