विनोद कुमार झा
महाभारत में भीम को दस हजार हाथियों के बल वाला योद्धा कहा गया है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि शुरुआत में भीम और दुर्योधन समान रूप से शक्तिशाली थे? दरअसल, भीम की अद्भुत शक्ति का विस्तार एक अप्रत्याशित घटना के कारण हुआ, जिसका श्रेय स्वयं दुर्योधन को जाता है!
भीम और दुर्योधन बचपन से ही प्रतिद्वंद्वी थे। दोनों ही अपार बलशाली थे, पर भीम की संकल्प शक्ति और निर्भयता उन्हें विशेष बनाती थी। बचपन में खेल-खेल में भीम दुर्योधन और अन्य कौरवों को परास्त कर देते थे, जिससे दुर्योधन के मन में ईर्ष्या और घृणा उत्पन्न हो गई। शकुनि की कुटिल बुद्धि से प्रेरित होकर, दुर्योधन ने भीम को मारने की योजना बनाई।
भीम को अत्यधिक भोजन प्रिय था, और दुर्योधन ने इसी कमजोरी का लाभ उठाया। उसने भीम के लिए विशेष खीर तैयार करवाई, जिसमें ज़हर मिला दिया। विष का प्रभाव होते ही भीम अचेत हो गए। दुर्योधन और शकुनि ने उन्हें लताओं से बांधकर गंगा में फेंक दिया, यह सोचकर कि अब वह नहीं बचेंगे।
भीम गंगा के प्रवाह में बहते हुए नागलोक पहुंच गए, जहां नागों ने उन्हें काट लिया। आश्चर्यजनक रूप से, नागों के विष ने उनके शरीर में मौजूद ज़हर का प्रभाव समाप्त कर दिया, जिससे वे होश में आ गए। क्रोधित होकर भीम ने कई नागों को परास्त कर दिया। जब नागराज वासुकि को इस बालक की अद्भुत शक्ति का पता चला, तो वे स्वयं उनके सामने आए।
नागराज के दरबार में, मंत्री आर्यक ने भीम को पहचाना और बताया कि वे उनके कुल के ही सदस्य हैं। नागराज वासुकि, भीम की वीरता से प्रभावित होकर, उन्हें एक अमृत तुल्य दिव्य पेय—सोमरस—पीने का अवसर देते हैं। यह सोमरस एक कुंड में संग्रहित था, जिसमें हजार हाथियों का बल था।
भीम की भूख को कम आंकना वासुकि की भूल थी। भीम ने एक नहीं, बल्कि पूरे आठ कुंडों का रस पी लिया। इस दिव्य पेय के प्रभाव से उनकी शक्ति आठ हजार हाथियों के बल के बराबर हो गई। इसके बाद वे आठ दिनों तक गहरी निद्रा में रहे। जब वे जागे, तो अपने परिवार को याद कर, नागराज और अपने नाना के नाना आर्यक से आशीर्वाद लेकर हस्तिनापुर लौट आए।
भीम को जीवित देख हस्तिनापुर में हर्ष और विस्मय की लहर दौड़ गई। जब उन्होंने विदुर और युधिष्ठिर को नागलोक की कथा सुनाई, तो उन्हें इसे गुप्त रखने की सलाह दी गई ताकि कौरवों के साथ संबंध और न बिगड़ें।
इस घटना के बाद, दुर्योधन यह समझ गया कि शक्ति में अब वह भीम की बराबरी नहीं कर सकता। इसी कारण उसने गदायुद्ध के अभ्यास पर विशेष ध्यान दिया। उसने लोहे की भीम प्रतिमा बनवाकर 13 वर्षों तक उस पर अभ्यास किया और बलराम जैसे गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की। लेकिन अंततः अधर्म के पक्ष में होने के कारण, भीम ने उसे परास्त कर दिया।
दुर्योधन की साजिश से भीम का अंत तो नहीं हुआ, बल्कि उनकी शक्ति कई गुना बढ़ गई। यही नियति का खेल था—जो दुर्योधन ने अपने लाभ के लिए किया, वही अंततः उसके विनाश का कारण बना!