कहानी: पेड़ में झूलते पत्ते...

 विनोद कुमार झा

गाँव के किनारे एक बहुत पुराना बरगद का पेड़ था। उसकी घनी छाँव में लोग सुस्ताते, बच्चे खेलते, और पक्षी बसेरा करते। लेकिन यह पेड़ सिर्फ एक साधारण वृक्ष नहीं था यह गाँव के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति, बाबा राघव, की कहानियों का मुख्य पात्र था।  

एक दिन, गाँव के नन्हे राहुल ने बाबा से पूछा, "बाबा, ये पत्ते हवा में इतने धीरे-धीरे क्यों झूलते हैं?" बाबा मुस्कुराए और बोले, "हर पत्ता एक कहानी है, बेटा। ये पत्ते हमारे पूर्वजों की यादें हैं, जो हमें आशीर्वाद देने यहाँ आते हैं।"राहुल को यह बात समझ नहीं आई, लेकिन उसने ध्यान दिया कि जब भी कोई बड़ा बदलाव होता, पेड़ के कुछ पत्ते ज़मीन पर गिर जाते और नए पत्ते उनकी जगह ले लेते।  

एक शाम, जब गाँव में तेज़ आँधी आई, बहुत से पत्ते टूटकर गिर पड़े। लोग चिंतित थे कि कहीं पेड़ ही न गिर जाए। अगले दिन, जब हवा थमी, तो बाबा ने सबको इकट्ठा किया और कहा, "देखो, ये पत्ते झड़ गए, लेकिन पेड़ अब भी खड़ा है। जीवन भी ऐसा ही होता है। बदलाव जरूरी होता है, ताकि नए अवसर आ सकें।"  

धीरे-धीरे गाँववालों को एहसास हुआ कि पेड़ सिर्फ छाया देने के लिए नहीं था, बल्कि वह जीवन के उतार-चढ़ाव को समझाने का प्रतीक भी था। राहुल ने जब दोबारा पत्तों को झूलते देखा, तो उसे बाबा की बात याद आई, "हर पत्ता एक कहानी है।"

समय बीतता गया, लेकिन बरगद का पेड़ अपनी जगह अडिग खड़ा रहा। राहुल बड़ा हो गया और शहर में पढ़ाई करने चला गया, लेकिन हर छुट्टी में वह गाँव लौटकर पेड़ के नीचे बैठता और बाबा की कहानियों को याद करता।  

एक दिन, जब वह गाँव लौटा, तो उसने देखा कि बाबा राघव की जगह अब खाली थी। गाँववालों ने बताया कि कुछ महीनों पहले वे इस संसार से चले गए। राहुल को गहरा दुख हुआ, लेकिन जब उसने ऊपर देखा, तो वही पुराने पत्ते हवा में झूल रहे थे, मानो बाबा की यादों को संजोए हुए हों।  

राहुल ने सोचा, "क्या सच में बाबा की आत्मा इन पत्तों में बसती होगी?" उसने पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान से देखा। हवा के साथ पत्ते हौले-हौले हिल रहे थे, जैसे किसी अदृश्य स्पर्श से। वह मुस्कुराया और महसूस किया कि बाबा कहीं नहीं गए, वे इस पेड़ के हर पत्ते में मौजूद हैं।  

समय के साथ गाँव में बदलाव आने लगे। सड़कें चौड़ी होने लगीं, नए घर बनने लगे, और लोग आधुनिकता की ओर बढ़ने लगे। एक दिन सरकारी कर्मचारी गाँव आए और घोषणा की कि बरगद के पेड़ को काटकर वहाँ एक चौक बनाया जाएगा। यह सुनकर गाँव के बुजुर्ग और बच्चे सभी चिंता में पड़ गए।  

राहुल ने ठान लिया कि वह इस पेड़ को बचाएगा। उसने गाँववालों को इकट्ठा किया और कहा, "यह पेड़ सिर्फ लकड़ी का टुकड़ा नहीं है, यह हमारी यादें, हमारी परंपराएँ और हमारे पूर्वजों की कहानियों का साक्षी है। अगर यह पेड़ कट गया, तो हम अपनी जड़ों से कट जाएँगे।" गाँववालों ने प्रशासन से अनुरोध किया, कई अर्ज़ियाँ दीं, और आखिरकार सरकार को इस फैसले को बदलना पड़ा। बरगद का पेड़ बच गया।  

राहुल अब पेड़ की छाँव में बैठकर बच्चों को कहानियाँ सुनाने लगा, ठीक वैसे ही जैसे बाबा राघव सुनाया करते थे। अब जब भी हवा चलती, पत्ते झूमते और लगता जैसे बाबा मुस्कुराकर कह रहे हों, हर पत्ता एक कहानी है।

बरगद का पेड़ अब पहले से भी अधिक महत्वपूर्ण हो गया था। यह सिर्फ गाँव की पहचान ही नहीं, बल्कि विरासत का प्रतीक बन चुका था। बच्चे रोज़ वहाँ खेलते, बुजुर्ग उसकी छाँव में बैठकर सुख-दुःख साझा करते, और हर त्योहार पर पेड़ की पूजा की जाती।  

राहुल शहर में अपनी पढ़ाई पूरी कर चुका था और अब गाँव लौट आया था। उसने तय किया कि वह गाँव की पुरानी परंपराओं को जीवित रखते हुए नई पीढ़ी को उनकी जड़ों से जोड़ेगा। उसने गाँव के युवाओं के साथ मिलकर "बरगद शिक्षा केंद्र" नाम से एक पाठशाला शुरू की, जहाँ बच्चे सिर्फ किताबों की पढ़ाई नहीं, बल्कि जीवन की असली सीख भी लेते थे। 

यह पाठशाला खुले आसमान के नीचे, ठीक पेड़ की छाँव में चलती थी। यहाँ न केवल स्कूल की पढ़ाई होती, बल्कि गाँव के बुजुर्ग अपने अनुभव साझा करते, लोककथाएँ सुनाते और बच्चों को प्रकृति से जुड़ने का महत्व समझाते। धीरे-धीरे यह शिक्षा केंद्र गाँव के गर्व का विषय बन गया।  एक दिन, गाँव में फिर से तेज़ आँधी आई। इस बार भी कई पत्ते झड़ गए, लेकिन पेड़ की जड़ें मजबूत थीं। जब आँधी थमी, तो राहुल ने बच्चों से पूछा, "क्या तुमने कुछ सीखा?"

बच्चों में से एक, छोटी सी सुजाता ने कहा, "हाँ! जैसे पेड़ आँधी में भी नहीं गिरा क्योंकि उसकी जड़ें गहरी हैं, वैसे ही हमें भी अपनी परंपराओं और सिखाई गई बातों से जुड़े रहना चाहिए।" राहुल मुस्कुराया। उसे अहसास हुआ कि बाबा राघव का सपना सच हो रहा था। यह पेड़ सिर्फ प्रकृति का हिस्सा नहीं, बल्कि जीवन की शिक्षा का स्तंभ बन चुका था।  

समय बीतता गया, लेकिन बरगद का पेड़, उसके झूमते पत्ते, और उससे जुड़ी कहानियाँ पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहीं। जब भी हवा चलती, लोग महसूस करते कि बाबा की आत्मा अब भी वहीं थी, हर पत्ते में झूलती हुई, नए जीवन को सिखाती हुई…  "हर पत्ता एक कहानी है।"

उस दिन के बाद, राहुल ने हर झड़ते पत्ते में एक नई सीख देखी, और वह बड़ा होकर भी यह सीख दूसरों को सिखाने लगा। पेड़ के पत्ते झूलते रहे, कहानियाँ बनती रहीं, और जीवन चलता रहा।



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