मर्यादा और स्वच्छता पर सवाल...

 विनोद कुमार झा

उत्तर प्रदेश विधानसभा लोकतंत्र का सबसे बड़ा मंच है, जहां प्रदेश की 25 करोड़ जनता की भावनाओं, आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व किया जाता है। यह न केवल विधायी प्रक्रियाओं का केंद्र है, बल्कि एक ऐसा स्थान भी है जो अनुशासन, गरिमा और मर्यादा का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में यदि कोई विधायक स्वयं इस गरिमा को भंग करे, तो यह न केवल विधानसभा की पवित्रता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है, बल्कि आम नागरिकों के लिए भी एक गलत उदाहरण प्रस्तुत करता है।  

हाल ही में एक विधायक द्वारा सदन की कार्यवाही शुरू होने से पहले पान मसाला खाकर हॉल में थूकने की घटना ने इस गंभीर मुद्दे को उजागर किया है। विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने इसे अनुशासनहीनता करार देते हुए सख्त नाराजगी जताई और स्पष्ट किया कि यदि संबंधित विधायक अपनी गलती स्वीकार नहीं करता, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।  

विधानसभा केवल एक भवन नहीं है; यह लोकतंत्र का मंदिर है, जहां जनता के प्रतिनिधि प्रदेश के विकास, कानून-व्यवस्था और नीतियों पर चर्चा करते हैं। यहां पर की गई हर गतिविधि, बोले गए हर शब्द और किए गए हर कार्य का जनता पर सीधा प्रभाव पड़ता है।  

यदि जनप्रतिनिधि स्वयं अनुशासन का पालन नहीं करेंगे, तो आम जनता से इसकी अपेक्षा कैसे की जा सकती है? सदन में अनुशासन और स्वच्छता का महत्व केवल दिखावे के लिए नहीं है, बल्कि यह हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों और सदन की कार्यक्षमता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।  

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान का उद्देश्य न केवल सड़कों और सार्वजनिक स्थलों को स्वच्छ बनाना था, बल्कि लोगों में स्वच्छता को लेकर जागरूकता पैदा करना भी था। जब हमारे विधायकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे समाज को स्वच्छता और अनुशासन का संदेश देंगे, तो ऐसे गैर-जिम्मेदाराना कृत्य इस उद्देश्य को कमजोर करते हैं।  

स्वच्छता केवल बाहरी सफाई तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक मानसिकता है, जो अनुशासन और जागरूकता से जुड़ी होती है। सदन में थूकने जैसी घटनाएं न केवल स्वच्छता के नियमों का उल्लंघन हैं, बल्कि इससे यह भी प्रतीत होता है कि कुछ जनप्रतिनिधि स्वयं इन आदर्शों को गंभीरता से नहीं लेते।  

राजनीति का उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्त करना नहीं, बल्कि जनता की सेवा करना और उनके सामने एक आदर्श प्रस्तुत करना भी है। जब जनता अपने जनप्रतिनिधियों को गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार करते हुए देखती है, तो यह लोकतांत्रिक मूल्यों में उनके विश्वास को कमजोर करता है।  

विधानसभा अध्यक्ष द्वारा इस घटना पर सख्त रुख अपनाना सराहनीय कदम है। उनकी यह टिप्पणी कि **"विधानसभा सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश की है"**, यह स्पष्ट करती है कि सदन की गरिमा की रक्षा करना सभी सदस्यों की सामूहिक जिम्मेदारी है। इस घटना ने यह साबित कर दिया है कि सदन की गरिमा को बनाए रखने के लिए केवल नैतिक अपील पर्याप्त नहीं है। इसके लिए कड़े नियमों और दंडात्मक प्रावधानों की भी आवश्यकता है।  

 सख्त नियमों का पालन: विधानसभा परिसर में स्वच्छता और अनुशासनहीनता से संबंधित स्पष्ट नियम होने चाहिए और उनका कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए।  

अनुशासनहीनता पर कड़ी कार्रवाई: यदि कोई विधायक सदन की गरिमा का उल्लंघन करता है, तो उसके खिलाफ त्वरित कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि यह दूसरों के लिए सबक बने।  

सदस्यों की जागरूकता: विधायकों को यह याद दिलाने की जरूरत है कि वे केवल एक राजनीतिक दल के सदस्य नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश के प्रतिनिधि हैं। उन्हें अपने आचरण से आदर्श स्थापित करना चाहिए।  

जनता की भागीदारी: आम नागरिकों को भी अपने जनप्रतिनिधियों के आचरण पर निगरानी रखनी चाहिए और अनुशासनहीनता के मामलों में सवाल उठाने चाहिए। 

उत्तर प्रदेश विधानसभा में हुई यह घटना केवल एक विधायक के व्यक्तिगत आचरण का मामला नहीं है; यह संपूर्ण राजनीतिक व्यवस्था के लिए एक चेतावनी है कि यदि अनुशासन और स्वच्छता को लेकर ढिलाई बरती गई, तो लोकतांत्रिक संस्थानों की गरिमा को गहरी चोट पहुंच सकती है।

विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने इस विषय पर जिस गंभीरता से प्रतिक्रिया दी है, वह सराहनीय है। अब यह जरूरी है कि ऐसे कृत्यों के खिलाफ एक ठोस मिसाल कायम की जाए, ताकि भविष्य में कोई भी जनप्रतिनिधि सदन की गरिमा को ठेस पहुंचाने का दुस्साहस न कर सके। जनता ने अपने विधायकों को चुनकर विधानसभा भेजा है, इसलिए यह उनकी जिम्मेदारी है कि वे न केवल सदन की मर्यादा बनाए रखें, बल्कि स्वच्छता और अनुशासन का आदर्श उदाहरण भी प्रस्तुत करें।  

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