टैरिफ विवाद और भारत-अमेरिका व्यापार संबंध

विनोद कुमार झा

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत को ‘टैरिफ किंग’ करार देने और आयात पर जवाबी सीमा शुल्क लगाने की चेतावनी एक बार फिर भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में तनाव को उजागर करती है। हालांकि, दोनों देशों के बीच संबंध ऐतिहासिक रूप से मजबूत रहे हैं और व्यापारिक स्तर पर भी परस्पर सहयोग बढ़ा है, लेकिन टैरिफ संबंधी मतभेद कई बार विवाद का कारण बने हैं।  

भारत विकासशील अर्थव्यवस्था है, जहां घरेलू उद्योगों की सुरक्षा के लिए शुल्क संरचना को रणनीतिक रूप से डिजाइन किया गया है। अमेरिका और यूरोपीय देशों की तुलना में भारत में कस्टम ड्यूटी अधिक हो सकती है, लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहित करना और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना है। विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाओं में पहले से ही मजबूत औद्योगिक आधार है, जबकि भारत जैसे देशों को अपने उद्योगों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा से बचाने की आवश्यकता होती है।  

डोनाल्ड ट्रंप ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के समर्थक रहे हैं और इसी के तहत उन्होंने कई देशों के खिलाफ व्यापारिक कदम उठाए हैं। चीन के साथ ट्रेड वॉर हो या यूरोप और भारत पर दबाव, ट्रंप प्रशासन का रुख यह दर्शाता है कि वे अमेरिका के व्यापार घाटे को कम करने के लिए आक्रामक नीति अपनाना चाहते हैं। भारत द्वारा अमेरिकी उत्पादों—विशेष रूप से मोटरसाइकिल, चिकित्सा उपकरण और कृषि उत्पादों—पर लगाए गए ऊंचे शुल्क को लेकर ट्रंप ने बार-बार असंतोष जताया है।  

भारत को अपनी टैरिफ नीतियों की समीक्षा अवश्य करनी चाहिए, लेकिन इसे पूरी तरह से अमेरिकी दबाव में आकर नहीं किया जाना चाहिए। भारत के व्यापारिक हितों की रक्षा करते हुए संतुलित नीति अपनाने की आवश्यकता है। यदि अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंधों में सुधार लाना है, तो आपसी वार्ता और संतुलित कर-नीति को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।  

ट्रंप द्वारा दी गई 2 अप्रैल की समयसीमा भारत के लिए एक चुनौती हो सकती है, लेकिन यह एक अवसर भी हो सकता है, जिससे दोनों देश व्यापारिक असंतुलन को कम करने और परस्पर सहयोग को और मजबूत करने की दिशा में कार्य करें। अमेरिका और भारत विश्व की दो सबसे बड़ी लोकतांत्रिक अर्थव्यवस्थाएं हैं, और इनके बीच मजबूत व्यापारिक संबंध वैश्विक आर्थिक स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।  

भारत को अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए व्यापारिक नीतियों में आवश्यक सुधार करने चाहिए, लेकिन यह सुधार अमेरिकी दबाव में नहीं, बल्कि दीर्घकालिक आर्थिक हितों को ध्यान में रखकर किए जाने चाहिए। ट्रंप प्रशासन की चेतावनी को भारत को कूटनीतिक और आर्थिक दृष्टि से संतुलित तरीके से संभालना होगा, ताकि न केवल व्यापारिक संतुलन बना रहे बल्कि दोनों देशों के संबंध और भी मजबूत हो सकें।

Post a Comment

Previous Post Next Post