विनोद कुमार झा
विदेश मंत्री एस. जयशंकर का हालिया बयान इस सच्चाई को रेखांकित करता है कि आर्थिक नीतियां अब केवल व्यापारिक रणनीति तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे वैश्विक शक्ति संतुलन का अहम हथियार बन चुकी हैं। अमेरिका द्वारा टैरिफ लगाए जाने की धमकी और विभिन्न देशों द्वारा अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए प्रतिबंधों का सहारा लेने की प्रवृत्ति यह दर्शाती है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार अब खुले बाजार के सिद्धांतों पर नहीं, बल्कि राजनीतिक और कूटनीतिक समीकरणों पर अधिक निर्भर हो गया है।जयशंकर ने यह स्पष्ट किया कि टैरिफ, वित्तीय प्रतिबंध और आर्थिक दबाव आज के दौर की कड़वी सच्चाई हैं। वैश्विक राजनीति में आर्थिक संसाधनों का उपयोग केवल विकास और सहयोग तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रतिस्पर्धा और नियंत्रण का साधन भी बन गया है। अमेरिका और चीन के बीच जारी ट्रेड वॉर इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। अमेरिका, जो पहले मुक्त व्यापार का पक्षधर था, अब ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ जैसी नीतियों को आगे बढ़ा रहा है, जिससे वैश्विक व्यापार पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
भारत ने हमेशा संतुलित व्यापार नीति अपनाई है, लेकिन बदलते वैश्विक परिदृश्य में उसे भी अपनी रणनीति को पुनर्परिभाषित करना होगा। अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ से भारत के निर्यात क्षेत्र को नुकसान हो सकता है, विशेष रूप से आईटी, फार्मास्युटिकल्स और टेक्सटाइल जैसे प्रमुख क्षेत्रों में। हालांकि, भारत सरकार अमेरिका के साथ बातचीत कर रही है और पहले भी अन्य देशों के साथ टैरिफ कम करने की दिशा में सफल रही है, लेकिन यह जरूरी है कि भारत अपनी आर्थिक संप्रभुता बनाए रखते हुए वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अपनी स्थिति मजबूत करे।
जयशंकर ने यह भी इंगित किया कि टैरिफ केवल उत्पादों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह तकनीक, सोशल मीडिया और टेलीकॉम सेक्टर में भी देखने को मिल रहा है। अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा चीनी कंपनियों पर प्रतिबंध लगाना इसका उदाहरण है। भारत को इस स्थिति से सीख लेते हुए अपनी डिजिटल और तकनीकी स्वतंत्रता पर ध्यान देना होगा, ताकि भविष्य में किसी भी बाहरी दबाव से बचा जा सके।
जयशंकर का बयान इस बात का संकेत देता है कि भारत को बदलते आर्थिक समीकरणों को स्वीकार करना होगा और अपनी नीतियों को उसी के अनुरूप ढालना होगा। टैरिफ और आर्थिक प्रतिबंधों से बचने के लिए भारत को अपने व्यापारिक संबंधों को अधिक विविधतापूर्ण बनाना चाहिए और घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देकर आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना चाहिए। वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की मजबूत स्थिति सुनिश्चित करने के लिए कुशल कूटनीति और प्रभावी आर्थिक नीतियां अपनाना वक्त की मांग है।