भगवान श्रीगणेश ने शत्रुओं को कैसे बनाया भक्त?

 विनोद कुमार झा

भगवान श्रीगणेश केवल बुद्धि, समृद्धि और शुभता के देवता ही नहीं, बल्कि धर्म और सत्य के संरक्षक भी हैं। जब-जब अधर्म बढ़ा, तब-तब उन्होंने विभिन्न रूप धारण कर संसार को संकट से मुक्त किया। परंतु विष्णु के दशावतार या शिव के 19 अवतारों से अलग, श्रीगणेश की एक अनोखी विशेषता है। उन्होंने अपने शत्रुओं का वध करने के बजाय उन्हें अपने भक्त में परिवर्तित कर दिया। उनके ये आठ अवतार, जिन्हें "अष्टरूप" कहा जाता है, न केवल दुष्टों के संहार की कहानियाँ हैं, बल्कि यह दर्शाते हैं कि सच्ची विजय शस्त्र से नहीं, बल्कि सत्य और भक्ति से होती है।  

1. वक्रतुंड: अहंकार का विनाश

शत्रु: मत्सरासुर  

वाहन: सिंह  

शत्रु की पराजय: मत्सरासुर ने समर्पण कर श्रीगणेश की भक्ति स्वीकार की।  महादेव के परम भक्त मत्सरासुर को शिवजी से वरदान प्राप्त था कि उसे कोई पराजित नहीं कर सकता। वरदान की शक्ति ने उसे अहंकारी बना दिया, और उसके पुत्र सुंदरप्रिय और विषयप्रिय भी उसी मार्ग पर चल पड़े। जब उनके अत्याचारों से त्रस्त होकर देवता शिवजी के पास पहुँचे, तो उन्होंने श्रीगणेश का आह्वान करने को कहा।  श्रीगणेश ने सिंह पर सवार होकर वक्रतुंड रूप में अवतार लिया। उनकी विकट सूंड और तेजस्वी स्वरूप को देखकर भी मत्सरासुर डरा नहीं, बल्कि युद्ध करने चला। लेकिन जब उसके पुत्रों को श्रीगणेश ने अपनी सूंड में लपेटकर धराशायी कर दिया, तब उसे अपनी पराजय का अहसास हुआ। उसने आत्मसमर्पण कर लिया और गणपति का भक्त बन गया।  

2. एकदंत: मदासुर का अहंकार चूर किया 

शत्रु: मदासुर  

वाहन: मूषक  

शत्रु की पराजय: अहंकार छोड़कर गणपति की शरण में आया।  महर्षि च्यवन ने तप से मदासुर नामक असुर की रचना की, जो बाद में शुक्राचार्य का शिष्य बनकर अमरत्व की इच्छा रखने लगा। वरदान पाकर उसने देवताओं पर आक्रमण किया। घबराए देवताओं ने श्रीगणेश की आराधना की, और तब उन्होंने एकदंत रूप में अवतार लिया।  चार भुजाओं वाले इस स्वरूप में उन्होंने मदासुर को उसकी असलियत का अहसास कराया। एकदंत के तेज से अभिभूत होकर मदासुर ने बिना युद्ध किए ही गणपति को अपना इष्ट मान लिया और अपनी अधर्म यात्रा वहीं समाप्त कर दी।  

3. महोदर: मोहासुर का आत्मज्ञान

शत्रु: मोहासुर  

वाहन: मूषक  

शत्रु की पराजय: बिना युद्ध के ही आत्मसमर्पण कर दिया।  जब कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया, तब शुक्राचार्य ने नए शत्रु को तैयार किया मोहासुर । उसका शरीर विशाल था और शक्ति असीमित। देवता भयभीत होकर श्रीगणेश के पास पहुँचे, और तब उन्होंने  महोदर रूप में अवतार लिया।  उनका विशाल उदर आकाश तक फैला था। जैसे ही उन्होंने मोहासुर के सामने अपने इस विराट रूप को प्रकट किया, असुर भयभीत हो गया। वह बिना लड़े ही उनकी शरण में आ गया और उन्हें अपना आराध्य मान लिया।  

4. विकट: कामासुर को सत्य का मार्ग दिखाया  

शत्रु: कामासुर  

वाहन: मोर (कार्तिकेय का वाहन)  

शत्रु की पराजय: घोर युद्ध के बाद गणपति का भक्त बना। जब महादेव ने जालंधर का वध किया, तब उसकी पत्नी वृंदा के शाप से कामासुर नामक असुर उत्पन्न हुआ। उसने महादेव से अनेक शक्तियाँ प्राप्त कर देवताओं को आतंकित कर दिया।  तब श्रीगणेश ने विकट रूप धारण कर अपने बड़े भाई कार्तिकेय के वाहन मोर पर सवार होकर युद्धभूमि में प्रवेश किया। दोनों के बीच घोर युद्ध हुआ, लेकिन अंततः कामासुर हार मान गया और स्वयं को गणपति के चरणों में समर्पित कर दिया।  

5. गजानन: लोभासुर का मोहभंग  

शत्रु: लोभासुर  

वाहन: मूषक  

शत्रु की पराजय: बिना युद्ध किए ही गणपति के भक्त बने।  धन के देवता कुबेर के अहंकार से लोभासुर उत्पन्न हुआ। उसने महादेव की तपस्या कर वरदान प्राप्त किया और पूरे त्रिलोक पर अपना अधिकार जमा लिया। देवता स्वर्ग छोड़कर इंद्र के नेतृत्व में श्रीगणेश की शरण में पहुँचे।  श्रीगणेश ने गजानन रूप में अवतार लिया और मूषक द्वारा लोभासुर को युद्ध का संदेश भेजा। लेकिन शुक्राचार्य ने लोभासुर को समझाया कि गजानन स्वयं आए हैं, तो पराजय निश्चित है। लोभासुर ने बिना युद्ध किए ही गणपति को अपना गुरु मान लिया और लोभ का त्याग कर दिया।  

6. लंबोदर: क्रोधासुर का क्रोध शांत किया  

शत्रु: क्रोधासुर  

वाहन:  मूषक  

शत्रु की पराजय: गणेशजी की शक्ति को समझ आत्मसमर्पण किया।  क्रोधासुर ने सूर्यदेव की तपस्या कर अजेयता का वरदान पाया और स्वर्ग पर चढ़ाई कर दी। इंद्र ने श्रीगणेश से प्रार्थना की, और तब उन्होंने लंबोदर रूप धारण किया।  श्रीगणेश ने अपने विशाल उदर को इतना फैला दिया कि क्रोधासुर का हर मार्ग बंद हो गया। आखिरकार, उसकी सारी शक्ति बेकार हो गई, और उसने हार मानकर गणपति को अपना स्वामी स्वीकार कर लिया।  

7. विघ्नराज: ममासुर को अहंकार से मुक्त किया

शत्रु: ममासुर  

वाहन: सिंह  

शत्रु की पराजय: अपनी भूल का अहसास हुआ और भक्ति पथ पर आ गया।  माता पार्वती की हंसी से जन्मे  ममासुर को शम्बरासुर ने अपनी पुत्री से विवाह करवा कर शक्तिशाली बना दिया। जब उसने देवताओं को बंदी बना लिया, तो गणेशजी ने विघ्नराज रूप धारण कर युद्ध किया।  श्रीगणेश के अद्भुत तेज और पराक्रम को देखकर ममासुर ने आत्मसमर्पण कर दिया और गणपति को अपना इष्ट मान लिया।  

8. धूम्रवर्ण: अहंतासुर का अभिमान मिटाया

शत्रु: अहंतासुर  

वाहन: घोड़ा  

शत्रु की पराजय: अपनी भूल का एहसास हुआ और शरण में आ गया।  सूर्यदेव की छींक से उत्पन्न  अहंतासुर ने अपार शक्ति अर्जित की और निरंकुश बन गया। जब उसकी शक्ति देवताओं के लिए संकट बन गई, तब गणेशजी ने धूम्रवर्ण रूप धारण कर उसे पराजित किया।  श्रीगणेश के दिव्य तेज से अभिभूत होकर अहंतासुर ने अपना अहंकार त्याग दिया और गणपति की शरण में आ गया।  

श्रीगणेश के ये अष्ट अवतार दर्शाते हैं कि असली जीत वही है, जो शत्रु को भी अपना बना ले। शक्ति से अधिक प्रभावशाली है सद्भावना, भक्ति और सत्य। यही कारण है कि गणपति न केवल विध्नहर्ता हैं, बल्कि विध्नराज भी हैं। जो बाधाओं को नष्ट कर हमें सही मार्ग दिखाते हैं।

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