विनोद कुमार झा
भारत और अमेरिका के बीच बढ़ता रक्षा सहयोग वैश्विक सुरक्षा संतुलन के लिहाज से महत्वपूर्ण है। हाल ही में अमेरिकी खुफिया प्रमुख तुलसी गबार्ड की भारत यात्रा और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ उनकी बैठक से यह साफ हो गया कि दोनों देश आतंकवाद और अलगाववादी गतिविधियों के खिलाफ साझा रणनीति को लेकर गंभीर हैं। भारत ने अमेरिका में सक्रिय खालिस्तानी संगठनों, विशेष रूप से "सिख्स फॉर जस्टिस" (SFJ), के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है, जो न केवल भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं, बल्कि अमेरिका में हिंदू धार्मिक स्थलों को भी निशाना बना रहे हैं।
खालिस्तानी संगठन SFJ और अन्य अलगाववादी गुटों के पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों तथा आईएसआई से संबंध किसी से छिपे नहीं हैं। भारत लंबे समय से अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों से इन संगठनों पर नकेल कसने की मांग कर रहा है। अब जब भारत ने स्पष्ट रूप से अमेरिका से SFJ को आतंकवादी संगठन घोषित करने का अनुरोध किया है, तो यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि अमेरिका इस पर क्या कार्रवाई करता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री क्रिस्टोफर लक्सन से इस विषय पर चर्चा की, जिससे स्पष्ट होता है कि भारत इसे केवल अमेरिका तक सीमित नहीं रख रहा, बल्कि अन्य मित्र देशों से भी समर्थन मांग रहा है। यह कूटनीतिक दृष्टि से एक ठोस पहल है, क्योंकि खालिस्तानी गतिविधियाँ केवल भारत ही नहीं, बल्कि अन्य देशों की आंतरिक सुरक्षा के लिए भी खतरा हैं।
तुलसी गबार्ड की यात्रा सिर्फ आतंकवाद पर चर्चा तक सीमित नहीं रही, बल्कि भारत-अमेरिका के रक्षा संबंधों को और मजबूत करने की दिशा में भी कई महत्वपूर्ण वार्ताएँ हुईं। दोनों देशों ने अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकी साझा करने और समुद्री रणनीतिक सहयोग बढ़ाने पर विशेष जोर दिया। यह इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की बढ़ती गतिविधियों के मद्देनजर भी अहम कदम है। रक्षा क्षेत्र में आपूर्ति श्रृंखला स्थापित करने की पहल भी चर्चा में रही, जिससे भारत की स्वदेशी रक्षा उत्पादन क्षमता को बढ़ावा मिलेगा। भारत का लक्ष्य है कि रक्षा तकनीक और हथियार निर्माण के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त की जाए, और अमेरिका के साथ मजबूत साझेदारी इसमें सहायक हो सकती है।
राजनाथ सिंह और तुलसी गबार्ड की मुलाकात के बाद साझा बयान और एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर की गई टिप्पणी यह दर्शाती है कि भारत अब अपनी सुरक्षा चिंताओं को अंतरराष्ट्रीय मंच पर सीधे और स्पष्ट रूप से रख रहा है। भारत ने आतंकवाद के खिलाफ अपनी रणनीति को केवल घरेलू उपायों तक सीमित नहीं रखा है, बल्कि अमेरिका, न्यूजीलैंड और अन्य मित्र देशों के साथ मिलकर वैश्विक स्तर पर इसके खात्मे की दिशा में काम कर रहा है।
भारत और अमेरिका के संबंध पिछले एक दशक में लगातार मजबूत हुए हैं, और इस यात्रा ने इन्हें और अधिक मजबूती प्रदान की है। अब यह अमेरिका की जिम्मेदारी बनती है कि वह भारत की चिंताओं को गंभीरता से ले और खालिस्तानी संगठनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे। यदि अमेरिका SFJ को आतंकी संगठन घोषित करता है और उसके नेताओं के खिलाफ कठोर कदम उठाता है, तो यह आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में एक बड़ा कदम होगा। भारत ने अपनी ओर से जो स्पष्ट और आक्रामक रुख अपनाया है, वह उसकी कूटनीतिक मजबूती और राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि अमेरिका इस पर कैसे प्रतिक्रिया देता है और दोनों देशों के संबंध इस दिशा में कैसे आगे बढ़ते हैं।