विनोद कुमार झा
वाल्मीकि रामायण में वर्णित कथा के अनुसार जब प्रभु श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी अपने वनवास के दौरान अनेक ऋषियों और मुनियों के दर्शन करते हुए आगे बढ़ रहे थे। मार्ग में वे जब एक सुंदर, विशाल और अद्भुत सरोवर के समीप पहुंचे, तो उनका ध्यान एक विचित्र बात पर गया।
सरोवर की लहरों के बीच से मनमोहक संगीत की ध्वनि आ रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि कोई अदृश्य गायक और वादक वहां मौजूद हैं। श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण आश्चर्यचकित हो उठे।
"भैया, यह कैसी ध्वनि है? क्या यहाँ कोई गंधर्व या देवता रहते हैं?" लक्ष्मण ने जिज्ञासा से पूछा।
माता सीता भी यह सुनकर चकित रह गईं और बोलीं, "प्रभु, यह तो बहुत अद्भुत स्थान लगता है। यहाँ यह दिव्य संगीत कहाँ से आ रहा है?"
श्रीराम ने ऋषि धर्मभृत की ओर देखा और कहा, "मुनिवर, कृपया हमें इस रहस्य के बारे में बताइए।"
ऋषि धर्मभृत मुस्कुराए और बोले, "हे श्रीराम! यह कोई साधारण सरोवर नहीं, यह 'पञ्चापप्सर' सरोवर है। इसका निर्माण घोर तपस्वी ऋषि माण्डकर्णि ने किया था।"
ऋषि माण्डकर्णि ने अपनी साधना में लीन होकर इस सरोवर के भीतर वायु पीकर 10000 वर्षों तक घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से देवलोक के देवता चिंतित हो उठे। उन्हें लगा कि यह महान तपस्वी कहीं उनकी सत्ता को चुनौती न दे बैठे। इसलिए देवताओं ने स्वर्ग की पाँच श्रेष्ठ अप्सराओं को उनके तप भंग करने के लिए भेजा।
अप्सराओं का सौंदर्य अद्वितीय था। उनका मोहक नृत्य और आकर्षक रूप देखकर ऋषि माण्डकर्णि का मन विचलित हो गया। वे उन अप्सराओं के मोहपाश में बंध गए और उनसे विवाह कर लिया।
ऋषि माण्डकर्णि और उनकी पांच अप्सराओं ने इसी सरोवर के भीतर एक भव्य जलमहल का निर्माण किया, जो स्वर्ग के समान शोभायमान था। ऋषि माण्डकर्णि ने अपनी तपस्या के प्रभाव से अमरत्व और चिरयौवन प्राप्त कर लिया और अब वे अपनी पत्नियों के साथ यहीं निवास करते हैं। वे अप्सराएँ अपने पति को प्रसन्न करने के लिए निरंतर नृत्य और संगीत करती हैं।
"हे श्रीराम! यह जो आप अद्भुत संगीत सुन रहे हैं, वह उन्हीं अप्सराओं का है," ऋषि धर्मभृत ने कहा।
श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण ने इस रहस्यमयी कथा को सुनकर ऋषि माण्डकर्णि के तप और इस अनोखे सरोवर के रहस्य को समझा। यह स्थान, जो अब भी अपने सौंदर्य और दिव्य ध्वनि से युक्त था, ऋषि माण्डकर्णि की तपस्या और अप्सराओं की मोहक क्रीड़ाओं का सजीव प्रमाण था।
जय श्री राम!