कहानी: जीवन की राहें...

 विनोद कुमार झा

गर्मी की तपती दोपहर में, ट्रेन अपनी पूरी रफ्तार से पटरी पर दौड़ रही थी। खिड़की से बाहर झांकते हुए आरव की नजरें उन पगडंडियों पर जा टिकीं जो दूर तक फैली थीं। ये पगडंडियाँ उसे अपने जीवन के बीते वर्षों की याद दिला रही थीं—संघर्ष, उम्मीदें और फैसलों की राहें।  

आरव एक छोटे से गाँव से निकला था, जहाँ उसके पिता एक साधारण किसान थे। बचपन से ही उसने कठिनाइयों को करीब से देखा था—खेतों में काम करते पिता, माँ का सिलाई कर परिवार को सहारा देना, और उसकी खुद की पढ़ाई के लिए जूझने की जिद। जब उसने शहर जाकर पढ़ाई करने की इच्छा जताई, तो गाँव में सभी ने कहा, "गाँव का लड़का शहर में क्या करेगा?" लेकिन पिता ने उसका हौसला बढ़ाया, "जीवन की राहें आसान नहीं होतीं, बेटा, लेकिन जो चलते रहते हैं, वे मंज़िल पा ही लेते हैं।"  

आरव ने शहर जाकर पढ़ाई की, संघर्ष किया और आखिरकार एक अच्छी नौकरी पा ली। लेकिन सफलता की इस राह में उसने बहुत कुछ खो दिया—माँ की ममता, पिता की स्नेहिल मुस्कान और गाँव की मिट्टी की खुशबू।  

आज वर्षों बाद, जब वह सफलता के शिखर पर था, उसके भीतर एक खालीपन था। वह समझ चुका था कि जीवन की राहें सिर्फ मंज़िल तक पहुँचने के लिए नहीं होतीं, बल्कि राह में जो रिश्ते, यादें और भावनाएँ होती हैं, वही असली पूँजी होती हैं।  

ट्रेन जैसे-जैसे गाँव के करीब पहुँच रही थी, उसके मन में हलचल बढ़ रही थी। क्या गाँव अब भी वैसा ही होगा? क्या पिता वैसे ही उसका इंतजार कर रहे होंगे?  

ट्रेन स्टेशन पर रुकी। आरव ने बैग उठाया और तेज़ी से बाहर निकला। सामने पिता खड़े थे, आँखों में वही पुरानी चमक और चेहरे पर वही स्नेहिल मुस्कान। आरव ने दौड़कर उन्हें गले लगा लिया। 

जीवन की राहें कठिन होती हैं, लेकिन अगर दिल के रिश्ते मजबूत हों, तो हर राह खूबसूरत बन जाती है।

आरव ने पिता को गले लगाकर महसूस किया कि वर्षों की दूरी ने उनके स्नेह को कम नहीं किया था। उनकी आँखों में उमड़ते आँसू शायद वह सब कुछ कह रहे थे जो शब्द नहीं कह सकते थे। स्टेशन के बाहर गाँव की वही पुरानी सड़कें, मिट्टी की सोंधी खुशबू, और बचपन की यादें उसे घेरने लगीं।  

पिता ने मुस्कुराते हुए कहा, "कैसा लगा इतने सालों बाद गाँव लौटकर?" 

आरव ने चारों तरफ नजर दौड़ाई। वह जिन गलियों में बचपन में खेला करता था, वे अब भी वैसी ही थीं, बस कुछ घरों की दीवारें और कुछ चेहरे बदल गए थे। उसने धीरे से कहा, "ऐसा लग रहा है जैसे मैं खुद को फिर से खोजने आया हूँ, बाबा।"

गाँव में खबर फैलते देर नहीं लगी कि आरव लौट आया है। लोग उसे देखने आने लगे—कुछ दोस्त, कुछ पुराने पड़ोसी, और कुछ अनजान चेहरे, जो अब बड़े हो चुके थे। बचपन का दोस्त रवि दौड़ता हुआ आया और मुस्कुराकर बोला, "भूल गया हमें बड़े आदमी?"  

आरव हँस पड़ा, "कैसे भूल सकता हूँ, भाई? पर शायद खुद को ही भूल गया था।" रवि ने उसे पुरानी चौपाल की ओर खींच लिया, जहाँ कभी वे सपने बुना करते थे। बड़े शहरों में जाने के, कुछ बनने के, अपनी पहचान बनाने के। लेकिन अब वहाँ बैठकर उसे एहसास हुआ कि असली पहचान गाँव की उन्हीं गलियों में थी, जहाँ उसने बचपन जिया था।  

उस रात जब वह अपने पुराने कमरे में सोने गया, तो माँ की यादों ने उसे घेर लिया। दीवार पर अब भी उसकी माँ की तस्वीर लगी थी। उसने तस्वीर को छूकर महसूस किया, जैसे माँ ने आज भी उस पर प्यार बरसाने के लिए हाथ बढ़ाया हो। उसकी आँखें नम हो गईं।  अगले कुछ दिनों तक वह गाँव में ही रहा, पिता के साथ खेतों में गया, बच्चों के साथ खेला, चौपाल में बैठा और गाँववालों की बातें सुनीं। इन कुछ दिनों में उसे एहसास हुआ कि सफलता सिर्फ ऊँचाइयों पर पहुँचने का नाम नहीं, बल्कि अपनी जड़ों से जुड़े रहने में भी है। 

एक दिन पिता ने पूछा, "अब वापस कब जा रहे हो?"  

आरव कुछ देर चुप रहा, फिर मुस्कुराकर बोला, "अबकी बार लौटने के लिए आया हूँ, बाबा। शहर ने मुझे नाम दिया, लेकिन गाँव ने मुझे पहचान। अब मैं अपनी पहचान के साथ रहना चाहता हूँ।" 

पिता की आँखें भर आईं। उन्होंने प्यार से आरव के सिर पर हाथ फेरा और कहा, "मैं जानता था, जीवन की राहें तुम्हें वापस यहीं लाएँगी।"

आरव ने तय कर लिया था—अब वह गाँव में ही रहेगा, यहाँ के बच्चों के लिए एक स्कूल खोलेगा, ताकि कोई और बच्चा शिक्षा के लिए संघर्ष न करे। अब वह न केवल अपने लिए, बल्कि अपने गाँव के लिए भी एक नई राह बनाने जा रहा था।  आरव के इस फैसले ने पूरे गाँव में हलचल मचा दी। कुछ लोगों को उसकी योजना पर भरोसा था, तो कुछ को संदेह था।

"शहर की चमक-दमक छोड़कर गाँव में टिक पाओगे?" "इतना पैसा लगाओगे, पर फायदा क्या होगा?" लेकिन आरव ने मन बना लिया था। उसने अपने बचत के पैसे और पिता की थोड़ी जमीन बेचकर गाँव में एक स्कूल खोलने की योजना बनाई।  

एक नई शुरुआत:    गाँव में कोई अच्छा स्कूल नहीं था, इसलिए बच्चे या तो कई किलोमीटर दूर पढ़ने जाते थे या फिर पढ़ाई ही छोड़ देते थे। आरव को याद आया कि कैसे उसने खुद संघर्ष किया था, इसलिए उसने फैसला किया कि गाँव के बच्चों को बेहतर शिक्षा दी जाएगी।  

रवि और कुछ अन्य दोस्त इस काम में उसका साथ देने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने गाँव के पुराने पंचायत भवन को देखा, जो सालों से खाली पड़ा था। आरव ने ग्राम प्रधान से बात की और भवन को स्कूल में बदलने की अनुमति ले ली। फिर शुरू हुआ सफर एक नई राह बनाने का।  

आरव और उसके दोस्तों ने गाँववालों को समझाया कि शिक्षा ही असली बदलाव लाएगी। धीरे-धीरे लोग जुड़ने लगे। किसी ने रंग-रोगन के लिए मदद दी, किसी ने फर्नीचर, तो किसी ने किताबें। देखते ही देखते कुछ ही महीनों में पंचायत भवन एक सुंदर स्कूल में बदल गया।  

पहला दिन, पहली रोशनी : जब स्कूल का पहला दिन आया, तो आरव की आँखें खुशी से चमक उठीं। दर्जनों बच्चे सफेद-नीली वर्दी में वहाँ खड़े थे, आँखों में सपने और चेहरे पर उम्मीद की चमक। पहले दिन जब उसने बच्चों से पूछा, "बड़े होकर क्या बनना चाहते हो?" तो किसी ने डॉक्टर कहा, किसी ने शिक्षक, तो किसी ने इंजीनियर।  

आरव मुस्कुराया और कहा, "तुम जो चाहो बन सकते हो, बस मेहनत और लगन से अपने सपनों की राह पर चलते रहो।" दिन बीतते गए। स्कूल में पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों को नई चीजें सिखाई जाने लगीं। कंप्यूटर, खेल, कला और विज्ञान। आरव ने शहर से कुछ शिक्षकों को भी बुलाया, ताकि बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले। गाँव के लोग, जो पहले उसके फैसले पर शक कर रहे थे, अब उसकी तारीफ करने लगे।  

जीवन की राहें बदलती हैं : एक दिन गाँव में कुछ अधिकारी आए। उन्होंने स्कूल को देखा और सरकार की ओर से मदद देने की बात कही। अब स्कूल को और संसाधन मिलने लगे, और देखते ही देखते वह आसपास के गाँवों के बच्चों के लिए भी एक शिक्षा केंद्र बन गया।  

एक शाम, जब आरव अपने पिता के साथ चौपाल में बैठा था, तो पिता ने गर्व से कहा, "बेटा, तुमने जो किया, वो सिर्फ अपने लिए नहीं, पूरे गाँव के लिए किया है। जीवन की राहें आसान नहीं होतीं, लेकिन सही फैसले उन्हें खूबसूरत बना देते हैं।" आरव मुस्कुरा दिया। उसने गाँव लौटकर सिर्फ अपना अतीत नहीं पाया, बल्कि गाँव के बच्चों के भविष्य के लिए एक नई राह बना दी थी।  

"जीवन की राहें कभी भी स्थिर नहीं होतीं, वे बदलती रहती हैं। पर अगर हिम्मत, मेहनत और सही सोच हो, तो हम उन राहों को खूबसूरत बना सकते हैं। अपने लिए और दूसरों के लिए भी।" जीवन की राहें कठिन होती हैं, लेकिन जब हम अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं, तो हर राह सही दिशा में मुड़ जाती है।


1 Comments

  1. गुरुजी बहुत गहरी बात लिखी है आपने आर्टिकल बहुत ही अच्छा लगा दिल को छू गया

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