कहानी: बजते पायल

 विनोद कुमार झा

गांव की तंग गलियों में कदम रखते ही आरव का दिल तेज़ी से धड़कने लगता था। उसे इंतजार रहता था उस आवाज़ का, जो हर शाम मंदिर की सीढ़ियों से उतरते वक्त आती थी पायल की मधुर झंकार। यह आवाज़ उसके मन के किसी कोने में बसी रह गई थी। यह पायल नंदिनी की थी। नंदिनी, जो मंदिर में नित्य भजन गाने आती थी, उसके गले से निकलती मधुर ध्वनि और पैरों की पायल की रुनझुन आरव को किसी और ही दुनिया में ले जाती थी। आरव चुपचाप मंदिर की सीढ़ियों पर बैठा, रोज़ उसकी झलक पाने के लिए वहाँ आता। धीरे-धीरे दोनों की आँखों के मिलन ने बातों का रूप ले लिया और फिर मन से मन जुड़ने लगा।

लेकिन कहानी इतनी सरल नहीं थी। आरव की ज़िंदगी में एक और नाम था साक्षी। साक्षी उसकी बचपन की मित्र थी, जो उससे बचपन से ही प्रेम करती थी। उसने हमेशा आरव का साथ निभाया, उसके हर सुख-दुख में वह उसके साथ खड़ी रही। आरव की खुशी ही उसकी खुशी थी। लेकिन जब उसे आरव और नंदिनी के बारे में पता चला, तो उसके मन में पीड़ा जागी। वह जानती थी कि आरव अब नंदिनी से प्रेम करने लगा है, लेकिन उसके दिल में आरव के लिए वही पुराना प्यार आज भी ज़िंदा था।

समय बीतता गया, और आरव नंदिनी के प्रेम में गहराई से डूबता चला गया। लेकिन एक दिन, नंदिनी को शहर छोड़कर जाना पड़ा। वह अपने माता-पिता की ज़िम्मेदारियों में बंधी थी, और उसने आरव से कोई वादा नहीं किया। उसके जाने के बाद, आरव बिल्कुल टूट गया। वह रोज़ उन्हीं मंदिर की सीढ़ियों पर बैठा उसकी पायल की झंकार को सुनने की कोशिश करता, लेकिन अब वह आवाज़ कहीं गुम हो चुकी थी।

इसी दौरान, साक्षी ने उसकी देखभाल की, उसे संभाला, उसे फिर से ज़िंदगी में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। आरव धीरे-धीरे समझने लगा कि सच्चा प्रेम केवल पाने में नहीं, बल्कि निभाने में भी होता है। साक्षी का निःस्वार्थ प्रेम उसे अब महसूस होने लगा था।

एक शाम, जब आरव मंदिर की उन्हीं सीढ़ियों पर बैठा था, उसने फिर वही पायल की आवाज़ सुनी। लेकिन यह नंदिनी नहीं, बल्कि साक्षी थी। वह धीरे-धीरे आरव के पास आई और बोली, "कुछ आवाज़ें हमेशा हमारे दिल में बसी रहती हैं, लेकिन जो हमारे साथ चलती हैं, उनकी अहमियत हमें देर से समझ आती है।"

आरव ने उसकी ओर देखा और पहली बार उसे महसूस हुआ कि जो प्रेम उसे सालों से मिल रहा था, शायद वही सच्चा प्रेम था। पायल की वह झंकार आज भी गूँज रही थी, लेकिन अब उसमें एक नया एहसास था—समर्पण और सच्चे प्रेम का।

आरव अब साक्षी के साथ समय बिताने लगा। वह महसूस करने लगा कि साक्षी की उपस्थिति उसके जीवन में कितनी महत्वपूर्ण थी। धीरे-धीरे, वह अपने अतीत की यादों से बाहर आने लगा और वर्तमान को अपनाने लगा। साक्षी के साथ बिताए पलों में उसे सुकून मिलने लगा। उसकी हंसी, उसकी बातें, और उसका निस्वार्थ प्रेम आरव के मन को गहराई तक छूने लगे।

एक दिन, जब आरव साक्षी के साथ सैर कर रहा था, उसने अचानक साक्षी का हाथ थाम लिया। साक्षी ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा। आरव ने मुस्कुराते हुए कहा, "शायद मैं अब समझ गया हूँ कि प्रेम केवल पाने का नाम नहीं, बल्कि साथ निभाने का भी नाम है। तुमने हमेशा मेरा साथ दिया, अब मेरी बारी है।"

साक्षी की आँखों में आँसू आ गए, लेकिन वे खुशी के आँसू थे। उसने हल्की मुस्कान के साथ अपना हाथ आरव के हाथ में छोड़ दिया। उस पल में, दोनों ने एक-दूसरे को बिना कुछ कहे सब कुछ कह दिया।

समय बीतता गया, और आरव व साक्षी का रिश्ता और मजबूत होता गया। आरव ने अब नंदिनी की यादों को एक मीठे अतीत के रूप में स्वीकार कर लिया था, लेकिन उसकी ज़िंदगी में जो वास्तविक प्रेम था, वह साक्षी थी।

आज भी, जब मंदिर की सीढ़ियों पर पायल की झंकार गूंजती, आरव और साक्षी एक साथ बैठकर उसे सुनते। लेकिन अब वह आवाज़ उन्हें भूतकाल में नहीं, बल्कि एक सुंदर भविष्य की ओर ले जाती थी।

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