विनोद कुमार झा
मिथिलांचल की होली अपनी अनूठी परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर के कारण पूरे भारत में विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यहां होली का त्योहार सिर्फ रंगों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह भक्ति, संगीत, आनंद और सामूहिक उत्सव का एक अभिन्न हिस्सा बन जाता है।

सामूहिक उत्सव और पारंपरिक रीति-रिवाज : होली के दिन गांव के छोटे-बड़े, बुजुर्ग और बच्चे सभी एक साथ मिलकर जश्न मनाते हैं। हर घर के दरवाजे पर जाकर लोग अबीर-गुलाल लगाते हैं और बधाई देते हैं। ढोल-नगाड़ों की थाप पर लोग झूमते-गाते हैं, और "जोगीरा सरारार..." के मधुर लोकगीत वातावरण में रंग भर देते हैं।
जनकपुर की विशेष होली : जनकपुर, जो माता सीता की जन्मभूमि है, वहां होली का एक अलग ही महत्व है। यहां भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता की पूजा-अर्चना करके होली की शुरुआत की जाती है। भक्तिमय वातावरण में श्रद्धालु भजन-कीर्तन करते हैं और भगवान के रंगों में रंगकर इस पर्व को अत्यंत पवित्र भाव से मनाते हैं।
भांग और पकवानों का स्वाद : मिथिलांचल की होली स्वादिष्ट पकवानों के बिना अधूरी होती है। ठंडाई, पुरिकया, पुआ, दही-बड़ा और अन्य पारंपरिक व्यंजन इस त्योहार की मिठास को बढ़ाते हैं। कई स्थानों पर भांग का भी विशेष प्रचलन है, जिसे ठंडाई में मिलाकर पीया जाता है। हालांकि, गांव के बड़े-बुजुर्ग इसका विशेष ध्यान रखते हैं कि कोई भी अनुचित व्यवहार न करे और त्योहार का आनंद सभी को सुरक्षित रूप से मिले।
होलिका दहन की परंपरा : होलिका दहन, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, इस पर्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भक्त प्रह्लाद और होलिका की कथा के आधार पर इस दिन गांव के बुजुर्ग और युवा मिलकर होलिका दहन करते हैं और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं।
मिथिला की पारंपरिक वेशभूषा और सांस्कृतिक पहचान : मिथिला की होली की एक खास पहचान है— सफेद धोती-कुर्ता, माथे पर लाल पाग और अबीर-गुलाल से रंगे चेहरे। इस रंग-बिरंगे माहौल को देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो सारे देवी-देवता स्वयं होली खेलने पृथ्वी पर उतर आए हों।
विद्यापति की रचनाओं में होली : मिथिला के प्रसिद्ध कवि विद्यापति ने भी अपनी रचनाओं में होली का विशेष उल्लेख किया है। लोकगीतों में होली का उल्लास झलकता है—
"होली एक अनमोल है, सब मिलकर खेलो भाई,
बच्चे-बूढ़े मिलकर सबके घर जाओ भाई।"
मिथिलांचल की होली केवल रंगों का पर्व नहीं, बल्कि प्रेम, भाईचारे और सामाजिक समरसता का प्रतीक है। यहां जात-पात, ऊँच-नीच का भेदभाव भूलकर सभी एक साथ गले मिलते हैं और रंगों में सराबोर होकर इस पर्व का आनंद उठाते हैं।
यही तो मिथिला की गौरवशाली परंपरा है, जहां हर घर, हर आंगन, हर गली-चौक में "जोगीरा सररर..." की गूंज सुनाई देती है और पूरा मिथिलांचल रंगों, प्रेम और उल्लास में डूब जाता है।
(बुरा न मानो होली है)