कहानी: रिश्ते का सच

 
रवि और आर्या की शादी को दस साल हो चुके थे। शुरू में उनका रिश्ता बहुत मधुर था, लेकिन समय के साथ छोटी-छोटी बातें झगड़ों में बदलने लगीं। एक-दूसरे की बातें समझने की जगह वे बहस करने लगे। रवि अक्सर ऑफिस के काम में व्यस्त रहता, और आर्या को लगता कि वह अब उसकी परवाह नहीं करता।  एक दिन किसी छोटी-सी बात पर उनकी फिर बहस हो गई। गुस्से में आर्या ने कह दिया, "तुम्हें अब मेरी कोई परवाह नहीं। शायद हमारे रिश्ते की अहमियत ही खत्म हो गई है।" रवि भी चुप नहीं रहा, "अगर तुम्हें ऐसा लगता है, तो शायद यही सच है।"

उस रात दोनों ने अलग-अलग कमरों में सोने का फैसला किया। पर नींद किसी को नहीं आई। दोनों ही सोच रहे थे, क्या सच में उनका रिश्ता अब खत्म हो गया है?  

अगली सुबह रवि के ऑफिस जाने के बाद आर्या ने अलमारी साफ करनी शुरू की। तभी उसे एक पुराना बॉक्स मिला, जिसमें उनकी शादी की तस्वीरें, कुछ खत और वो छोटी-छोटी चीजें थीं, जो उन्होंने सालों पहले एक-दूसरे को गिफ्ट की थीं। हर तस्वीर के पीछे एक खूबसूरत याद जुड़ी थी।  आर्या की आँखों में आंसू आ गए। उसे एहसास हुआ कि प्यार कभी खत्म नहीं हुआ था, बस वो दोनों अपनी व्यस्त जिंदगी में इसे भूल बैठे थे।  

उसी शाम, जब रवि घर आया, तो उसने देखा कि डाइनिंग टेबल पर उसकी पसंदीदा चाय और कुछ पुराने फोटो रखे थे। आर्या ने मुस्कुराकर कहा, "शायद हम भूल गए थे कि हमारा रिश्ता कितनी छोटी-छोटी खुशियों से बना है।" 

रवि भी मुस्कुराया और कहा, "शायद यही रिश्ते का सच है—यह कभी खत्म नहीं होता, बस हमें इसे संभालना आना चाहिए।"उस रात दोनों ने फिर से अपने रिश्ते को नए सिरे से समझा और अपने प्यार को फिर से संजोने का फैसला किया। क्योंकि रिश्ते लड़ाई से नहीं टूटते, बल्कि उन्हें संभालने की कोशिश ना करने से खत्म हो जाते हैं।

उस रात रवि और आर्या देर तक बातें करते रहे। वे याद करने लगे कि कैसे उनकी पहली मुलाकात हुई थी, कैसे छोटे-छोटे झगड़ों के बावजूद वे एक-दूसरे के बिना रह नहीं पाते थे।  

रवि ने हल्के से आर्या का हाथ पकड़कर कहा, "शायद हमें फिर से वैसे ही जीना चाहिए, जैसे पहले जीते थे—छोटी खुशियों को संजोते हुए, एक-दूसरे के लिए वक्त निकालते हुए।"  आर्या ने सिर हिलाया, "हाँ, प्यार को जताना भी जरूरी होता है। हम सिर्फ यह मानकर नहीं चल सकते कि दूसरा जानता है कि हम उसे प्यार करते हैं।"  

अगले दिन से ही दोनों ने अपने रिश्ते को बेहतर बनाने की कोशिश शुरू कर दी। अब रवि सिर्फ ऑफिस की टेंशन घर नहीं लाता था, बल्कि आर्या के साथ बैठकर अपने दिन की बातें करता था। आर्या ने भी शिकायतों के बजाय उसकी बातें ध्यान से सुननी शुरू कर दीं। वे फिर से हँसने लगे, एक-दूसरे के लिए छोटे-छोटे सरप्राइज़ प्लान करने लगे।  

धीरे-धीरे, उनके रिश्ते में फिर से वही ताजगी लौट आई, जो सालों पहले थी। अब वे समझ चुके थे कि रिश्ता सिर्फ प्यार से नहीं चलता, उसे निभाने की चाहत भी होनी चाहिए।

एक शाम, जब वे बालकनी में बैठे चाय पी रहे थे, रवि ने मुस्कुराते हुए कहा, "अगर हम उस दिन अलग-अलग कमरों में सोकर चुपचाप बैठ जाते, तो शायद आज भी हमारे बीच वही दूरियां होतीं।" आर्या ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा, "रिश्ते टूटते नहीं, बस हमें उन्हें जोड़ने की कोशिश करनी पड़ती है। यही तो रिश्ते का असली सच है।"  और फिर दोनों हँस पड़े, एक-दूसरे की हथेलियों को थामे, इस वादे के साथ कि वे कभी अपने रिश्ते को टूटने नहीं देंगे।

समय बीतता गया, लेकिन इस बार रवि और आर्या ने अपने रिश्ते को संवारने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब वे हर छोटी-छोटी बात को समझने और एक-दूसरे की भावनाओं की कद्र करने लगे थे।  

एक दिन रवि ने ऑफिस से लौटते समय आर्या के लिए उसकी पसंदीदा चॉकलेट और गुलाब के फूल लिए। जैसे ही उसने आर्या को दिए, वह मुस्कुराते हुए बोली, "ऐसे अचानक? कोई खास बात?"  

रवि ने हल्के से उसका हाथ पकड़ा और कहा, "नहीं, कोई खास बात नहीं। बस अब मैं खास मौकों का इंतज़ार नहीं करना चाहता। मैं रोज़ तुम्हें यह एहसास दिलाना चाहता हूँ कि तुम मेरी ज़िंदगी का सबसे खूबसूरत हिस्सा हो।" आर्या की आँखों में नमी आ गई, लेकिन वह खुशी से झूम उठी। उसे महसूस हुआ कि प्यार जताने का कोई सही समय नहीं होता, बल्कि हर दिन इसे महसूस कराना जरूरी होता है।  

अब उनके रिश्ते में पहले से कहीं ज्यादा नयापन था। वे सिर्फ पति-पत्नी नहीं, बल्कि सबसे अच्छे दोस्त भी बन गए थे। अब रवि सिर्फ ऑफिस की बातें नहीं करता था, बल्कि आर्या की रुचियों को भी समझने लगा था।  आर्या भी अब सिर्फ शिकायत करने के बजाय, रवि की ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव को बेहतर ढंग से समझने लगी थी।   दोनों ने हर हफ्ते एक दिन सिर्फ एक-दूसरे के लिए निकालने का फैसला किया, चाहे वह घर पर साथ बैठकर पुरानी फिल्में देखना हो या फिर लॉन्ग ड्राइव पर जाना।  

एक दिन आर्या की माँ अचानक बीमार पड़ गईं। उसे कुछ दिनों के लिए अपने मायके जाना पड़ा। रवि ने बिना कोई शिकायत किए खुद को घर और ऑफिस दोनों की जिम्मेदारी निभाने के लिए तैयार कर लिया।  जब आर्या वापस लौटी, तो उसने देखा कि रवि ने घर को पूरी तरह संभाल रखा था—हर चीज़ व्यवस्थित थी, और उसने आर्या के पसंदीदा खाने तक का इंतज़ाम किया था।  

आर्या ने भावुक होकर कहा, "शायद मैं हमेशा सोचती थी कि तुम मेरी परेशानियों को नहीं समझते, लेकिन आज मुझे एहसास हुआ कि तुम हमेशा मेरी परवाह करते हो, बस तुम्हारा तरीका अलग होता है।"  रवि मुस्कुराया और बोला, "और मैंने भी सीखा कि तुम्हारे बिना मेरा जीवन अधूरा है।" 

उन दोनों को एहसास हो चुका था कि रिश्ते में झगड़े होना स्वाभाविक है, लेकिन अहम बात यह है कि हम उन झगड़ों से सीखते क्या हैं। प्यार सिर्फ ख़ूबसूरत पलों में नहीं, बल्कि मुश्किल समय में भी एक-दूसरे का साथ देने में होता है। असली रिश्ता वही है, जो वक्त के साथ और मजबूत होता जाए  और अब, रवि और आर्या ने अपने रिश्ते की सच्चाई को पूरी तरह समझ लिया था—कि सच्चा प्यार सिर्फ महसूस नहीं किया जाता, उसे हर दिन निभाया भी जाता है।

(लेखक: विनोद कुमार झा)




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