नई ऊर्जा, नए संकल्प और नई उम्मीदों का उत्सव है हिंदी नववर्ष

 विनोद कुमार झा

आज हम सब एक नए सवेरे की दहलीज पर खड़े हैं। यह केवल नववर्ष का आगमन नहीं, बल्कि नई ऊर्जा, नए संकल्प और नई उम्मीदों का उत्सव है! यह वह शुभ क्षण है जब समय का चक्र एक नई दिशा में बढ़ता है, जब विक्रम संवत का पहला सूरज हमारी संस्कृति, परंपरा और गौरव को और अधिक रोशन करता है।  

भारत विविधताओं से भरा देश है, जहाँ हर समुदाय और क्षेत्र अपने रीति-रिवाजों के अनुसार नववर्ष का स्वागत करता है। हिंदी नववर्ष, जिसे विक्रम संवत के रूप में भी जाना जाता है, चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है। यह दिन भारतीय संस्कृति, परंपरा और आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है।  हिंदी नववर्ष की गणना विक्रम संवत के अनुसार होती है, जिसकी शुरुआत सम्राट विक्रमादित्य ने मालवा में की थी। यह संवत्सर भारतीय पंचांग पर आधारित है और इसे हिंदू धर्म के अनुसार धार्मिक मान्यता प्राप्त है।  

इतिहास में यह दिन कई महत्वपूर्ण घटनाओं से जुड़ा हुआ है । भगवान ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना इसी दिन मानी जाती है।  भगवान राम का राज्याभिषेक भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को हुआ था।  महाराजा विक्रमादित्य द्वारा विक्रम संवत की स्थापना इसी दिन हुई थी।  सिख गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना इसी समय की थी। यह हिंदी नववर्ष मुख्य रूप से गुड़ी पड़वा (महाराष्ट्र), उगादि (आंध्र प्रदेश और कर्नाटक), नव संवत्सर (उत्तर भारत), चैत्र नवरात्रि और संवत्सर प्रवेश के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विभिन्न राज्यों में अलग-अलग परंपराएँ देखने को मिलती हैं। इस दिन लोग अपने घरों की साफ-सफाई और रंगोली सजाते है।  साथ ही देवी-देवताओं की पूजा और हवन का आयोजन करते हैं एवं  नए संकल्प लिए जाते हैं और परिवार के साथ उत्सव मनाया जाता है। देश के अधिकांश हिस्सों में  शोभायात्राएँ भी निकाली जाती हैं।  

हिंदी नववर्ष केवल तिथि बदलने का दिन नहीं है, बल्कि यह एक नए उत्साह, नई ऊर्जा और नए संकल्पों का आरंभ है। यह पर्व हमें भारतीय संस्कृति से जोड़ता है और हमें अपने मूल्यों की याद दिलाता है।  यह नववर्ष केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इसका प्रकृति से भी गहरा संबंध है। यह समय "वसंत ऋतु" का होता है, जब प्रकृति खिल उठती है, नए फूल खिलते हैं, खेतों में फसलें लहलहाने लगती हैं, और वातावरण में एक नई ऊर्जा का संचार होता है। इसी कारण यह पर्व 'नवजीवन और पुनर्जन्म का प्रतीक" माना जाता है।  

इस समय किसान अपनी रबी की फसल  काटने की तैयारी में होते हैं, जिससे यह त्योहार उनकी मेहनत और सफलता का भी प्रतीक बन जाता है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में यह नववर्ष केवल तिथि परिवर्तन नहीं, बल्कि संपन्नता और समृद्धि का संदेश भी देता है। यह नववर्ष आत्मनिरीक्षण और आध्यात्मिक उन्नति का भी अवसर है। इस दिन कई लोग  "नव संकल्प" लेते हैं, योग और ध्यान करते हैं, और अपने जीवन को एक नई दिशा देने का प्रयास करते हैं ।

हिंदी नववर्ष केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि नवचेतना और आत्मविकास का पर्व है।  जो हमें भूतकाल से सीखकर, वर्तमान को संवारकर, भविष्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है। यह त्योहार न केवल हमारी संस्कृति और परंपराओं को जीवंत बनाए रखता है, बल्कि हमें अपने जीवन में नवीनता, उत्साह और आशा भरने की भी प्रेरणा देता है।  

आप सभी को हिंदी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ! यह नया वर्ष आपके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लेकर आए।

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